मरने का तेरे गम में इरादा भी नहीं था......
था इश्क मगर तुझसे, जियादा भी नहीं था...
है यूँ के इबादत की जबान और है कोई....
कागज़ मेरे तकदीर का सादा भी नहीं था....
क्यों देखते रहते है सितारों की तरफ हम ....
जब उनसे मुलाक़ात का वादा भी नहीं था.....
क्यों राह के मंजर में उलझ जाती है आँखे....
जब दिल में कोई और इरादा भी नहीं था....
क्यों उनके तरफ देखके पाँव नहीं उठते....
वो शख्स हसीन इतना जियादा भी नहीं था....
किस मोड़ पर लाया है हिजर -ए- मुसलसल....
ता हद -ए- निगाह वस्ल का वादा भी नहीं था....
पत्थर की तरह सर्द है क्यों आँख किसीकी....
`अहेमद` तेरा बिगड़ने का इरादा भी नहीं था....
-अहेमद कुरेशी-
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