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गौपुत्रों को एक गाय का खुला खत- हुमा नक्वी

मेरे प्यारे गौ-रक्षक पुत्रों,
असीम प्रेम....
आज आपकी गौ-माँ आपसे खुले पत्र द्वारा संबोधित है...... कई दिनों से मैं आपसे खुले पत्र के द्वारा बात करना चाहती थी, तो आज थोडा समय मिला तो आपसे इस पत्र के माध्यम से बात करने आ गई....देखिये अचंभित मत हों....मामला यह है की आज मैं आपके कलकर्मों के द्वारा ना के केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय विमर्श का भी केंद्र-बिंदु बन चुकी हूँ तो सोचा अब वो वक्त आ पहुंचा है जब मैं भी अपने “मन की बात” आप सबसे कर लूँ।



जैसा की आप सब जानते हैं मैं भूसा खाती थी जो आजकल मिलता नहीं तो मैं कूड़े के ढेर से कुछ भी उठा कर खा लेती हूँ लेकिन इसके बावजूद गोबर जरूर करती हूँ....वैसे अब तो गोबर करना भी बेकार है उपले तो बनते नहीं हैं और ना ही मेरे गोबर का कोई उपयोग आजकल होता है ....सबके घर गैस और इलेक्ट्रिक हीटर्स हैं जिस पर आप सब खाना बनाते और खाते हो....तो गोबर का उपयोग तो खतम...हाँ अब अगर मैं आपके घर के दरवाजे या सड़क पर गलती से भी गोबर कर देती हूँ तो लाठी और डंडों से मेरी जो आरती उतारी जाती है वो अक्सर आपने देखी होगी...अब मसला यह है की जब आपने हमें सड़क पर जिंदा छोड़ दिया है और मेरे लिए कोइ स्वछय शौचालय तो बनाये नहीं तो मारते क्यूँ हैं.



दूसरी बात मुझे वोट डालने की अनुमति भी नहीं है क्यूंकि मैं भी दुसरे जानवारों की तरह एक जानवर हूँ तो मुझ पर राजनीति क्यूँ करते हो....वो भी बिना मेरी आज्ञा लिए...जब देखो आप लोग आप लोग राजनीतिक चूल्हा जला कर उस पर अपनी रोटियां सेंकते हो और वोट बैंक को और भर लेते हो। काश आपलोगों की खुद की पूँछ होती तो आपको पूँछ पकड़ने के दर्द का एहसास होता और आप मेरी पूँछ पकड़ कर चुनावी मुद्दे पार करने की जुर्रत ना करते....और तो और मेरे मूत्र से सोना निकालने के गुण भी चुनावी दौर में आपको याद आते हैं वरना गलती से भी अगर मेरी मूत्र धार आपकी मोटरसाइकिल या कार पर आ जाये तो आप मेरी माँ दृ बहन की गलियों से अलंकरित करना कभी नहीं भूलते और दो चार लाते गिफ्ट में भी जरूर दे देते हैं....आपको पता है.....बूचडखाने की चारदीवारों के पीछे “संगीत सोम” जैसे कितने ही व्यापारी मुझे काट कर विदेश बेच देते हैं और हमारा मांस सात समंदर पार बड़े शौक से परोसा और खाया जाता है, जहाँ आप लोगों की एंट्री बिना पासपोर्ट और वीजा के मना होती है क्यूंकि आप तो बस गली के शेर हो...देश के बहार निकलते ही आपकी देशभक्ति आपकी फ्लाइट के उड़ते ही समाप्त जो हो जाती है....और तुम इतने बड़े देशभक्त हो की एक बार विदेश जा कर तुम कभी वापस भी आना भी नहीं चाहते....तुमको इस माँ की याद तब आती....जब तक तब मेरे दर्शन किसी सुपरमार्किट के मीटकाउंटर के शीशे वाले रेफ्रेजेटर में रखे हुए मांस के लोथड़े में होती हैं....तब तुम उस मांस के टुकड़े को बिना जाने अनजाने की वो तुम्हारी माँ का मांस है ....और बिना मोलभाव कर के खरीद कर घर ला कर पका कर दोस्तों के साथ ड्रिंक करते हुए सर्व करके खा कर बड़े मजे लेते हो.....क्यूंकि गौ तो भारत में माता है.....विदेश में कुछ समझ नहीं आता है...



