जब भी सुबह अख़बार देखता हूँ या किसी भी समय न्यूज देखता हूँ तो प्रमुख न्यूज कश्मीर पर जरूर मिलती है। न्यूज पेपर या न्यूज चैनल खबर ऐसे पेश करते है जैसे प्रत्येक कश्मीरी आज हथियार उठाये हुए है। अख़बार में बड़े-बड़े फोटो मिलेंगे "पत्थर मारते कश्मीरी और अपना बचाव करते सेना के मासूम सैनिक"
पुरे प्लान के साथ ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे कश्मीर का प्रत्येक नागरिक उपद्रवी है, वो आंतकवादियो के साथ खड़ा है और कश्मीरी आज भारत की सैन्य ताकत को चुनोती दे रहा है। लेकिन हमारासैनिक फिर भी हमला नही कर रहा। वो सैनिक जो प्रशिक्षित है दुश्मन के छक्के छुड़ाने में, वो सैनिक जिसने पाकिस्तान को युद्ध में कई बार धूल चटाई है। लेकिन वो मासूम सैनिक कश्मीर के नागरिकों केपत्थर का जवाब अपने ऊपर पत्थर खा कर, छिपकर कर रहा है। सैनिक घायल है लेकिन जवाबी करवाई नही कर रहा कही जवाबी करवाई कर भी रहा है तो वो भी मजबूरी में ये वो ही जवान है जिसने प्राकृतिक आपदा में कश्मीरियों की जान और मॉल की रक्षा की है लेकिन ये अहसान फ़रामोश कश्मीरी उसी सैनिक पर पाकिस्तान के कहने पर पत्थर मार रहे है, उसके खिलाफ हथियार उठाये हुए है। भारत के टुकड़ों पर पलते है, नमक भारत का खाते है लेकिन वफादारी पाकिस्तान सेकरते है।
इससे भी ज्यादा जहर कश्मीरियों के प्रति इस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ में आपको रोजाना देखने को मिल जायेगा। ये ही बराबर हालात आदिवासियों के प्रति, पूर्व के 6 स्टेट के नागरिकों के प्रति, दलितों के प्रति, अल्पसंख्यको के प्रति मिलता है। इससे कई गुना हमदर्दी उन सैनिको के प्रति मिलती है।
आज मिडिया एक पूरा माहौल पीड़ित तबको के खिलाफ और जुल्म करने वालो के समर्थन में बना रहा है।
ताकि जो सिविलियन इलाके है जहाँ से ज्यादा तादात में सैनिक सेना में आते है। वहाँ ऐसा रति भर भी अहसास न हो की वो लोग सत्ता के हथियार के रूप में काम कर रहे है और अपने ही किसान मजदूर भाइयों का दमन कर रहे है। क्योकि देश का सैनिक भी और पीड़ित आवाम भी मजदूर -किसान परिवार से है। इसलिए दोनों को लड़ाना है तो दुश्मन बनाना जरूरी है और दुश्मन बनाने के लिए ये झूठ प्रचार जरूरी है।
देश की पोलिस, अर्धसैनिक, सैनिक बल जिनके खिलाफ करवाई कर रहे है वो देश के दुश्मन है इसलिए देश के दुश्मन को खत्म करके वो देश और मानवता की भलाई कर रहे है। मिडिया बड़ी ही चतुराई से सत्ता के पक्ष में ये सब कर रहा है।
लेकिन हालात कितने उलटे है अगर ये ईमानदारी से किसी अमन पसन्द नागरिक को बता दिया जाये तो वो सदमे से मर जायेगा। पिछले 30 दिन में कश्मीर में कश्मीर के लोग आंदोलन कर रहे है। उस आंदोलन में 60 के आस पास कश्मीरी, अर्धसैनिक बलों या पोलिस की गोली से मारे गए। ये आंकड़ा तो सरकार का है वहाँ की जनता का आंकड़ा इससे ज्यादा हो सकता है। 