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वह हफ्तेभर में बरी होने वाले थे, न्यायपालिका पर भरोषा था तो भागेंगे क्यों? - एड. तहेवर खान

एडवोकेट तहेवर खान पठान से भोपाल एनकाउंटर के सम्बन्ध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा की, जेल में बंद संशयित आरोपियों का ट्रायल हफ्ते भर में ख़त्म होने ही वाला था सिर्फ 18 से 20 गवाहों के बयान लेना बाकी थे. मैं उनका वकील होने के नाते कह सकता हूँ की, उनके खिलाफ तथ्यात्मक रूप से या कानूनी तौर पर कोई भी पर्याप्त सबूत नहीं था. और वह हफ्ते भर में बरी होने वाले भी थे. और उनके हख में फैसला होने वाला यह यह भी उन्हें पता था जबकि उनको भारतीय न्यायपालिका पर पूरा भरोसा भी था तो जेल से भागने का सवाल ही नहीं उठाता.
उन्होंने जेल से भाग जाने की बात को नकारते हुए कहा की मैंने जब यह खबर सुनी तो “चौंक गया” इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश हो सकती है इस मामले की जांच केंद्र की खुफिया एजेंसी से उच्च न्यायालय के एडवोकेट की निगरानी में होनी चाहिए..



सारा खेल बिगाड़ दिया जागरूक गॉंव वाले के मोबाइल से बनाये गये वीडियो ने, भोपाल एनकाउंटर पर बोले इमरान प्रतापगढ़ी
आवाज़ उठाओ इससे पहले कि ख़ामोश कर दिये जाओ
स्क्रिप्ट तो अच्छी लिखी थी मध्य प्रदेश सरकार और पुलिस ने !
कैदी जेल से भागे, मुस्लिम कैदी थे !
कांस्टेबल यादव, जिसे मारने के लिये मोहरा बनाया गया !
उ. प्र. चुनाव के यही दो फैक्टर हैं !
मुस्लिम – यादव
जेल से भागने की कहानी दुनिया को बताई गई, हाई एलर्ट जारी किया गया, इनाम घोषित हुआ, जनता से पहचानने की अपील की गयी !
और मुठभेड के नाम पर सामने से मार दिया गया !
कहानी सच्ची सी भी लगती है
लेकिन सारा खेल बिगाड दिया किसी जागरूक गॉंव वाले के मोबाइल से बनाये गये कुछ वीडियो ने !
भला हो उस गॉंव वाले का, जिसने अनायास ही मोबाइल से वीडियो बना ली, जिसने दुनिया में बहस छेड दी !
देश के तमाम बौद्धिक तबके से अपील करता हूँ कि अब भी वक्त है जागिये
आज मुसलमानों का नम्बर है, कल अलग अलग जातियों का नम्बर आयेगा, ये सत्ता के भूके लोग अपनी राह की हर दीवार हटायेंगे, चाहे वो किसी भी मज़हब या जाति की दीवार क्यूँ ना हो
और कितना हमें बर्बाद करोगे साहब,
क्या सितम अब नया ईजाद करोगे साहब !!
ख़ुद के औलाद नहीं है तो बताओ इतना,
कितनी मॉंओं को बेऔलाद करोगे साहब !! 



मोदी जी ! देश को इंसानी कसाईखाना मत बनाइए
रणधीर सिंह सुमन
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सेंट्रल जेल से भागे सभी आठ कथित सिमी आतंकियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है।
कथित आतंकी सोमवार तड़के जेल में एक प्रधान आरक्षक की हत्या कर जेल से फरार हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने इन्हें गुनगा थाना क्षेत्र में ईंटखेड़ी गांव के पास घेर कर एनकाउंटर में ढेर कर दिया।
इन कथित आतंकियों में जाकिर हुसैन सादिक, मोहम्मद सलीक, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अकील, अमजद, शेख मुजीब और मजीद शामिल थे। सभी आतंकियों पर 5-5 लाख का इनाम घोषित कर दिया था।
 पुलिस के अनुसार सोमवार तड़के साढ़े तीन बजे जेल के बी ब्लॉक में बंद सिमी के आठ आतंकियों ने बैरक तोड़ने के बाद हेड कांस्टेबल रमाशंकर की हत्या कर दी। इसके बाद चादर की मदद से आतंकी दीवार फांदकर फरार हो गए थे।
कारागार में जहाँ कैदी बंद किये जाते हैं, उस कमरे के बाद तीन बड़ी दीवारें होती हैं और हर जगह पहरा होता है। शाम को जब एक बार कैदी बैरक के अन्दर बंद कर दिया जाता है, तो सुबह ही बैरक खोला जाता है, इसलिए वार्डन की हत्या कर कैदियों का भाग जाना कहीं से भी संभव नहीं प्रतीत होता है। जिसकी पुष्टि ईंटखेड़ी गांव के प्रत्यक्षदर्शियों ने आईबीसी 24 चैनल को बताया कि उन लोगों ने कुछ लोगों को भागते हुए देखा था। जब उनलोगों ने उसे रोकने की कोशिश की तो आतंकी उन पर रोड़े बरसाने लगे। इसके तुरंत बाद गांववालों ने पुलिस को इसकी सूचना दी। मौके पर तुरंत पहुंची पुलिस ने थोड़ी ही देर में एनकाउंटर में इन सभी आतंकियों को मार गिराया।
विशेष बात यह भी है कि घटनास्थल पर कोई असलहा कथित आतंकवादियों के पास से नहीं पाया गया है।
भोपाल में सिमी के कैदियों को एनकाउंटर में मार गिराने की बात तथ्यों के विपरीत होने के कारण फर्जी मुठभेड़ है, इसकी जांच कराए जाने की आवश्यकता है। यह जेल से निकाल हत्या है।
भोपाल सेंट्रल जेल देश के चुनिंदा आधुनिक अति सुरक्षित जेलों मे माना जाता तो ऐसे कैसे हो गया कि 8 बन्दी एक गार्ड का मर्डर भी कर देते हैं और फिर भाग भी जाते हैं और किसी को कानो कान खबर भी नहीं हुई ?
 ये कि जेल से भागने के 10 घंटे बाद भी आठों बंदी 10 किलोमीटर भी नहीं भाग पाये और एक साथ एक जगह छिपे रहे ? 
मध्यप्रदेश सरकार के गृह मंत्री कहते हैं कि फरार कैदियों के पास कोई हथियार नही था, तो पुलिस के आला अधिकारी कह रहे हैं कि वो हथियारों से लैस थे और उन्होंने पुलिस पे फायर किये जिसके बदले में पुलिस ने उन्हें मार गिराया।
उपरोक्त परिस्थितियां इस बात को और बल देती हैं कि एनकाउंटर फ़र्ज़ी है।
ऐसे क्या हालात पैदा हो गए कि पुलिस को आठों कैदियों को जान से मारना पड़ा? क्या उनमें से कोई ज़िंदा नही पकड़ा जा सकता था ?
दिल्ली से अलका लांबा ने ट्वीट कर कहा है कि-
पहले आठ आतंकियों का भागा जाना और फिर एनकाउंटर में एक साथ मारे जाना। इसके लिए मप्र सरकार के पास ‘व्यापमं’ फार्मूला था।
वहीं भारतीय क्म्युनिस्ट पार्टी के उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गिरीश ने फेसबुक पर लिखा है एक को भी जिन्दा न पकड़ पाना और जेल से भाग जाने देना भी बहादुरी है और देशभक्ति भी।  
जेल के अन्दर से अगर निकाल कर मुठभेड़ के नाम पर हत्याएं की जा रही हैं तो यह सब संघ परिवार के घिनौने चहरे को प्रदर्शित करती हैं। प्रधानमंत्री से कहना चाहूँगा कि आप संघ के प्रचारक अवश्य रहे हैं लेकिन देश के प्रधानमंत्री भी हैं और इस तरह की कार्यवहियाँ देश को इंसानी कसाईखाने के रूप में तब्दील कर रही हैं। इससे देश का चेहरा बदरंग हो रहा है।



