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दुनिया ने मुसलमानों से सिखा पुरुषो के लिखू तलाक और महिलाओं के लिए खुला - दिलीप मंडल

नई दिल्ली, दिलीप मंडल एक वरिष्ठ पत्रकार है जो नेशनल मीडिया का जानामाना बहुजनवादी चहरा है. मंडल हमेशा से अपने सटीक बातो के लिए से चर्चा में रहते है. वह बहुजनो के हित की बात करते है. सोशल मीडिया पर उन्हें लाखो लोग फॉलो करते है. उनका मानना है की, यह दौर सोशल मीडिया का है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पीछे-पीछे चल रहा है और सोशल मीडिया आगे-आगे. इलेक्ट्रोनिक मीडिया किसी ना किसी का बंधा हुआ है और सोशल मीडिया निप्पक्ष है. उन्होंने तिन तलाक के मुद्दे अपना अमूल्य मत व्यक्त करते हुए लिखा,



शादी के वक्त लड़की की रजामंदी पूछने का साहस जिस समाज में न हो, वह दूसरों को विवाह और नैतिकता के उपदेश दे, यह अच्छी बात नहीं है। पुरूषों के लिए तलाक और महिलाओं के लिए खुला यानी विवाह के कानूनसम्मत अंत के बारे में दुनिया ने मुसलमानों से सीखा है। विवाह जब न चल पाए तो अलग हो जाना ही बेहतर है, यह विचार दुनिया को इस्लाम की देन है। कैथलिक ईसाई और हिंदू धर्म में विवाह एक धार्मिक पवित्र बंधन है, जिसे हर हाल में निभाया जाना है। इनमें अब जाकर सुधार आया और तलाक का प्रावधान जोड़ा गया। 
वैटिकन में आज भी तलाक मुमकिन नहीं है। फिलीपींस में मुसलमानों के अलावा और किसी को तलाक नहीं मिल सकता। बाबा साहेब के लिखे हिंदू कोड बिल में पहली बार हिंदुओं को तलाक का अधिकार देने की कोशिश गई। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 से पहले हिंदू अपनी शादी नहीं तोड़ सकते थे। पारसी मैरिज और डिवोर्स एक्ट 1936 में बना। भारतीय ईसाइयों को यह अधिकार 1869 में मिला। मुसलमानों को यह अधिकार इस्लाम के आने के साथ ही मिल चुका था। समस्याएँ होंगी। लेकिन बाहर से आपके कोंचने से कुछ नहीं होगा। तलाकशुदा महिलाओं के बारे में जिन सुधारों की जरूरत है, वह मुसलमान कर लेंगे। उनकी मदद कीजिए। मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा है। बुरा हाल है। हो सके तो सरकार को उनके लिए गल्र्स स्कूल खोलने चाहिए। लड़कियों को स्कॉलरशिप देनी चाहिए। बशर्ते नीयत में ईमानदारी हो। वैसे भी, आपके पास इतना ज्ञान और अनुभव नहीं है कि आप मुसलमानों को विवाह करने और तोड़ने के बारे में बताएँ। हिंदुओं में तो अभी अभी तक विधवाओं को जला देने का चलन था। विधवा विवाह भी नई चीज है। बिना तलाक छोड़ देना बहुत ज्यादा है। गर्भ में बेटियों को मारने का चलन ज्यादा है। जेंडर रेशियो मुसलमानों से बुरा है। दहेज हत्याएँ हैं। (दिलीप मंडल राष्ट्रीय वरिष्ठ बहुजन्वादी पत्रकार है, यह उनके सटीक विचार है)



अभिषेक कुमार
दिलीप मंडल जी ने जिस तरह मुस्लिम डायवोर्स सिस्टम को सपोर्ट किया है किसी भी दुसरे डायवोर्स सिस्टम के उपर ये वाकयी मे एक हिम्मत की बात है और बहुत जरुरी भी था इस वक्त।मियां बिवी मे ना बन रही हो तो वो तलाक ले सकते हैं ये सिस्टम सबसे पहले ईस्लाम ही ले के आया था जो की और दुसरे धर्म मे नही था। उसमे लड़ते मरते एक दुसरे को साथ रहना पड़ता था और इसमे ज्यादा नुकसान महिला को ही झेलना पड़ता था। और दुसरा ये भी की विधवा महिला से भी शादी का सिस्टम पहले ईस्लाम ही ले के आया।बाकी इसके बाद ही पुरी दुनिया मे अब है और हमारे संविधान मे भी। वैसे इन सब चीजों से मै भ्रमित रहा था काफी वक्त। लेकिन कोई भी तार्किक रुप से इसको समझे तो ये समझ आ जायेगा की ये और किसी भी सिस्टम से बेहतर और उपर है।मोदी जी भी इस चीज को चालिस साल पहले समझ लेते तो कम से कम उनकी बिवी आज खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रही होती अपने नये परिवार के साथ।

अब जैसे दिलीप जी ने इस सिस्टम को सपोर्ट कर दिया है तो मुझे लगता है यहां सबसे ज्यादा आग बैलेंसवादी ग्रुप को लगेगी जो खुद को नास्तिक लिबरल कहते हैं। क्योंकि संघ और इन लिबरलवादियों मे कोई फर्क नही।ये लिबरलवादी लोग मुस्लिम महिलाओं के सच्चे पैरोकार रहे हैं।

और मेरा पुरा अंदेशा है की दिलिप जी का विरोध तेज होगा अब। वैसे मैने इस लिबरलवादी ग्रुप का नाम पब्लिसिटी स्टंट ग्रुप भी रखा है।जो की इनकी नियत के अकॉर्डिंग, फेक कैरेक्टर की वजह से है।और संघियों से बडे वाले दोगले भी हैं जो हमारे बीच रह के ही भ्रम फैलाते हैं और फुट डालने का काम करते हैं निष्पक्षता के नाम पे।




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