नई दिल्ली: कालेधन और भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने के लिए केंद्र सरकार ने नोटबंदी का सहारा लिया। प्रधानमंत्री के इस कदम को जहाँ काफी समर्थन हासिल हुआ वहीँ बहुत बड़ी तादाद में लोगों ने इसकी आलोचना की। नोटबंदी के अगले ही दिन घरों से बैंकों की कतारों तक पहुंचे लोगों की संख्या में अभी भी कोई कमी नहीं आई है।
नोटबंदी को 45 दिन बीत चुके हैं। इस दौरान 100 से ऊपर लोग अपनी जान से हाथ धो चुके हैं, किसान बुवाई न कर पान के कारण बेहाल हैं, मजदूर और गरीब लोग अपनी नौकरियों से हाथ दो चूका है। व्यापार ठप है। मोदीजी की देश को कैशलेस बनाने की मुहिम बहुत अच्छे से काम कर रही है क्योंकि जनता के पास कैश है ही नहीं। एक तरफ लोग इस मुसीबत से जूझने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन एक तरफ सरकार देश के उन कारोबारियों पर शिकंजा पाने में नकामयाब है जो देश से हजारों करोड़ों लेकर विदेशों में भागे हुए हैं।
हाल ही में नोटबंदी के बाद ही सरकार ने किंगफ़िशर के मालिक और भगोड़े विजय माल्या का 1200 करोड़ का कर्ज माफ़ किया है। सरकार ने साबित कर दिया की उनपर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जा रहे आरोप बिलकुल सही है। ये केंद्र सरकार ही उन्हें देश की इकॉनमी को करोड़ों का नुकसान देने का बढावा देती है। माल्या के बाद आर्म्स डीलर संजय भंडारी जिसपर कई जांच चल रही हैं। सूत्रों से पता चला है कि वह भी लंदन में छिपकर बैठा है।
उस पर आरोप है कि तमाम कंपनियों के जरिए कर चोरी व एअरफोर्स के ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट की 4000 की डील में उसका नाम शामिल था। गौर करने की बात यह है कि एक तरफ सरकार कालाधन और भ्रष्टाचारियो को सबक सिखाने की बात करि है और एक तरफ ऐसे लोग जो तमाम पैसा हजम कर सरकार को चख्मा देकर भाग जाते हैं और सरकार को पता होते भी उनके द्वारा कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाता।