इस वजह से 2000 के नये नोट को अमान्य घोषित करने की मांग!
नई दिल्ली: मद्रास हाई कोर्ट ने आज केंद्र सरकार से पूछा है कि किस अधिकार के तहत उन्होंने 2000 के नोट पर देवनागिरी का इस्तेमाल किया? हजार के नए नोट में देवनागरी लिपि के प्रयोग की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ में एक जनहित याचिका लगाई गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह लिपि अनुच्छेद 343 (1) के विपरीत है. दरअसल मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच में केपीटी गणेशन, जो कि मदुरै के निवासी है उन्होंने जनहित याचिका दायर की.
जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर अब वित्त मंत्रालय से जवाब भी मांगा गया है. याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार राजकीय प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों में अंतरराष्ट्रीय फॉर्म का ही प्रयोग हो सकता है. जबकि राजभाषा अधिनियम 1965 के तहत देवनागिरी अंक के उपयोग का कोई प्रावधान नहीं है.
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि देवनागरी अंकों के उपयोग भारतीय संविधान के खिलाफ है और इसे अमान्य घोषित किया जाए. याचिकाकर्ता ने या भी दलील दी कि राजभाषा अधिनियम, जो 1963 में अधिनियमित किया गया था उसमे अंकों के देवनागरी रूप का उपयोग के लिए कोई प्रावधान नहीं है. यहां तक कि राष्ट्रपति ने भी इसकी इज़ाज़त नहीं दी है.
गणेशन के वकील ने अदालत में कहा कि केंद्र सरकार ने इसके लिए न तो कोई कानून पारित किया ऐसे में 2000 के नोट को अमान्य घोषित किया जाये.
8 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रूपये के नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा की थी और नए 500 और 2000 के नोटों की घोषणा की थी.
इस याचिका की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने वित्त मंत्रालय से इसका जवाब मांगा है.