ऊना में हुई दलितों की पिटाई के विरोध में दलित समुदाय ने मरे हुए जानवरों का शव उठाने और उनका निपटान करने से इनकार कर दिया है। इसके कारण सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात में ऐसे कई शव सड़ रहे हैं और लोगों को स्वास्थय संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आसपास के गांवों की सीमाओं पर कई मरे हुए पशुओं के शव सड़ रहे हैं।
ऊना घटना के विरोध में दलितों ने मरे पशुओं का चमड़ा निकालने और उनका निपटान करने से इनकार कर दिया। सुरेन्द्रनगर में लोगों ने कहा कि गणपति रेलवे स्टेशन क्रॉसिंग पर एक भैंस की लाश सड़ गई है। इसकी वजह से आसपास के इलाके में असहनीय बदबू फैल गई है। दलित यह कहते हुए मरे हुए जानवरों की लाश उठाने से इनकार कर रहे हैं कि ऐसा करने पर उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाएगा। पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार गुजरात में लगभग 1 करोड़ गाय और भैंस हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार जानवरों के मरने की दर लगभग 10% होती है। प्रतिदिन करीब 2500 जानवर मरते हैं।
बीमार और बूढ़े जानवरों को भेजे जाने की जगह 'पंजरापोल' में काम करने वाले लोगों ने भी बीमार पशुओं को लेने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि दलितों के पशुओं के शवों का निपटान करने से इनकार करने के बाद यहां कई शव पड़े हुए हैं, जिसके कारण नए पशुओं को नहीं लिया जा सकता। श्री लिम्बड़ी महाजन पंजरापोल के उपाध्यक्ष नरेन्द्र शाह ने कहा कि हमने लिम्बड़ी के आस-पास के 50 गांवों के सरपंचों से बात कर ली है। हमने उनसे गायों को यहां भेजने के लिए मना किया है। मरी हुई गायों का निपटान करना एक मुश्किल काम हो गया है। राज्य सरकार के गोसेवा और गोचर विकास बोर्ड के अनुसार गुजरात में 283 पंजारपोल हैं जिनमें 2 लाख से ज्यादा पशु हैं। इनमें से 100 अकेले सौराष्ट्र और कच्छ में हैं।
दलित ऐक्टिविस्ट नातु परमार ने कहा कि यह पहली बार है कि दलित समुदाय इस तरीके से लामबंद हुआ है। पशुओं के निपटान से इनकार करने के लिए पूरा समुदाय एक साथ खड़ा हुआ है। मालूम हो 2 हफ्ते पहले ऊना में मरे हुए पशुओं का चमड़ा उतारने के लिए दलित समुदाय के कुछ युवकों की बेरहमी से पिटाई की गई थी। इसके बाद से दलित समुदाय पूरे तरीके से एकजुट हो गया है।
(विजय सिंह परमार & आशीष चौहान, राजकोट एनबीटी के लिए)
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल कहते है
Dilip C Mandal
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मैं इस बात का सख्त विरोध करता हूं.
गुजरात सरकार ने 28 जुलाई को एक नोटिस जारी कर राज्य के तमाम कलेक्टर और विकास पदाधिकारियों से कहा है कि मरे हुए पशुओं को ठिकाने लगाने का काम वे खुद संभालें. इसके लिए पशु पालन विभाग और स्वास्थ्य विभाग को लगाएं, क्योंकि राज्य में बीमारियां फैलने का गंभीर खतरा हो गया है और सड़कों पर जाम भी लग रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज खबर है कि मरे जानवरों को हटाने के लिए जेसीबी मशीनों यानी अर्थमूवर गाड़ियों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इतने सारे गोपुत्रों के होते हुए गोमाताओं का निपटान इतने अपमानजनक तरीके से क्यों हो रहा है. गोरक्षक दल किस दिन काम आएंगे. RSS के स्वयंसेवकों को क्या लकवा मार गया है? गाय क्या सिर्फ वोट दिलाने के काम आयेगी?