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तुम्हारा चरित्र ख़ुद से हीन है। ख़ुद से हीन चरित्र चरित्रहीन होता है -Monika Kumar

Revisiting and Re-imagining चरित्र उर्फ़ भारतीय स्त्रियो। तुम्हारा चरित्र ख़ुद से हीन है। ख़ुद से हीन चरित्र चरित्रहीन होता है।

'चरित्र' शब्द अपने संबंध में सुनते ही आमतौर पर भारतीय स्त्री डर जाती है, उसके कान खड़े हो जाते हैं कि चरित्र के पीछे 'वान' शब्द भी प्रयोग हो गया न क्योंकि हीन सुनते ही उसका अपने ही अस्तित्व पर से विश्वास उठने लगा है. सामाजिक रूप से समाज बदला है जैसे कि स्त्रियां शिक्षित होकर पुरुषों के साथ रोज़गार में लग गयीं लेकिन चरित्र का मसला रूप बदल बदल कर आज भी स्त्री की चर्चा में केंद्रीय बिंदु ही है. जैसे कि डॉक्टर बन गयी ठीक पर चरित्र! पत्रकार बन गयी पर चरित्र! नौकरी नहीं करके घर में रहती है पर चरित्र! विदेश में पढ़ने चली गयी पर चरित्र! अच्छा लिखती है पर चरित्र! आज भी स्त्री का मन उसी डर से भरा हुआ है कि दूसरे उसकी कार्यक्षमता के इतर उसके चरित्र के बारे में क्या सोचते हैं.


वह लगातार इस ज़द्दोज़हद में रहती है कि उसके चरित्र पर कोई दाग़ नहीं लगे. इस समाज में विधवा स्त्री अगर दोबारा शादी नहीं करती तो समाज की सहानुभूति और सहयोग तभी बना रहता है अगर उसका चरित्र बना रहे. ब्याहता स्त्री के लिए तब तक जब तक चरित्र बना रहे. यानी इस दुनिया के और सारे संघर्ष एक तरफ़ और चरित्रवान बने रहने का संघर्ष एक तरफ़. हर स्त्री को अपनी सफलता के लिए ख़ास तौर पर यह बात बार बार बतानी पड़ती है कि उसने यह सब चरित्रवान रहते हुए प्राप्त किया है. लेखिकाएँ भी अक्सर अपने संवादों और साहित्य में दोहराती हैं कि कुछ भी प्राप्त करने के लिए उन्होंने चरित्र को ख़राब नहीं किया है. यानी चरित्र के बगैर कोई चर्चा संभव नहीं है.


यहाँ तक कि रेडिकल 'बुरी औरतें' भी चरित्र शब्द की खीज से उबर नहीं पातीं। अगर हम चरित्र की परिभाषा देखें तो वह इस तरह है जो मैनें इंटरनेट से देख कर लिखी हैं.
the mental and moral qualities distinctive to an individual.
चरित्र को व्यक्तित्व ( Personality ), नैतिकता ( Morality ), या स्वभाव ( Temperament ) या इन सबका पूर्ण योग माना हैं “चरित्र एक गतिशील धारणा है. यह व्यक्ति के दृष्टिकोणों और व्यवहार की विधियों का पूर्ण योग हैं."

जब हम यह जानते हैं कि स्त्री-स्वभाव बहुत हद तक पुरुष के वर्चस्व से गढ़ा गया है और उसके दृष्टिकोण भी patriarchy तय करती है जिसके अन्तर्गत वह बिना देखे परखे मुसलमानों से घृणा करने के लिए तैयार हो जाती है और अपने आप को उन्हीं चीज़ों के क़ाबिल समझती है उसे पुरुष समझता है. अपने नौकरी करने और पैसा कमाने की क्षमता को भी वह पुरुष द्वारा दी गयी आज़ादी का फल मानती है और अक्सर अपनी सफलता का श्रेय भी पुरुष को देती है.


देखने की बात है कि अगर character mental और moral गुणों से मिल कर बनता है तो स्त्री के मानसिक और नैतिक गुण का निर्माण तो वह ख़ुद नहीं करती है इसलिए उसका चरित्र वाक़ई उसके ख़ुद से हीन है इसलिए अक्सर विवादास्पद बना रहता है।इस शब्द के आतंक से इस तरह भी मुक्ति पायी जा सकती कि यह मान लिया जाए की भारत की स्त्रियां असल में चरित्रहीन हैं और चरित्र -शून्य स्थिति से उबर कर अपनी भूमिकाएं और प्रतिभागिता तय करने की ओर बढ़ रही हैं.

पुरानी वाली यानी पुरुषों वाली चरित्र की परिभाषा से आपको या किसी और स्त्री को चरित्रहीन कहता है तो उसे कहना चाहिए हाँ, मैं सहमत हूँ कि मैं अभी चरित्रहीन हूँ, तुम्हारे वाला सर्टिफिकेट तुम्हें लौटा कर अपने लिए चरित्र अर्जित कर रही हूँ,


मैं ख़ुद अपनी समझ से अपने बौद्धिक और नैतिक गुणों का विकास कर रही हूँ
मैं ख़ुद अपने दृष्टिकोण और व्यवहार की पद्धतियां का विकास कर रही हूँ.
चरित्र शब्द सिरे से खारिज शायद नहीं किया जा सका क्योंकि ख़ुदमुख्तारी से तय करने पर भी हमारे बौद्धिक और नैतिक गुण भिन्न होंगे जिसके मिक्स को चरित्र ही कहेंगे।
इस शब्द को dismantle करके इसके आतंक और दबाव को खत्म किया जा सकता है.

दासता से मुक्ति के संघर्ष में recuperation और recovery की प्रक्रिया में dismantling से शब्दों से निरंतरता बनी रहते हुए भी उसमें ताज़गी आती है, self determination आती है और धीरे धीरे नयी शब्दावली नए पदबंध भी आते हैं जो उस स्मृति को धीरे धीरे भुला देते हैं.

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