मैं अच्छी तरह जानता हूँ छोटे-मोटे आन्दोलन करने से या डेलिगेशन देने से समस्या का समाधान नहीं होता. अगर ऐसा होता तो अबतक बाबरी मस्जिद बन गयी होती. क्यूंकि 1992 से आज तक 20 करोड़ मुसलमान आंदोलन करते और डेलिगेशन ही देते आ रहे है. लेकिन एक प्रोसेस के लिए यह करना पड़ता है यह भी मैं जानता हूँ.
जाती कार्ड कैसे खेलते है चतुर सियार
1) जब डॉक्टर जाकिर नाईक के समर्थन की बात करो तो कहते है. 'जाकिर नाईक ब्राम्हण शंकराचार्य को स्टेज पर बुलाता है इसलिए हम उनका समर्थन नहीं करते' भाई आप भी तो भारत के ब्राम्हण राष्ट्रपती, ब्राम्हण मुख्यमंत्री को डेलिगेशन देकर न्याय की भीख मांगते हो ना ? जाकिर नाईक तो अपने विचार सुनाने और उनके विचार सुनने के लिए शंकराचार्य को नुलाते है भिक मांगने के लिए नहीं.
2) जब अख़लाक़ की हात्या होती है तो यही लोग ऐसे बिनधास दिखाई देते है जैसे देश में कुछ हुआ ही नहीं. और उधर सारे देशभर में हंगामा मचा हुआ होता है. और जब बेगुनाह रोहित वेमुला की ह्त्या होती है तो आसमान सर पर उठा लेते है. गल्ली से लेकर दिल्ली तक आंदोलन होते है. काले झंडे, आक्रोश, रेलिया. इसीको कहते है जाती कार्ड... भाई हमको जाती कार्ड नहीं खेलना आता हम बस मजलूमों के लिए जालिमो के खिलाफ खड़े हो जाते है फिर वह कोई भी जाती का हो.
03) उनके गिरोह के मुख्य और उच्च पदों पर उनके ही जाती के लोग रहते है. फिर मुस्लिम कितना भी उच्च पदस्थ हो उसे वहां से हटाया जाता है और 18/20 वर्ष के लड़के से (जिसको नाक भी साफ़ नहीं करना आता) गुप्त चर्चा होती है. मानो जैसे अब लीबिया जैसी क्रान्ति करने वाले है.
04) अपनी जाती का कितना भी गद्दार हो, चाहे वह खुलेआम अपमान करता हो, गन्दी गालिया देता हो, हिसाब किताब में गोलमाल करता हो तो कोई दिक्कत नहीं. ऐसे ही लोगो के हाथो में मुख्य कमान सौंपी जाती है. फिर मुस्लिम का कितना भी इमानदार क्यों ना हो. पाई-पाई का हिसाब देने वाला क्यों ना हो. दिनभर भूखा रहकर काम करने वाला क्यों ना हो, साल में लाख रुपये चन्दा देने वाला क्यों ना हो. उसका कोई मोल नहीं. बस वफादार चाहिए इमानदार नहीं. और वह भी अपनी जाती का.
05) जब गोरक्षक दल दलितों की पिटाई करते है तो मजलूम लोगो के लिए मुसलमान सागे होता है. और 20/25 हजार लोगो की रैली में अपना 25% का साथ सहयोग देता है. यही बात सोशल मीडिया पर वाही लोग करते है. और मुसलमानों की खूब तारीफ़ करते है. मुसलमानों को चने के पेड़ पर चढ़ा देते है. जैसे ही दो ही दिन बाद मुस्लिम महिलाओं की पिटाई वाही गोरक्षा दल की और से की जाती है तो. पांच लोग भी मुसलमानों के साथ नहीं आते. दो दिन के बिच ही ऐसा माहौल देखने को मिलता है. इसीको जाती कार्ड कहते है.
06) जाती कार्ड खेलने वालो की सबसे बड़ी चतुराई यह है की, वह आपके किसी भी सवाल का जवाब नहीं देंगे. अगर आप सवाल पूछो तो वह ऐसा सवाल करेंगे की आपके सवाल से उसका दूर दूर तक कोई संबंध न हो. और हर विषय का विषयांतर करने की तो ट्रेंनिंग दी जाती हो ऐसे विषयांतर करते है. अगर आप ज्यादा ही उनके चहरे से नकाब उठाते रहोगे और उनको नंगा करते रहोगे तो वह आपके विरोध में पुलिस केस भी कर सकते है...! मेरे खिलाफ भी कुछ करने की साजिश जोरो पर चल रही है :) इस जाती कार्ड के और बहुत से फोर्मुले है. वक्त ब वक्त आपसे शेयर करेंगे.
-= हमको ऐसे लोगो से कुछ लेना नहीं है, न ही उनको कुछ देना है. बस हम एक इंसान है और इंसानों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठानी है यह बात दिमाग में रखकर निस्वार्थ रूप से हर जाती एवं धर्म के जरुरतमंदो के काम में आना है यही उद्देश के लिए कार्य करे.
नोट- हमारा मकसद लोगो को जागृत करना ठोकर लग्से से पहले बता देना है, किसीका विरोध या समर्थन हरगिज नहीं.
- संपादक
बेगुनाह रोहित वेमुला के लिए आन्दोलन में बहुजनो के साथ सबसे आगे मुस्लिम |
बेगुनाह अखलाख के क़त्ल के विरोध में आन्दोलन करते तनहा मुस्लिम |