4500 नागरिक घायल है, हजारो लोगो की आँखों की रौशनी चली गयी। मतलब आँख गयी तो सबकुछ गया। अपने आस-पास किसी अंधे आदमी को देखना और फिर सोचना की एक अंधे आदमी की जिंदगी कितनी भयानक होती है। क्या प्रदर्शन करने की सजा ऐसी होती है। कितनी महिलाओ से बलात्कार हुआ होगा उनकी गिनती सायद ही कोई करता हो। क्योकी बलात्कार करने की छूट तो युद्ध में प्रत्येक राजा अपनी सेना को देता है ये कबीलाई लड़ाई के समय से ही चलन में है। जो युद्ध में हारा है वो गुलाम है और गुलाम से जो व्यवहार करें ये इनकी नीति में है। सैनिको को खुश करने के लिए ये छूट सत्ता आदिम काल में भी देती थी और इस 21वीं शदी में भी दे रही है। जबकी हम सभ्य होने के दावे कर रहे है। बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ के नारे दिए जा रहे हो।
सभी देशों के चौथे स्तम्भ ISISI की वो खबरे तो प्रमुखता से दिखाएंगे जिसमे हारी हुई महिलाओ का सौदा जीती हुई सत्ता सरे बाजार कर रही है।
लेकिन ये ही दोगली मिडिया अपने देश की वो घटना कभी नही दिखाएंगे जो उनके देश में उनकी सत्ता और उनकी सेना कर रही है।
क्यों नही सोनी सोरी दिखती जिसकी योनि में पत्थर भर दिए गए पोलिस थाने में पोलिस अधीक्षक की मौजूदगी में, उसी पोलिस अधीक्षक को माननीय राष्ट्रपति से बहादुरी का अवार्ड मिलता है। क्यों नही हिड़मे दिखती जिसके साथ थाने के लॉकअप में सामूहिक रेप किया जाता है, क्यों नही खबर बनती वो आदिवासी महिला जिसको अर्धसैनिक बल घर से उठाते हैं सामूहिक बलात्कार करते है उसके कोमल से शरीर को 22 गोलियों से छलनी कर देते है। फिर अपने पास से एक नई माओवादियों की वर्दी पहनाते है उसके हाथ में बन्दूक पकड़ाते है। और अपने इस जंघन्य अपराध पर पर्दा डालने के लिए एलान करते है कि इनामी माओवादी नेता मुठभेड़ में देश के बहादुर सैनिको ने मार गिराई। क्यों नही आदिवासियों के उजड़े, जलाये, लुटे हुए हजारो गांव दिखते जिनको बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए उजाड़ दिया गया। क्यों नही जेल में सड़ते लाखो आदिवासी नोजवान नही दिखते जिनको सिर्फ इसलिए जेल में डालदिया गया क्योंकि वो विरोध कर रहे थे इस लूट का
क्यों कभी सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला मुख्य खबर नही बन पाता जिसमे उसने कहा कि सेना ने अफ्सफा का दुरप्रयोग किया है। हजारो निर्दोष अमन पसन्द नागरिकों को मारने में इन पर मुकदमा चलना चाहिए। बलात्कार का मुकदमा इन पर चलना चाहिए।
देश के नागरिकों के आगे ये सच्चाई लाने का दायित्व मिडिया का बनता है। लेकिन मीडिया पर कब्जा सत्ता का हैऔर सत्ता और कब्जा साम्राज्यवादी देशो का है। इसलिए वो पुरे प्लान के साथ आपके दिमाक में पीड़ितों के प्रति जहर भर रही है। आपके अन्दर इतना गुस्सा पीड़ित तबको के खिलाफ भर रही है की आप उनको अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझोऔर सत्ता अपने आपको आपके आगे ऐसे पेश कर रही है जैसे उनसे ज्यादा मासूम कोई है ही नही।
वो ही मीडिया आपके आस-पास हुई घटनाओं पर जैसे दिल्ली में हुए निर्भया रेप पर, महिला हिंसा, घरेलू हिंसा पर ऐसे हायतौबा मचाने का नाटक कर के दिखाता है, बड़ी-बड़ी चर्चाएं करेगा, प्राइमटाइम शो करेगा जैसे लगे की इन अमानवीय घटनाओं पर मिडिया संजीदा हैऔर ऐसी अमानवीय घटनाएं वो कभी भी सहन नही करेगा।
