COVID-19 लॉकडाउन : जेलों से पैरोल पर रिहा होंगे कैदी - अदालती आदेशों का विवरण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने हालिया एक आदेश में निर्देश दिया है कि उत्तरप्रदेश में 15 मार्च को या उसके बाद जिन मामलों में आरोपियों की ज़मानत स्वीकार हो गईं थीं मगर उनको अभी तक जेल से इस कारण नहीं छोड़ा जा सका क्यूं कि ये लोग लॉक डाउन के कारण जमानतदारों का प्रबंध नहीं कर सके या उनका दस्तावेजी सत्यापन नहीं हो सका तो ऐसे बंदियों से निजी मुचलके लेकर जेल से उनको रिलीज कर दिया जाए जिसकी रकम को अदालत अथवा जेल अधिकारियों द्वारा निर्धारित किया जाए । ये प्रतिबंध होगा कि जेल से रिलीज होने के एक माह के भीतर वह ज़मानत की दस्तावेजी प्रक्रिया को पूरा कर देगा।
इसके पूर्व दिनांक 23 मार्च 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने Suo Moto Writ Pitition (C) 1/2020 Re : Contagian of Covid 19 Virus in Prisons
में आदेश पारित किया था जिसमें आदेश दिया गया था कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारें हाई पावर कमेटी बनाएं जो Covid 19 से उत्पन्न स्थिति में बंदियों की रिहाई पर विचार करे । इस आदेश को पारित करते समय सुप्रीम कोर्ट ने इस खतरे का संज्ञान लिया था कि जेलों में कैदियों की अत्यधिक संख्या है और उनके के बीच संक्रमण फैलने का अधिक अंदेशा है, जो उनके जीवन को जोखिम में डाल सकता है और स्वस्थ होना जीवन के अधिकार के अंतर्गत (आर्टिकल 21भारत का संविधान) मौलिक अधिकार है। इसलिए जेलों में बंदियों की संख्या कम हो और जेलों की दशा में सुधार हो सके। जिन जेलों में उनकी क्षमता के अनुसार 75% भी बंदी रहते हैं ,उनमें भी संक्रमण फैलने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि उतनी सोशल दूरी (distanting / Segregation) बना कर नहीं रखी जा सकती जितनी जेल से बाहर रहने वाले नागरिकों को बनाने के निर्देश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, लखनऊ में एक उच्च स्तरीय समिति की बैठक दिनांक 27 मार्च 2020 को हुई। इसमें निश्चित किया गया कि उन बंदियों को 8 सप्ताह के लिए पैरोल दिया जाएगा जो -------
1. पहले से पैरोल पर हैं ,
2.वे बंदी जो पहले पैरोल ले चुके हैं और पैरोल अवधि के दौरान उन्होंने कोई अपराध नहीं किया और निर्धारित समय पर जेल लौट आए।
3. निम्न अपराधों में बंद चल रहे कैदियों को छोड़कर अन्य को 8 सप्ताह का पैरोल मिलेगा ---
*जिनसे बड़ी मात्रा में मादक पदार्थों की बरामदगी हुई (NDPS Act)
*जिनसे बड़ी मात्रा में शस्त्र बरामदगी हुई (Arms Act)
*जिनको पोक्सो के तहत अपराध सिद्ध हुआ और सजा हुई है
* जिनको आईपीसी की निम्न धाराओं में किसी के भी अंतर्गत दोष सिद्ध हुआ और सजा सुनाई गई. सेक्शन 326A, 326B, 364A, 376, 376A, 376A, 376C, 376D, 376E, 388, 389, 392, 395, 396, 409, 467, 468, 472, 473, 489A, 489B,489C, 489D और गंगेस्टर एक्ट
* वे अपराधी जिनको 7 वर्ष से कम अवधि की सजा हुई है
*विदेशी नागरिकों के अतिरिक्त वे विचाराधीन कैदी जिनको 7 साल से कम अवधि के आपराधिक मामलों में निरुद्ध किया गया है , वे भी 8 सप्ताह का विशेष पैरोल पर रिहा होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अन्य हालिया आदेश में देश के सभी जे जे बोर्ड और बाल अदालतों को निर्देश जारी किए हैं कि वे विधि से संघर्षरत सभी बालकों को अस्थाई जमानतों पर रिहा करें जब तक कि अन्तर्गत धारा 12 जे जे एक्ट 2015 विशेष कारण न हों ---
Measures To Be Taken By Child Welfare Committees
Monitor cases telephonically for children who have been sent back to their families and coordinate through the District Child Protection Committees and Foster care and Adoption Committees (SFCACs) for children in foster careOnline help desks and support systems for queries to be established at the state level for children and staff in CCIs
Measures To Be Taken By Juvenile Justice Boards And Children Courts
Online video sessions be organized for conducting inquiries
Children alleged to be in conflict with law, residing in Observation Homes, JJB shall consider taking steps to release all children on bail, unless there are clear and valid reasons for the application of the proviso to Section 12, JJ Act, 2015
Video conferencing or online sittings can be held to prevent contact for speedy disposal of cases.
