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गे लेस्बियन अनैसर्गिक कृत्य, क्या आप जानते है एडम और इव को ? - हुमा नक्वी

फिलहाल गे और लेस्बियन पर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. कोई कुछ भी बयान दे रहा है. सब के सब खुदको फेमस करने में पड़े है. और इस चक्कर में वह यह भूल रहे है की, हकीकत क्या है ? नैसर्गिक क्या है और अनैसर्गिक क्या है. अगर सब ने इस छोटेसे लेख पर ध्यान दिया तो बहुत कुछ सोच सकता है और बहुत कुछ जान सकता है. और बेतुके बयान देने और उसका समर्थन और विरोध करने में अपना वक्त बर्बाद करने से बच सकता है. और इसमें एक खास बात ईसाईयों के लिए भी इशारा है. गे, लेस्बियन को सबसे पहले इसाई मुल्को ने दि है. हालांकि वह भी एडम और इव को मानते है.-संपादक
एडम और ईव या आदम और हव्वा, शायेद ही दुनिया का कोई एसा शक्स होगा जिसने इनके बारे में सुना या पढ़ा ना होगा.... जैसा की सबको पता है हज़रत आदम (अ. स.) को अल्लाह ने इस दुनिया में भेजा (दुनिया के पहले पैग़म्बर) और इंसान को वजूद में लाया गया... कुछ अरसे के बाद हव्वा वजूद में आईं (कैसे आईं वो भी सबको पता है)... हज़रत आदम (अ. स.) और हव्वा से 2 बेटे वजूद में आये (दुनिया के पहले 2 बच्चे), जिनका नाम हाबिल और क़ाबिल था, दोनों में जंग हुई (दुनिया की पहली जंग) जिसमें एक भाई ने दुसरे की जान ले ली (दुनिया का पहली हत्या)... क़ाबिल ने अपने भाई को दफ़न किया (दुनिया की पहली क़ब्र का वजदू, कैसे बनी कब्र और क्या क्या हुआ वो एक अलग हकीकत है) संक्षेप में इस सुनी हुई हकीकत को बताने की बस एक वजह...वो यह है...
आज हर तरफ गे, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर और थैंक्स तो तुषार कपूर सरोगेसी की वकालत / खिलाफत करने वाले अनगिनत लोग फेसबुक पर अपनी अपनी अपनी राय दे रहे हैं,.. यह राय व्यक्तिगत हो सकती हैं लेकिन ऊपर बताई गई हकीकत को नकार कर ही कही जा सकती है... मेरा उन सभी लोगों से एक सवाल, अगर अल्लाह सुभानाहू तआला को आदम अ. स. के बच्चे ही चाहिए थे तो हव्वा के बनाने से पहले भी वो बच्चों को कायनात में ला सकता था, अल्लाह सुभानाहू तआला मुसबेब्बिल असबाब है और उसके लिए कुछ भी मुमकिन है... अल्लाह सुभानाहू तआला ने आदम अ.स. और हव्वा के ज़रिये साफ़ तौर पर यह बताया की एक फॅमिली को पूरा करने के लिए एक मर्द और औरत की ही ज़रुरत होती है.. और उनसे पैदा हुए बच्चे ही अल्लाह सुभानाहू तआला की पसंदीदगी में एक हैं.... मैं उन सभी लोगों को यह सोचने का और मौक़ा देती हूँ क्या अल्लाह के बताये और सिखाई बातों के खिलाफ ही जाना इंसानियत है? क्या खुद को मार्डन दिखने और दिखाने के लिए किसी भी बात को अपना लेना ही इंसानियत है? हमारे माँ बाप ने हमको शिक्षित इस्सलिये नहीं किया की हम अल्लाह के बातये और सिखाये हुए कामो की उपेक्षा करें सिर्फ इसलिए की हम बहुत पढ़ लिख गए हैं..
सोचे अपने आप से आप किधर जा रहे हैं?..

नोट: मैं गे, लेस्बियन और उस जैसे लोगों की सोच पर कोई पर्सनल सवाल नहीं लगा रही, उनके खुद की दुनिया है वो जैसे चाहे अपनी लाइफ को चुने और व्यतीत करें, जैसे की मेरी अपनी लाइफ है और अपने मापदंड हैं...

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