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सोचा था कि ट्विटर छोड़ दूं लेकिन तभी शिखर धवन के अंगूठे की याद आई और

सोचा था कि ट्विटर छोड़ दूं लेकिन तभी शिखर धवन के अंगूठे की याद आई और हृदय में हूक सी उठने लगी। अंगूठे पर डॉट पेन से बनी उदास स्माइली से आंसू निकल पड़े। आकाशवाणी हुई कि हे मानवश्रेष्ठ! 50 लोगों की जान चली जाए, सैकड़ों के घर जल जाएं, अस्पताल में ऑक्सीजन न हो और सौ बच्चे मर जाएं, ऐसे बड़े कांड पर फिर भी आपका मौन शोभा देता है, लेकिन इस उदास अंगूठे के बारे में सोचिए जिसके दम आपने समूचे तंत्र को ठेंगा दिखा दिया।

तुरंत मैंने कान पकड़ कर कहा, तौबा तौबा... राम राम... मैं ये क्या प्रलय सोच बैठा... भगवान ऐसे बुरे विचार कभी मन में न लाए।

लेकिन उलझन तो है! एक मन कर रहा है कि इस संडे ही ट्विटर छोड़ दूं, लेकिन फिर मन में आता है कि न छोडूं। पंडित ग़ालिब ने लिखा था कि "काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे।" मैं आज ट्वीट करूंगा, "ट्विटर मेरे मन में है तमाशा मेरे आगे।" एकदम रॉकिंग, मजा आ जाएगा, हे हे हे...

प्रिय बराक से तू तड़ाक में भी पूछा था लेकिन अब वह आदमी वैसा काम का नहीं रहा। मेरी अंखियों के नूर, मेरे दिल के सुरूर श्रीमान ट्रम्प जी तो चुनाव में बिजी हैं, खुद ही कुछ सोचना पड़ेगा। ये लोग बीच बीच में पता नहीं क्या लोकतंत्र की बात ठेलने लगते हैं। ये बातें मुझे रुचिकर नहीं लगतीं। इतने बड़े बड़े झूठ बोले लेकिन नामुराद ने कभी सार्वजनिकली तारीफ नहीं की.. हुंह...।

मैं अब भी सोच रहा हूं कि ट्विटर चलाऊं, न चलाऊं, कम कर दूं, डिएक्टिवेट कर दूं, किसी को दान कर दूं, किसी के नाम कर दूं, किसी पर कुर्बान कर दूं। उफ्फ! बड़ी उलझन है। क्या करूं समझ में नहीं आ रहा, लेकिन कुछ तूफानी करने का मन कर रहा है, एकदम नोटबन्दी टाइप, जिसका हासिल कुछ न हो लेकिन देश भर में तबाही मच जाए और अर्बन नक्सल लोग लंबे लंबे लेख लिखें, ससुरे इसी में खतम हो जाएंगे, मजा ही आ जाएगा... ह ह ह ह..

अच्छा नहीं नहीं, ये तो सोचा ही नहीं था, ट्विटर छोड़ दूंगा तो फिर गाली देने वाले सेलिब्रिटी को फॉलो कौन करेगा। बेचारों का मनोबल टूट जाएगा। सोच रहा हूं कुछ दिन न चलाऊं, लेकिन फिर अंगूठाछाप ट्वीट्स की गरिमा कम हो जाएगी। ब्रेक लेने से फालतूगिरी का अपमान होगा।

मेरे सलाहकार लोग ठीक से सलाह भी नहीं देते। अगर मैं ट्विटर पर नहीं रहूंगा तो ट्रोल आर्मी का भी मनोबल नैनो पार्टिकल्स में टूट जाएगा, फिर देश मे अर्बन नक्सल पर लगाम ढीली हो जाएगी।

अच्छा आज रहने दो, लेकिन दो चार दिन में कुछ तूफानी करूंगा, वरना इस देश के लोग फिर से वही बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था की डिबेट करने लगेंगे।

अच्छा एक काम करता हूं, बग्गा को फोन लगाता हूं कि जरा ट्विटर वाली जनता के बीच एक सर्वे कराए। जनता से पूछे कि बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था पर चर्चा करने वालों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए कि नहीं! मैं जानता हूं कि मेरे भक्त उत्साह से तैयार हो जाएंगे और अगला संसद सत्र काफी तूफानी जाएगा...
वाह! ग्रेट आइडिया! ट्रिंग ट्रिंग...
Krishn Kant

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