कैसे मीडिया और तंत्र मिलकर एक मुस्लिम युवा को आतंकी बनाती है, शरजील इसका बड़ा उदहारण है - विक्रम चव्हाण
जेएनयू के छात्र शरजील इमाम को जेल गए एक साल तीन दिन हो गए हैं । कैसे मीडिया और तंत्र मिलकर एक मुस्लिम युवा को आतंकी बनाती है , शरजील इसका बड़ा उदहारण है। शरजील पर कथित आरोप है कि उन्होंने उत्तर पूर्व के लोगों के साथ न्याय के लिए उसे भारत से अलग रास्ता देखने की बात कही थी।
यह बात उन्होंने एनआरसी और सीएए के लिए दबाव बनाने के संदर्भ में कही थी। लेकिन मीडिया ने और सरकारी तंत्र ने इस पर इतना मिर्च मसाला लगाया कि आईआईटी पोवई से कम्प्यूटर साइंस इंजीनियरिंग और अब जेएनयू से पीएचडी कर रहा युवक एक दिन में देशद्रोही बन गया। शरजील इमाम पर आपराधिक साजिश, राष्ट्रद्रोह और धर्म के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए हैं। मीडिया को तो जैसे खजाना मिल गया। एक तो मुसलमान ,जेएनयू से शिक्षित, दाढ़ी और चश्मा भी। बिल्कुल मीडिया के अपने बनाये आधुनिक आतंकवादी की प्रतीकात्मक छवि।
मीडिया और इस सरकार ने एक युवक के अरमानों ,उनके परिवार की प्रतिष्ठा खून कर दिया। देश ने भी मान ही लिया मीडिया कह रही है तो सही ही कह रही होगी। पर क्या किसी ने भी शरजील को समझने की कोशिश की ? शरजील इमाम के बारे में उनके पड़ोस के लोग कहते हैं, "हम लोगों के लिए यह शॉक की बात है कि शरजील जैसे लड़के पर देशद्रोह का आरोप लगा है। आप काको के एक-एक आदमी से पूछ लीजिए। सब उसके बारे में पॉजिटिव ही बोलेंगे चाहे वह हिंदू हों या मुसलमान। पूरे प्रखंड में आईआईटी का इंजीनियर बनने वाला पहला लड़का था वो। ऑल इंडिया कंपटीशन में 208 रैंक मिला था। उसी को देखकर काको में बहुत से इंजीनियर बन गए।
यहां के लड़के आज भी उससे प्रेरणा लेते हैं।" तो क्या ऐसा लड़का देशद्रोही हो सकता है ? लेकिन लेकिन मीडिया ने उसे देशद्रोही ही नहीं कुख्यात आतंकवादी बना दिया। अख़बारों ने लिखा '' दिल्ली पुलिस, अलीगढ़ पुलिस और बिहार पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन में पकड़ा गया आतंकी'' फलां फलां। 6 राज्यों की पुलिस शरजील के पीछे पड़ी थी। बिहार, असम, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली और मणिपुर में उन पर मुकदमे दर्ज किए गए। उनकी कई गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
वे 28 जनवरी, 2020 से अलग-अलग जेलों में रह चुके हैं। शरजील के भाषणों को लेकर पुलिस की चार्जशीट काफी कमजोर है ,लेकिन जिस धर्म से वे आते हैं वह दलील अदालतों को उनकी रिहाई न करने के लिए काफी मजबूत है। आये दिन किसी न किसी हिन्दू नाम वाले का पाकिस्तान के आईएसआई से लिंक मिल जाता है ,लेकिन वह मीडिया और सरकार के लिए आतंकवादी नहीं होता।
क्योंकि धर्म काफी मायने रखता है। पर मुझे पता है जिस दिन किसी ईमानदार जज के सामने शरजील का मामला जायेगा वह बाइज्जत बरी होंगे। पर ऐसा ईमानदार जज भी मुस्लिमों को दस -बीस साल जेल में सड़ने के बाद मिलता है।
-लेखक : विक्रम सिंह चव्हाण के निजी विचार है । वे स्वतंत्र पत्रकार तथा UNDP में कार्यरत है ।