Measures To Be Taken By Governments
Work with Persons in Charge of CCIs and District Child Protection Units to plan staffing rotations or schedules to reduce in-person interaction by CCI staff.
Ensure diligent performance of all government functionaries and take strict action against any dereliction of duty as per Rule 66(1) of Juvenile Justice Model Rules, 2016.
Ensure adequate budgetary allocation to meet the costs that are likely to arise for the effective management of the pandemic.
Directions To CCIs
Take necessary steps to practice, promote and demonstrate positive hygiene behaviors and monitor their uptake;
Conduct regular screening of children lodged in institutions and follow Health Referral System.
The court clarified that such directions will also apply to to children in foster and kinship care.
भारत की जेलों की दशा सुधारने के लिए मान्य सुप्रीम कोर्ट ने Re Human Conditions in 1382 Prison 2016 vol 3 SCC page 700 पैरा 56 में निर्देश दिए हैं---
(56) The sum and substance of the aforesaid discussion is that prisoners, like all human beings, deserve to be treated with dignity. To give effect to this, some positive directions need to be issued by this Court and these are as follows:
1. The Under Trial Review Committee in every district should meet every quarter and the first such meeting should take place on or before 31st March, 2016. The Secretary of the District Legal Services Committee should attend each meeting of the Under Trial Review Committee and follow up the discussions with
appropriate steps for the release of undertrial prisoners and convicts who have undergone their sentence or are entitled to release because of remission granted to them.
2. The Under Trial Review Committee should specifically look into aspects pertaining to effective implementation of Section 436 of the Cr.P.C. and Section 436A of the Cr.P.C. so that undertrial prisoners
are released at the earliest and those who cannot furnish bail bonds due to their poverty are not subjected to incarceration only for that reason. The Under Trial Review Committee will also look into issue of implementation of the Probation of Offenders Act, 1958 particularly with regard to first time offenders so that they have a chance of being restored and rehabilitated in society.
3. The Member Secretary of the State Legal Services Authority of every State will ensure, in coordination with the Secretary of the District Legal Services Committee in every district, that an adequate number of
competent lawyers are empanelled to assist undertrial prisoners and convicts, particularly the poor and indigent, and that legal aid for the poor does not become poor legal aid.
4. The Secretary of the District Legal Services Committee will also look into the issue of the release of undertrial prisoners in compoundable offences, the effort being to effectively explore the possibility of
compounding offences rather than requiring a trial to take place.
5. The Director General of Police/Inspector General of Police in-charge of prisons should ensure that there is proper and effective utilization of available funds so that the living conditions of the prisoners is commensurate with human dignity. This also includes the issue of their health, hygiene, food, clothing, rehabilitation etc.
6. The Ministry of Home Affairs will ensure that the Management Information System is in place at the earliest in all the Central and District Jails as well as jails for women so that there is better and effective management of the prison and prisoners.
7. The Ministry of Home Affairs will conduct an annual review of the implementation of the Model Prison
Manual 2016 for which considerable efforts have been made not only by senior officers of the Ministry of Home Affairs but also persons from civil society. The Model Prison Manual 2016 should not be reduced to yet another document that might be reviewed only decades later, if at all. The annual review will also take into consideration the need, if any, of making changes therein.
