यह बात सच है की, मुसलमानों को अपने साथ लेकर अपने काम करा लिए गए और जब मुसलमानों पर वक्त आया तब मुसलमान अकेले रह गए. इस बात को सभी लोग बखूबी जानते है. लेकिन बस इसलिए खामोश है के कहीं वह गद्दार घोषित ना किये जाए. और दूसरी तरफ वाही लोग कहते है की, हम न्याय के लिए मजलूमों का साथ देते है. इसका सीधा मतलब है भाई आप लोग न्याय के लिए नहीं अपने स्वार्थ के लिए मजलूमों का साथ लेते है देते नहीं. अगर ऐसा होता तो आप मुसलमानों के साथ उस वक्त होते जिस वक्त उन्हें अपने गैरमुस्लिम भाइयो की जरुरत होती. मैं उन महापुरुषों और मजलूमों के नाम नहीं लेना चाहूँगा जिनके लिए मुसलमानों ने निस्वार्थ रूप से अपना साथ सहयोग दिया. क्यूंकि मैं नाम लेकर उनपर अहेसान नहीं जताना चाहता हूँ. इसलिए की यह मुसलमानों का कर्तव्य है की, हर मजलूम के साथ मिलकर उनके इन्साफ की लड़ाई लढ़े.... और मुझे गर्व है के मुसलमानों ने हर मजलूम के लिए सबसे आगे होकर लड़ाई लड़ी. पर अफ़सोस भी उतना ही है की, जब अखलाख, मोहसिन जैसो का वक्त आया मुहम्मद पैगम्बर पर टिपण्णी कर उनका अपमान किया गया ऐसे सभी वक्तो में मुसलमान अकेला ही अपनी लड़ाई लड़ता पाया गया. चलो कोई बात नहीं मुसलमान अपनी लड़ाई लड़ना खूब जानता है. ....
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और अफ़सोस इस बात पर भी है की मुसलमान ऐसे गिरोह में काम क्यों करते है जहां उनसे हर काम करवा लिए जाते है लेकिन उनके काम के वक्त अकेला छोड़ दिया जाता है ? मैं मानता हूँ मुसलमानों पर अनिवार्य है की मजलूमों का साथ दे. तब किसी मजलूम का साथ देने का वक्त आया तो आप उन गिरोह (अपने स्वार्थ के लिए लड़ने वाले झूंड को गिरोह कहा जाता है) के बाहर रहकर भी तो अपना फर्ज अदा कर सकते हो. फिर गिरोह में रहकर गिरोह वालो पर मेहेरबानी क्यूँ ? उनको काम आप करो और नाम उनका बड़ा क्यों ?
ऐसे कुछ सवाल है जिसपर गौर करना जरुरी है. यह सवाल सिर्फ बुद्धिजीवियों के लिए है. बेचारे भोले-भाले लाखो लोगो इन सब चीजो के बारे में नहीं जानते. जिम्मेदार तो बुद्धिजीवी लोग ही होते है.
मैं बहुजन समाज का जवाबदेह हूँ, किसी नेता या लीडर या किसी गिरोह का नहीं.... बहुजन समाज और बहुजन महापुरुषों के मुझपर अहेसानात है. कल कोई मुझसे ऐसे सवाल ना करे इसलिए आज ही मैं इन सवालों के जवाब ढूंड कर रखना चाहता हूँ. - अहेमद कुरेशी
(उपरोक्त लेख सिर्फ उनपर लागू होता है जिन्होंने मुसलमानों को वक्त आने पर अकेला छोड़ दिया. )
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