लेकिन वो कभी सोनी सोरी, हिड़मे पर चर्चा नही करेगा, वो कभी उन पर चर्चा नही करेगा की क्यों सरकार हजारो रेप केस की पैरवी करती है जिसमे उनके सैनिक आरोपी है।
वो मायावती पर गन्दी टिप्पणी करने वाले दयाशंकर को बचाने के लिए बड़ी आसानी से दयाशंकर की पत्नी और बेटी को पूरे दिन पीड़ित के रूप में दिखाता रहेगा। ये मिडिया का हर रोज का काम है।
मै जो सच्चाई लिखने की कोशिश इस लेख में कर रहा हूँ वो आम नागरिक को हजम होना मुश्किल है क्योंकि वो देश के सैनिक को रक्षक के रूप में देखता है क्योंकि ये रक्षक वाला विचार बड़ी चालाकी से सत्ता और उसके अंग मिडिया ने आम नागरिक के दिमाक में बैठा दिया है। लेकिन हालात इससे कई गुना खराब है। इसको समझने के लिए हमे हमारे आस-पास नजर दौड़ानी चाइये। हमारी पोलिस के कारनामो पर, जिनको सिर्फ डंडे की पावर मिली है वो फिर भी कैसे आंतक मचाये हुए है। तो जिसको बन्दूक की पावर मिली हुई है वो क्या करता होगा।
मै आपको कुछ घटनाएं बताना चाहता हूँ। उनकी प्रमाणिकता तो मेरे पास नही है अगर होती तो आरोपी जेल में होते।
1. एक बार पोलिस के जवान जेल से कैदियों को लेकर कोर्ट में जाते है। एक कैदी कोर्ट से चुपके से फरार हो जाता है। जब तक पोलिस को पता चलता देर हो चुकी थी। कैदियों की गिनती तो वापसी में पूरी करनी है नही तो सबकी नोकरी जायेगी इसलिए पोलिस SHO नोकरी बचाने के लिए एक बड़ा शातिर गेम खेलता है। वो रेल स्टेशन से एक मजबूत से दिखने वाले बिहारी मजदूर को ले कर आता है उससे बोलता है कि आपको नोकरी लगवा देता हूँ। आपको अपना नाम और बाप का नाम (जो भगोड़े कैदी का नाम था) ये बताना है। बिहारी मजदूर को नही पता की मामला क्या है वो उनकी बातों में आ जाता है। नोकरी लगाने की एवज में SHO उससे हजार रूपये भी ले लेता है। पोलिस जेल में गिनती पूरी कर देती है। मजदूर को अंदर जाने के बाद पता चलता है कि वो तो गलत फंस गया लेकिन डरता कुछ बोलता नही। लेकिन कुछ समय बाद मामला जेल के अंदर उजागर हुआ। जेल प्रशासन ने पोलिस अधीक्षक को लिखा। पोलिस अधीक्षक ने उस SHO को बुलाया। अब चोर मोसेरे भाई-भाई
सच्चाई जानकर अधीक्षक महोदय ने SHO को शाबासी दी। जेल प्रशाशन को वापिस पत्र लिखा की हमने इंकवारी कर ली है हमारे पोलिस स्टाफ ने उस दिन पूरी और सही गिनती आपके स्टाफ को करवा दी थी। हमारा स्टाफ पाक-साफ है।
2. एक SHO बाजार से 150 चाकू खरीद कर ले आता। फिर वो कही से भी 4-5 बिहारी मजदूरों को पकड़ता उनकी जमकर पिटाई करता उन सभी के पास से एक-एक चाकू बरामद दिखा देता। उन चाकुओं को पूरे महीने में वो ऐसे ही प्रवासी मजदूरों के चेप देता। पोलिस अधीक्षक SHO को शाबासी देता है की आप बहुत मेहनत से काम कर रहे हो। अब प्रवासी मजदूर इसलिए टारगेट पर होते है क्योंकि उनकी पैरवी करने वाला वहाँ कोई होता नही इसलिए वो आसान शिकार होते है। कोर्ट में भी वो अपनी पैरवी कर नही पाते।