मैंने खुद फ़ोर्स को सिमी क़ैदियों के मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा” – पत्रकार प्रवीण दुबे

“सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..?” – एनकाउंटर का लाइव कवरेज करने वाले पत्रकार प्रवीण दुबे का सवाल
भोपाल की केंद्रीय जेल से फरार सिमी आतंकियों के एनकाउंटर पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने तो सवाल उठाए ही हैं। घटना का लाइव कवरेज करने वाले भोपाल के युवा पत्रकार जी मीडिया संवाददाता प्रवीण दुबे ने भी पुलिस को यह कहकर कटघरे में खड़ा कर दिया है की इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..?
ध्यान रहे की कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाए हैं कि सरकारी जेल से भागे हैं या किसी योजना के तहत भगाये गए हैं?
जांच का विषय होना चाहिए कि कहीं मिलीभगत तो नहीं है। आप विधायक अलका लांबा ने भी एनकाउंटर पर सवाल उठाए। सांसद ओबैसी ने तो जींस -शर्ट,जूतों पर सवाल किया है की क्या जेल में उन्हें जींस-शर्ट, जूतों में सजाकर रखा जाता था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय जेल से प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के आठ आतंकवादियों के फरार होने की घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने की घोषणा की है। उन्होंने एडीजी जेल के पद पर सुधीर साही को पदस्थ किया है। सुधीर साही जेल की सुरक्षा और अन्य पहलुओं की जांच करेंगे और जेलों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करेंगे। उन्होनें पुलिस कर्मियों की सफलता पर एकबार फिर बधाई दी है।
आइये देखते हैं भोपाल के युवा पत्रकार जी मीडिया संवाददाता प्रवीण दुबे ने अपने फेसबुक वाल पर क्या चौकाने वाला लिखा है:
शिवराज जी..,
इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है….।
मैं खुद मौके पर मौजूद था..सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं…।
आपके वीर जवानों ने ऐसे मारा कि अस्पताल तक पहुँचने लायक़ भी नहीं छोड़ा…न…न आपके भक्त मुझे देशद्रोही ठहराएं, उससे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ…मैं उनका पक्ष नहीं ले रहा….उन्हें शहीद या निर्दोष भी नहीं मान रहा हूँ।
लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..?
मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया..?
उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे..।
मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें.. उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया…।
और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई…एकाध को तो जिंदा पकड लेते….उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे..?
अब आपकी पुलिस कुछ भी कहानी गढ़ लेगी कि प्रधानमन्त्री निवास में बड़े हमले के लिए निकले थे या ओबामा के प्लेन को हाइजैक करने वाले थे, तो हमें मानना ही पड़ेगा क्यूंकि आठों तो मर गए… ।
शिवराज जी सर्जिकल स्ट्राइक यदि आंतरिक सुरक्षा का भी फैशन बन गया तो मुश्किल होगी…फिर कहूँगा कि एकाध को जिंदा रखना था भले ही इत्तू सा…सिर्फ उसके बयान होने तक….।
चलिए कोई बात नहीं…मार दिया..मार दिया लेकिन इसके पीछे की कहानी ज़रूर अच्छी सुनाइयेगा, जब वक़्त मिले…कसम से दादी के गुज़रने के बाद कोई अच्छी कहानी सुने हुए सालों हो गए….।
आपका भक्त


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