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हम हर वक्त निस्वार्थ रूप से मजलूमों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे - अहेमद कुरेशी

दिलीप मंडल जी भारत के जाने माने शख्सियतो में से एक एक वरिष्ठ पत्रकार है. रोखठोक बोलने में भी मशहूर है. जब वह कुछ बोलते है तो यह नहीं देखते की वह जो कह रहे है किसके खिलाफ है या किसके समर्थन में. सिर्फ वह सच का साथ देते है. हमने उनके कई स्टेटमेंट पहले भी प्रकाशित किये है जो दलितों के हित में थे. दलितों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ थे. दिलीप मंडल जी ने इस बार मुसलमानों पर हो रहे जुल्म को लेकर एक सच दुनिया के सामने लाया और अपने ही मजलूम भाइयो को फटकार लगाई और मजलूम मुसलमानों का साथ देने की बात कही.
दिलीप मंडल अपनी फेसबुक वाल पर लिखते है....


जब-जब एस सी संकट में होता है मुसलमान उसके साथ होता है, 2002 में कहाँ थे एससी - दिलीप मंडल
"आप हमारे हैं कौन?
गुजरात में आज SC संकट में है, तो मुसलमान उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.
अहमदाबाद से ऊना की आजादी कूच में न सिर्फ मुसलमान शामिल हैं, बल्कि मुसलमान बस्तियों में यात्रा पर फूल बरसाए जा रहे हैं. अगर यही इंसानियत 2002 में दलितों ने दिखाई होती और दंगाइयों के सामने दीवार बन कर खड़े हो गए होते... तो भारत का राजनीतिक इतिहास कुछ और होता.
मुसलमान यह नहीं पूछ रहा है कि 2002 में आप हमारे साथ क्यों नहीं थे. मुसलमान मजलूमों के साथ खड़ा है, इसलिए आपके साथ है. वह बीजेपी राज में, जोखिम उठाकर आपकी यात्रा पर फूल बरसा रहा है.
लेकिन याद रहे. एकता और दोस्ती एकतरफा नहीं होती. गुजरात के दलितों को 2002 की गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए.
यूपी में मुसलमानों का वोट चाहिए और गुंडे मुजफ्फरनगर कांड करते रहें, ये दोनों एक साथ नहीं हो पाएगा. दंगा रोकना दलितों की जिम्मेदारी है- दिलीप मण्डल



और वह एक पोस्ट में कहते है
एक गाय को मारने के लिए जाने के शक में आपने लातेहार में दो लोगों को टांग दिया, जिसमें एक बच्चा था.
जयपुर में राज्य सरकार की गोशाला में कीचड़ और दलदल बन जाने और लापरवाही के कारण सैकड़ों गोमाताएं मर गईं....ट्रक भर-भर कर मरी गाएं फेंकी जा रही हैं. हालांकि जिस तरह उनकी पसलियों निकली हुई हैं, उससे लगता है कि उन्हें खाना नहीं दिया जा रहा था.
अब किसे टांगोगे? वसुंधरा राजे को? है हिम्मत? - दिलीप मंडल
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गौरतलब है की, असम हिंसा हो या गुजरात काण्ड हो, मुहम्मद साहब की बदनामी हो या मुजफ्फरनगर हो, गोहत्या के मामले में मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया हो या पूना के निर्दोष मोहसिन शेख हो. जब-जब भी मुसलमानों पर संकट आया तब-तब मुसलमान अकेला हुआ. अकेला होने के कारण ही मुसलमानो के साथ कभी न्याय नहीं हुआ. लेकिन रोहित वेमुला हो या अहमदनगर हत्याकांड, गुजरात का उना शहर हो या दलितों का क़त्ल, डा. बाबासाहब की बदनामी हो या छत्रपति शिवाजी महाराज की बदनामी हो. हर वक्त आपको मुसलमान यही उम्मीद में आगे खडा दिखेगा की हमारे गैरमुस्लिम एससी भाई हमारे संकट के वक्त हमारे साथ खड़े होंगे. हजारो मुसलमानों का क़त्ल हुआ लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. लेकिन मुसलमानों की उम्मीद अभी बरकरार है. इस बात पर उन सभी इंसानों ने इंसानियत देखनी चाहिए ना की अपना स्वार्थ. मुसलमानों को पैगम्बर मुहम्मद (स.) का आदेश है की, मजलूमों के साथ मिलकर जालिमो से लड़ो, बस इसी फर्ज को अदा करने के लिए मुसलमान हमेशा से हर जाती एवं धर्म के३ लोगो के साथ खडा होता है.



मैंने इस बात पर कभी गौर नहीं किया था की दलितों ने कभी मुसलमानों का साथ दिया है या नहीं. लेकिन इस बात पर जरुर ध्यान दिया था की मुसलमान हर वक्त अपने एससी (दलित) भाइयो के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडा रहता है. लेकिन दिलीप मंडल जी ने मुझे इस सच पर गौर करने को मजबूर किया इसलिए दो लाइन लिख दी. लेकिन ऐसा नहीं होगा की, एससी ने हमारा साथ नहीं दिया तो हम उनका साथ नहीं देंगे. जरुर हम हर मजलूम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे
-अहेमद कुरेशी

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