8. The Under Trial Review Committee will also look into the issues raised in the Model Prison Manual 2016 including regular jail visits as suggested in the said Manual.
We direct accordingly
पिछले दिनों कोलकाता की दम दम जेल में बलवा भी हुआ जब कैदियों को उनके परिजनों से मिलने से रोका गया। सुप्रीम कोर्ट को असम के डिटेंशन सेंटर्स में बंद लोगों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। जीवन का अधिकार उनका भी है। अभी कानूनी कार्यवाही के तहत अंतिम रूप से वे विदेशी घोषित नहीं हुए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने हालिया एक आदेश में निर्देश दिया है कि उत्तरप्रदेश में 15 मार्च को या उसके बाद जिन मामलों में आरोपियों की ज़मानत स्वीकार हो गईं थीं मगर उनको अभी तक जेल से इस कारण नहीं छोड़ा जा सका क्यूं कि ये लोग लॉक डाउन के कारण जमानतदारों का प्रबंध नहीं कर सके या उनका दस्तावेजी सत्यापन नहीं हो सका तो ऐसे बंदियों से निजी मुचलके लेकर जेल से उनको रिलीज कर दिया जाए जिसकी रकम को अदालत अथवा जेल अधिकारियों द्वारा निर्धारित किया जाए । ये प्रतिबंध होगा कि जेल से रिलीज होने के एक माह के भीतर वह ज़मानत की दस्तावेजी प्रक्रिया को पूरा कर देगा।
में आदेश पारित किया था जिसमें आदेश दिया गया था कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारें हाई पावर कमेटी बनाएं जो Covid 19 से उत्पन्न स्थिति में बंदियों की रिहाई पर विचार करे । इस आदेश को पारित करते समय सुप्रीम कोर्ट ने इस खतरे का संज्ञान लिया था कि जेलों में कैदियों की अत्यधिक संख्या है और उनके के बीच संक्रमण फैलने का अधिक अंदेशा है, जो उनके जीवन को जोखिम में डाल सकता है और स्वस्थ होना जीवन के अधिकार के अंतर्गत (आर्टिकल 21भारत का संविधान) मौलिक अधिकार है। इसलिए जेलों में बंदियों की संख्या कम हो और जेलों की दशा में सुधार हो सके। जिन जेलों में उनकी क्षमता के अनुसार 75% भी बंदी रहते हैं ,उनमें भी संक्रमण फैलने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि उतनी सोशल दूरी (distanting / Segregation) बना कर नहीं रखी जा सकती जितनी जेल से बाहर रहने वाले नागरिकों को बनाने के निर्देश दिए गए हैं।
1. पहले से पैरोल पर हैं ,
2.वे बंदी जो पहले पैरोल ले चुके हैं और पैरोल अवधि के दौरान उन्होंने कोई अपराध नहीं किया और निर्धारित समय पर जेल लौट आए।
3. निम्न अपराधों में बंद चल रहे कैदियों को छोड़कर अन्य को 8 सप्ताह का पैरोल मिलेगा ---
*जिनसे बड़ी मात्रा में मादक पदार्थों की बरामदगी हुई (NDPS Act)
*जिनसे बड़ी मात्रा में शस्त्र बरामदगी हुई (Arms Act)
*जिनको पोक्सो के तहत अपराध सिद्ध हुआ और सजा हुई है
* जिनको आईपीसी की निम्न धाराओं में किसी के भी अंतर्गत दोष सिद्ध हुआ और सजा सुनाई गई. सेक्शन 326A, 326B, 364A, 376, 376A, 376A, 376C, 376D, 376E, 388, 389, 392, 395, 396, 409, 467, 468, 472, 473, 489A, 489B,489C, 489D और गंगेस्टर एक्ट
*विदेशी नागरिकों के अतिरिक्त वे विचाराधीन कैदी जिनको 7 साल से कम अवधि के आपराधिक मामलों में निरुद्ध किया गया है , वे भी 8 सप्ताह का विशेष पैरोल पर रिहा होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अन्य हालिया आदेश में देश के सभी जे जे बोर्ड और बाल अदालतों को निर्देश जारी किए हैं कि वे विधि से संघर्षरत सभी बालकों को अस्थाई जमानतों पर रिहा करें जब तक कि अन्तर्गत धारा 12 जे जे एक्ट 2015 विशेष कारण न हों ---
Measures To Be Taken By Child Welfare Committees
Monitor cases telephonically for children who have been sent back to their families and coordinate through the District Child Protection Committees and Foster care and Adoption Committees (SFCACs) for children in foster careOnline help desks and support systems for queries to be established at the state level for children and staff in CCIs
Online video sessions be organized for conducting inquiries
Children alleged to be in conflict with law, residing in Observation Homes, JJB shall consider taking steps to release all children on bail, unless there are clear and valid reasons for the application of the proviso to Section 12, JJ Act, 2015
Video conferencing or online sittings can be held to prevent contact for speedy disposal of cases.
