बाबर ।। जिसे भारत मे विलन ।। और दुनियाभर में नायक, योद्धा के रूप में जाना जाता है ।।
26 दिसंबर 1530 में मुग़ल बादशाह बाबर का इंतेक़ाल आगरा में हुआ। हिंदुस्तान में मुग़ल सल्तनत की नींव रखने वाला बादशाह जिसे भारत मे एक विलेन की तरह और बाकी दुनिया में एक नायक वीर योद्धा और कवि की तरह याद किया जाता है।
हिंदुस्तान में जिस बाबरी मस्ज़िद की वजह से बाबर विलन बना उस मस्ज़िद का बाबर की जीवनी बाबरनामा में ज़िक़्र तक नही है। जबकि बाबर दुनिया पहला बादशाह था जिसने अपनी जीवनी खुद लिखी और अपनी ज़िंदगी हर अच्छी बुरी घटनाओं को लिखा। लेकिन मस्ज़िद का कोई ज़िक्र नही मिलता जबकि बाबर अयोध्या में सरयू नदी के किनारे किस गाँव मे रुका इतनी छोटी चीज़ तक लिखी है। अगर बाबर ने राम मंदिर ढहाई होती तो इतनी बड़ी घटना का ज़िक्र ज़रूर होता।
बाबरनामा में अयोध्या का ज़िक्र है- "दोसम्बा (सोमवार) को अवध की ओर कूच हुआ। दस कोस चल कर सरू (सरयू) किनारे फतेहपुर के गांव कालरा में हमारा काफिला उतर गया। यहां कई दिन बड़े चैन से बीते। बाग हैं, नहरें हैं, बड़ी अच्छी-अच्छी काठ के मकान हैं, पेड़ हैं, सबसे बढ़कर अमराइयां हैं, रंगबिरंगी चिड़ियां यहां हैं-जी बहुत लगा।"
बाबर की ज़िंदगी कई रंगों से भरी थी।
एक पढ़ा लिखा बादशाह के साथ था बाबर का शुमार तुर्की के दो सबसे बड़े कवियों में से होता है।
12 साल की उम्र बादशाह बनकर मरते दम तक अपनी सारी जिंदगी जंग में गुज़ार दी। एक निडर बादशाह के साथ साथ बाबर ने अपनी परिवारीक ज़िम्मेदारी भी निभाई वह अपने माँ और बहन से बेपनाह मुहब्बत थी जंग से वक़्त निकालकर उनसे मिलने जाया करते।
अपने बेटे से बाबर की मोहब्बत जग जाहिर है। बेटा हुमायुं जब बीमार पड़ा तो बाबर ने अल्लाह से दुआ की ऐ अल्लाह तू बेटे के बदले में मेरी रूह क़ब्ज़ करले लेकिन उसे ज़िंदगी बख़्स दे। बाबर की दुआ क़ुबूल हुई। हुमायुं ठीक हो गया और उसके फौरन बाद बिना किसी बीमारी के बाबर का इंतेक़ाल हो गया। और दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।