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आज मस्जिदे अक्सा को छोड़कर चले गए सलाहुद्दीन अय्यूबी

4 मार्च 1193 ईस्वी मानी आज से 827 साल क़ब्ल सुल्तान सलाह-उद्-दीन अय्यूबी बिन नज़म-उद्-दीन अय्यूबी की वफ़ात हुई थी | सुल्तान सलाह-उद्-दीन रहमतुल्लाह अलैहि की उम्र लगभग 55 साल थी और आप ने मस्जिद-ए-अक़्सा को आज़ाद करवाया था और सलीबी जंगों (क्रुसेड) को ख़त्म किया ‘सावधान, सलीबी जंग अभी तक ख़त्म नहीं हुई और आख़िरी जंग (क्रुसेड) बाक़ी है |
“तुम परिंदों से दिल बहलाया करो, सिपाही गिरी उस आदमी के लिए खतरनाक खेल है जो औरत और शराब का दिलदादा हो |”

यह अल्फ़ाज़ 1175 में सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपने चचा ज़ाद भाई खलीफा अस्सालेह के एक अमीर सैफुद्दीन को लिखे थे | उन दोनों ने सलीबियों को दर पर्दा मदद और ज़रों जवाहरात का लालच दिया और सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी को शिकस्त देने की साजिश की थी | सलीबी यही चाहते थे उन्होंने हमला किया अस्सलाहे और सैफुद्दीन अपना माल व मता छोड़कर भागा | उसकी ज़ाती खेमागाह में रंग बिरंगे परिंदे हसीन और जवान रक्कसाएं और गाने वालियों, साज़ और सजिंदे और शराब के मटके बरामद हुए | सलाहुद्दीन अय्यूबी ने परिंदों को, नाच गाने वालियों और उनके साजिंदों को रिहा कर दिया और अमीर सैफुद्दीन को इस मज़मून का खत लिखा |

“तुम दोनों ने कुफ्फार की पुश्त पनाही करके उनके हाथों मेरा नाम व निशान मिटाने की कोशिस की मगर ये न सोचा कि तुम्हारी ये साजिशें आलमे इस्लाम का भी नाम व निशान मिटा सकती है | तुम मुझ से हसद करते थे तो मुझे क़त्ल कर दिया होता | तुम मुझ पर दो क़ातिलाना हमले करा ही चुके हो | दोनों नाकाम रहे अब एक और कोशिस कर देखो हो सकता है कामयाब हो जाओ | अग़र तुम मुझे ये यकीन दिला दो कि मेरा सर मेरे तन से जुदा हो जाए तो इस्लाम और ज्यादा बुलन्द हो गा तो रब्बे क़ाबा की कसम मैं तुम्हारी तलवार से अपना सर कटवाऊंगा और तुम्हारे कदमो में रचा देने की वसीयत करूंगा | मैं तुम्हे सिर्फ ये बता देना चाहता हूं कि कोई गैर मुस्लिम मुसलमान का दोस्त नही हो सकता | तारीख़ तुम्हारे सामने है अपनी माज़ी देखो | शाह फरेंड और रिमाण्ड जैसे इस्लाम के दुश्मन सलीबी तुम्हारे दोस्त सिर्फ इसलिए बने कि तुम ने उन्हें मुसलमानों के खिलाफ मैदान में उतरने की शह और मदद की थी | अगर वह कामयाब हो जाते तो उनका अगला शिकार तुम होते और उसके बाद ये ख्वाब भी पूरा हो जाता कि इस्लाम सफह हस्ती से मिट जाए |

तुम जंगजू कौम के फर्द हो फने हर्ब सिपाह गिरी तुम्हारा पेशा है | हर मुसलमान अल्लाह का सिपाही है मगर इमान और किरदार बुनियादी शर्त है | तुम परिंदों से ही दिल बहलाया करो | सिपाही गिरी उस आदमी के लिए खतरनाक खेल है जो औरत और शराब का दिलदादा हो | मैं तुम से दरख्वास्त करता हूं कि मेरे साथ तआवुन करो और मेरे साथ ज़िहाद में शरीक हो जाओ | अगर ये न कर सको तो मेरी मुखालफ़त से बाज़ आ जाओ | मैं तुम्हे कोई सज़ा नही दूंगा | अल्लाह तुम्हारे गुनाह माफ़ करे |
आमीन |”
―सलाहुद्दीन अय्यूबी

इस ख़त पर मैं ‘इक़बाल’ के अशआर का इजाफ़ा करना चाहूंगा:
बराहीमी नज़र पैदा मगर मुश्किल से होती है
हवस छुप छुप के सीनों में बना लेती है तस्वीरें

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