तो यह भी अब प्रचारित होगा कि कोई धार्मिक हो तो उसकी उपलब्धि या नाकामी उससे भी देखी जायेगी? एक तो मीराबाई चानू के गोल्ड हासिल करने के बाद लोग उनकी जाति जानने के उत्सुक हैं। हो भी क्यों न! जिस देश में पिछले एक हफ्ते से ट्विटर पर ट्रेंड कराया जा रहा "मैँ ब्राह्मण हूँ" उस देश में जाति की चुल तो होगी ही न?
ऐसे में यदि कोई व्यक्ति अपनी बिरादरी या विचार का निकल आये तो कहने ही क्या? यही हुआ है मीराबाई चानू के मामले में भी। वह एक धार्मिक प्रवृत्ति लड़की है इसलिये दक्षिण पंथि इसे अपनी उपलब्धि समझकर दिन भर जाने क्या क्या कह गये, तो दूसरी ओर गैर दक्षिण पन्थियों ने इसे टारगेट के तौर पर ले लिया है।
इस देश के लोगों को कौन समझाए कि समस्या धार्मिक लोगों से या किसी जाति विशेष से नहीं बल्कि समस्या उनसे रखो जो अपने धर्म की महत्ता के चक्कर मे दुसरों से नफ़रत करते हैं या जातिय वर्चस्व अथवा भेदभाव करते हैं। उनको टारगेट करो और उनकी आलोचना करो। केवल धार्मिक होना भर गुनाह नहीं है वह तो हम अपने माँ, बाप और माटी के प्रति भी होते हैं।
चानू की उपलब्धि यदि जाति, धर्म में है तो पिछले दिनों जीती दीपिका कुमारी से लेकर हिमादास, मैरी कॉम, सानिया मिर्जा, साइन नेहवाल, पीवी संधू, पिटी उषा सहित असंख्य महिलाओं को किस रूप में पायेंगे? यह मेडल किसी जाति, धर्म या लिंग का नहीं बल्कि देश का है जिसपर हर देशवासी को गर्व की अनुभूति होती है। तमाम विजेताओं को बधाई बाक़ी मूर्खों को लानत भेजता हूँ। आर_पी_विशाल के निजी एवं अनमोल विचार