3. एक बार एक मर्डर हुआ। बहुत छानबीन के बाद भी कोई सुराग पोलिस को नही लगा। SHO साहेब ने पकड़ा एक बिहारी मजदूर फिर थर्ड डिग्री का प्रयोग, फिर मर्डर में प्रयोग की गयी रॉड बरामद करने के लिए SHO ने अधीक्षक महोदय को फोन लगाया और रिपोर्ट किया कि जनाब मर्डर की गुत्थी सुलझ गयी है। खुनी बिहारी है इसने लूट के लालच में मर्डर किया। खून करने में जिस रॉड का प्रयोग किया वो इसने फैला वाटर टैंक में डाली हुई है। आप गोताखोर का इंतजाम करवा दीजिये या महकमे से टैंक खाली करवा दीजिये। उनके बाद रॉड भी वहाँ से बरामद हो गयी।
ये तो सिर्फ 3 घटनाएं है ऐसी लाखो घटनाएं आपको मिल जायेगी। जब डंडे में इतनी पावर है तो जिनको बन्दूक दी हुई है उनके पास कितनी होगी। अब सवाल ये है कि सरकार अपने ही नागरिकों के साथ ऐसा क्यों कर रही है। उतर साफ है पिछले 20 सालों में 2 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है आज खेती घाटे का सौदा बनी हुई है, ऐसे ही हालात खेत मजदूर से लेकर औधोगिक मजदूर के है, श्रम कानूनों को मालिको के हित में बदलाजा रहा है, देश का नोजवान बेरोजगार है, सरकार पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पानीजैसी जनकल्याणकारी योजनाओं को निजी हाथों में सौपना चाहती है। सरमायेदार के फायदे के लिए सरकारी महकमो को निजी किया जारहा है। देश के सभी प्राकृतिक संसाधनों, खदानों को अमेरिका व् उसके सांझेदार देशो को लूटने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। इन जन विरोधियो नीतियों के खिलाफ आम जनता गोलबन्ध न हो इसके लिए भारत और पाकिस्तान की सत्ताएँ एक दूसरे को दुश्मन के रूप में अपनी जनता के आगे पेश कररही है और कश्मीर-कश्मीर खेल रही है। पिछले लंबे समय से कश्मीर में कश्मीर के लोग कश्मीर की स्वायस्ता के लिए आंदोलन कर रहे है। लेकिन जैसे ही उस आंदोलन को पाकिस्तान ने स्पोर्ट करना शुरू किया। भारत सरकार ने इस आंदोलन को पाकिस्तान स्पोर्टिडिड आंदोलन बोलकर जमकर दमन किया। अपने दमन को जायज ठहराने के लिए आम भारतीय जनता में से सरकार ने कहा कि इस आंदोलन को पाकिस्तान स्पोर्ट कर रहा है वो हमारे देश को तोडना चाहता है। इसलिए कश्मीर के आंदोलन से आम भारतीय प्रगतिशील जनता भी दूर हो गयी। अब ठीक ये ही कार्ड भारत सरकार ने बलूचिस्तान, POK,गिलिगीत के स्वायस्ता के आंदोलन का पक्ष लेकर किया है। अब पाकिस्तान को भी मौका मिल जायेगा भारतीय स्पोर्टिड आंदोलन बोलकर बदनाम करने और दमन करने का।
ये दोनों फासीवादी सताये अपने स्टेट के आंदोलन को दबाने के लिए एक दूसरे का सहारा ले रहे है
इस खेल में मर कश्मीरी रहा हैऔर साथ में मर रहा है भारत और पाकिस्तान के मजदूर-किसान का वो बेटा जो सत्ता के जाल में फंस कर सत्ता की तरफ से लड़ रहा है। इसलिए अपनी आँख खोलिये और सत्ताओ के इस खेल को समझने की कोशिश कीजिये,उन करोड़ो पीड़ितों का दर्द समझने की कोशिश कीजिये जिनको सत्ता ने कुचला है और कुचलने में सत्ता ने प्रयोग किया है अपनी पोलिस और सेना को
उस पर पर्दा डालने के लिए इस्तेमाल किया है मिडिया का
UDAY CHE