चहरे पे मेरे जुल्फ को बिखराओ किसी दिन
क्या रोज गरजते हो बरस जाओ किसी दिन
राझ की तरह उतरो मेरे दिल में किसी रात
दास्ताँ पे मेरी हाथ की खुल जाओ किसी दिन
फूलों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ
बादल की तरह झूम के घिर जाओ किसी दिन
खुशबु की तरह गुजरो मेरी दिल की गली से
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन
तू गुजरे जो मेरे घर से रुक जाए सितारे
इस तरह मेरी रात को चमकाओ किसी दिन
मैं अपनी हर एक सांस उसी रात को दे दूँ
सर रख के मेरे सीने पे सो जाओ किसी दिन
-अहेमद कुरेशी-
Ghazal above to publish your name, or any tampering is prohibited.Ahemad Qureshi The author reserves all rights of Ghazal.
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