Measures To Be Taken By Governments
Work with Persons in Charge of CCIs and District Child Protection Units to plan staffing rotations or schedules to reduce in-person interaction by CCI staff.
Ensure diligent performance of all government functionaries and take strict action against any dereliction of duty as per Rule 66(1) of Juvenile Justice Model Rules, 2016.
Directions To CCIs
Take necessary steps to practice, promote and demonstrate positive hygiene behaviors and monitor their uptake;
Conduct regular screening of children lodged in institutions and follow Health Referral System.
The court clarified that such directions will also apply to to children in foster and kinship care.
भारत की जेलों की दशा सुधारने के लिए मान्य सुप्रीम कोर्ट ने Re Human Conditions in 1382 Prison 2016 vol 3 SCC page 700 पैरा 56 में निर्देश दिए हैं---
(56) The sum and substance of the aforesaid discussion is that prisoners, like all human beings, deserve to be treated with dignity. To give effect to this, some positive directions need to be issued by this Court and these are as follows:
appropriate steps for the release of undertrial prisoners and convicts who have undergone their sentence or are entitled to release because of remission granted to them.
2. The Under Trial Review Committee should specifically look into aspects pertaining to effective implementation of Section 436 of the Cr.P.C. and Section 436A of the Cr.P.C. so that undertrial prisoners
are released at the earliest and those who cannot furnish bail bonds due to their poverty are not subjected to incarceration only for that reason. The Under Trial Review Committee will also look into issue of implementation of the Probation of Offenders Act, 1958 particularly with regard to first time offenders so that they have a chance of being restored and rehabilitated in society.
competent lawyers are empanelled to assist undertrial prisoners and convicts, particularly the poor and indigent, and that legal aid for the poor does not become poor legal aid.
4. The Secretary of the District Legal Services Committee will also look into the issue of the release of undertrial prisoners in compoundable offences, the effort being to effectively explore the possibility of
compounding offences rather than requiring a trial to take place.
5. The Director General of Police/Inspector General of Police in-charge of prisons should ensure that there is proper and effective utilization of available funds so that the living conditions of the prisoners is commensurate with human dignity. This also includes the issue of their health, hygiene, food, clothing, rehabilitation etc.
7. The Ministry of Home Affairs will conduct an annual review of the implementation of the Model Prison
Manual 2016 for which considerable efforts have been made not only by senior officers of the Ministry of Home Affairs but also persons from civil society. The Model Prison Manual 2016 should not be reduced to yet another document that might be reviewed only decades later, if at all. The annual review will also take into consideration the need, if any, of making changes therein.
8. The Under Trial Review Committee will also look into the issues raised in the Model Prison Manual 2016 including regular jail visits as suggested in the said Manual.
पिछले दिनों कोलकाता की दम दम जेल में बलवा भी हुआ जब कैदियों को उनके परिजनों से मिलने से रोका गया। सुप्रीम कोर्ट को असम के डिटेंशन सेंटर्स में बंद लोगों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। जीवन का अधिकार उनका भी है। अभी कानूनी कार्यवाही के तहत अंतिम रूप से वे विदेशी घोषित नहीं हुए हैं।
(असद हयात, सामाजिक कार्यकर्ता कानूनी जानकार)