आज बस मुझे एक बात पर गर्व है की मुझे मारने की अफवाह भर से ही तुम मेरे मातृभक्त सपूत किसी भी इंसान की जान लेने से नहीं चूकते हों। आज सच में मुझे फक्र है कि कल तक जो लोग मेरे नाम पर सिर्फ चारा खाते आये थे, किन्तु अब मेरे नाम पे भाईचारा भी खा रहे हैं। इसपर मैं बस यह कह सकती हूँ कि आजकल मेरे ‘अच्छे दिन’ चल रहे हैं। भारत से लेकर अमेरिका तक बस सब मेरी ही बात कर रहे हैं....आखिर में मैं आप सबसे विनती करती हूँ इन अल्सख्यक या कुछ बेवकूफ लोगों की बीफपार्टी से मेरा कोई नुकसान नहीं होने वाला है और ना ही मेरा अस्तित्व मिटने की कोई सम्भावना है, हजारों साल से मैं जिंदा हूँ और रहूंगी (अगर संगीत सोम के बूचड़खाने से बच गई तो)....आपसे विनती है की मेरी रक्षा के आड़ में फोटोशॉप या अफवाहों का बाजार गर्म ना करें। इस तरह के कार्य से दूसरों के साथ आपको भी नुकसान हो रहा है और जहाँ आपका नुकसान हो मुझे अच्छा नहीं लगता .....आखिर माँ हूँ न मैं आपकी। हाँ एक बात और वो सारे लोगों को भी मैं सावधान करती हूँ जो मेरे प्राणों से प्रिय बेटे-बेटियों पर फर्जी केस ठोकते रहते। अरे मेरे जैसे भी हैं अच्छे हैं बुरे हैं .....हैं तो मेरे बेटे ही...अब वो अगर माँ की ममता को ना समझ सकें मुझे तो उनकी फिकर है.......वैसे भी जब पुलिस मेरे बेटों को पकडती है तो तुम्हारी सिफारिश तो उन्हें लाल करनी ही पड़ती है.... वैसे भी पुलिस का कोई धर्म नहीं होता...शाम के रम के लिए उसको किसी ना किसी की तो सिफारिश लाल करनी ही होती है.......इसलिए सावधान......अभी देख लो मेरे कुछ प्रिये तुम जैसे बेटों ने गुजरात गौरक्षा के नाम पर बस दलितों की पीठ पर जरा सी मालिश क्या की सारे के सारे सुलतान उनके पीछे पड़ गए.....यह क्या बात हुई...ठीक है मैं अपने बेटों से नाराज हूँ इसका यह मतलब तो नहीं की आप उनके पीछे ही पड़ जाएँ. .चलें अब मुंह मारने का टाइम हो गया है काश आज सड़क पर सब्जी वाला सोता नजर आ जाये तो पेट भर जायगा वरना फिर से कचरे के ढेर से खाना तलाश करना पड़ेगा...वैसे भी मेरे बेटों की बहुएं इतनी कंजूस हो गई हैं की कचरे में भी कुछ खाने का नहीं छोडती हैं अब. अगर किसी तुम जैसे बेटे की क्रप्या रही और मैं भूख से ना मरी तो फिर से खुले पत्र द्वारा संबोधित करुँगी....अपना ख्याल रखना गौ-रक्षक पुत्रों.....
तुम्हारी प्रिय गौ माँ.......
डिस्क्लेमरर: यह एक व्यंग लेख है और इसके सभी पात्र, घटनाएं आदि काल्पनिक हैं। कृपया इस खबर को वास्तविक समझकर व्यर्थ मे अपनी भावनाएं आहत न करें।
हुमा (2016)

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