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जम्मू की आबादी में इस कत्लेआम की वजह से ही मुस्लिम अल्पसंख्या में आ गये

महाराजा हरी सिंह की सेना और आरएसएस के गुंडों ने जम्मू में आजादी के समय ढाई लाख मुसलमानों का क़त्ल किया था . जम्मू की आबादी में इस कत्लेआम की वजह से ही मुस्लिम अल्पसंख्या में आ गये जम्मू से जान बचा कर भागे मुसलमानों की बातों से जोश में आकर कबाइलियों नें पलट कर हमला किया .कबाइलियों के साथ पकिस्तान की फौज भीआयी थी . अगर अपके देश की सीमा पर इतना बड़ा कत्ले आम हो तो पड़ोसी मुल्क अक्सर वहाँ हस्तक्षेप करते है जैसे पश्चिमी पकिस्तान ने पूर्वी पकिस्तान में कत्लेआम किया तो इंदिरा गांधी नें जनता का साथ देने के लिए अपनी सेना भेजी थी , और भारतीय सेना नें पकिस्तान के दो टुकड़े कर के एक नया देश बंगलादेश बनवा दिया .

कश्मीर में कबाइलियों और पाकिस्तानी फौज के हस्तक्षेप के बाद भारत की सेना नें कार्यवाही करी . कुछ ही दिनों में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बीच में आकर युद्ध विराम करवा दिया . अगर भारत अपनी सेना को उसी समय एलओसी पर नहीं रोकता तो भारतीय सेना को संयुक्त राष्ट्र संघ की सेनाओं से युद्ध करना पड़ता .हरी सिंह ने मजबूर होकर एक्सेशन पेपर पर दस्तखत किये और शर्त यह तय हुई कि भारत कश्मीर से अपनी सेना वापिस बुलाएगा , पकिस्तान अपने कंट्रोल वाले हिस्से से अपनी सेना वापिस बुलाएगा , इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की देखरेख में निष्पक्ष माहौल में कश्मीरी जनता की राय ली जायेगी .इस वादे को किये हमें ६९ साल बीत चुके हैं आप कितना भी शोर मचाते रहें कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तथ्य यह है कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है आज भी कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र का आफिस है कश्मीर में भारत का गृह मंत्री नहीं जाता बल्कि 


विदेश मंत्री जाता है कश्मीर का अपना एक झंडा है कश्मीर की जनता जब भी भारत से बात करना चाहती है उसे बातचीत के बदले मिलता है सेना का आतंक आवाज़ उठाने वालों केसाथ मारपीट , बलात्कार , हत्याएं , गायब कर देना कश्मीर में हजारों औरतों को हाफ विडो यानी आधी विधवा कहा जाता है यानी उसे पता ही नहीं है कि उसका पति जिंदा है या मर चूका है दर्दपुरा गाँव में इतने मर्दों का कत्ल हुआ और औरतों केसाथ बलात्कार हुआ कि अब वहाँ की लड़कियों की शादी नहीं होती एक दुसरे गाँव में ५४ औरतों के साथ सैनिकों नें सामूहिक बलात्कार किये दर्दपुरा की औरतें सैनिको के लिए जिस्म बेच कर जिंदा हैं आपके ऊपर अगर कोई इतना दमन और आपकी इतनी बेईज्ज़ती करे और आप से कोई बात करने को तैयार न हो ? तो आपका अपना वजूद खुद पूछेगा कि नहीं कि मैं जिंदा हूँ क्या ? और तुम्हारी तरह इंसान हूँ ये साबित करने के लिए बताओ मैं क्या करूं ?


कश्मीरी पत्थर उसी बेबसी से निकल कर आप की भेजी गयी बन्दूकों से टकरा रहे हैं आप भी इंसान हैं , कभी कश्मीरी लोगों की तकलीफें सुनने के लिए आपकी कोई संस्था संगठन नागरिक समूह क्यों नहीं गया ? टपकते पानी से जमी हुई बर्फ का पिंड देखने के लिए आपके पास समय और पैसा है लेकिनअपने ही लोगों के टपकते खून की बूँदें देखने के लिए आपके पास न समय है ना इंसानियत बची है आप हिन्दू या मुसलमान बचे हैं इंसानियत क्या होती है उसका पता शायद आपको किसी ने बताया ही नहीं आप सोचते हैं आपकी दी हुई तनख्वाह से घर पालने वाले गरीब सैनिक शांति ले आएंगे ? तो आप गफलत में हैं याद राखिये जहां ज़ुल्म है वहाँ शांति कभी नहीं होती शांति सिर्फ न्याय से निकलती है यकीन नहो तो एक बार आज़मा के देख लो

(डिस्क्लेमर - यह लेखक के निजी विचार है, हिमांशु कुमार की फेसबुक वाल से साभार)

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