लखनऊ 4 फरवरी 2021। रिहाई मंच ने युवा पत्रकार मनदीप पूनिया और पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज किए जाने की निंदा करते हुए पत्रकारों पर से मुकदमा वापस लिए जाने की मांग की।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मनदीप पूनिया द्वारा सिंघू बार्डर पर संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा स्थानीय निवासियों के भेस में आंदोलनकारी किसानों पर हमले की पोल खोलने के बाद गिरफ्तारी प्रेस की आज़ादी का दमन है। नवरीत सिंह की मौत के बारे में बोलने-लिखने से छुब्ध सरकार ने मनदीप के अलावां कई अन्य पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज किया, जिससे साबित होता है कि सरकार चाहती है कि जनता तक केवल वही खबरें पहुंचे जो सरकार दिखाना चाहती है।
उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को रामपुर उत्तर प्रदेश के किसान नवरीत सिंह की किसान आंदोलन के दौरान होने वाली मौत के तुरंत बाद के एक वीडियो में उसके साथ मौजूद आंदोलनकारी पूरे विश्वास के साथ कहते देखे जा सकते हैं कि पुलिस ने नवरीत को गोली मारी। मीडिया में नवरीत के चाचा इंद्रजीत सिंह और दादा हरदीप सिंह ने भी यही बात दोहराई और अटॉप्सी रिपोर्ट में इस तथ्य को छुपाने को अपने साथ धोखा बताया। इंद्रजीत सिंह ने कहा है कि उनको अटॉप्सी में शामिल एक डाक्टर ने बताया था कि गोली लगी है लेकिन रिपोर्ट में उसे गायब कर दिया गया। जबकि दिल्ली पुलिस और सरकार अटॉप्सी रिपोर्ट आने के पहले से ही इसे ट्रैक्टर के अनियंत्रित होकर पलट जाने के कारण होने वाली मौत बताया।
राजीव यादव ने कहा कि अटॉप्सी रिपोर्ट में नवरीत के शरीर पर छह घाव बताए गए हैं जिनमें दो घाव ऐसे हैं जो गोली लगने से हो सकते हैं। उसकी ठुड्ढ़ी पर बायीं ओर 2सेमीx1सेमी और दाहिने कान के ऊपर 6सेमीx3सेमी के घाव का निशान है। परिवार इन्हीं घावों को गोली के प्रवेश और निकास बिंदु के तौर पर देखता है। परिवार ने यह भी कहा कि अटॉप्सी रिपोर्ट के साथ एक्सरे रिपोर्ट नहीं दी गई है जो दोनों घावों के बीच सम्बंध को स्पष्ट कर सकती थी। उन्होंने कहा कि ऊंचाई से गिरने वाले किसी व्यक्ति के सिर में ऊपर से और ठुड्ढी में नीचे से एक साथ गहरे घाव लगने की संभावना न के बराबर होती है।
मंच महासचिव ने कहा कि परिवार और प्रत्यक्षदर्शियों के दावों के मद्देनज़र सरकार सच्चाई सामने लाने के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच का आदेश देने के बजाए पत्रकारों पर मुकदमें दर्ज कर प्रेस की आज़ादी का दमन कर रही है। उन्होंने कहा कि गाजीपुर और सिंघू बॉर्डर पर संघ और भाजपा कार्यर्ताओं द्वारा आंदोलनकारियों पर हमले और पथराव की घटना को दिल्ली पुलिस और भाजपा के कई नेताओं ने स्थानीय ग्रामवसियों द्वारा आंदोलन स्थल खाली करवाए जाने की कार्रवाई बताया था जबकि तथ्यों से साबित हो गया कि उपद्रव करने वाले संघ और भाजपा के कार्यकर्ता थे।
इसी प्रकार लाल किले पर आंदोलनकारियों द्वारा धार्मिक ध्वज फहराने का आरोप भाजपा नेताओं और दिल्ली पुलिस ने लगाया था लेकिन वह भाजपा का कार्यकर्ता निकला। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि ऐसी झूठी और भ्रामक खबरें प्रसारित करने वाले चैनलों, भाजपा नेताओं और दिल्ली पुलिस पर मुकदमा क्यों नहीं दर्ज किया गया?