सूरज पर कभी कोई ग्रहण नहीं लगता, सब चंदू की शरारत है
पिछले 5 अरब वर्षों से लगातार जल रहे सूरज पर कभी कोई ग्रहण नही लगता जिसे हम सूर्यग्रहण कहते हैं वो हमारे चंदू मामा की शरारत होती है.
जब हम गर्मियों में धूप से बचने के लिए छाते का उपयोग करते हैं तब हमारे और सूर्य अंकल के बीच छाता होता है जो हम तक सूर्य अंकल के फोटोन को पहुंचने से रोक देता है यह भी एक तरह का ग्रहण ही होता है.
चंदू मामा के आंगन से भी सूर्य ग्रहण दिखाई देता है उसमें शरारत हमारी धरती माँ की होती है कभी कभी चाँद मामा और सूरज अंकल के बीच पृथ्वी माँ आ जाती है जिसे हम चंद्रग्रहण कहते हैं.
ग्रहों उपग्रहों और सितारों का यह सब खेल ग्रेविटी अंटी के चक्कर मे होता है जो दिखाई तो नही देती लेकिन यूनिवर्स के आंगन में फैले तमाम तत्वों को अपने इशारों पर नचाती है ग्रेविटी अंटी दिखती नही लेकिन जहां "तत्व" ताऊ होते हैं वहां ग्रेविटी अंटी भी होती हैं.
सूरज अंकल के द्वारा हमे निरंतर मुफ्त में फोटोन मिलता हैं जिससे हमें ऊर्जा मिलती है धूप और धूप से चलने वाले सौर ऊर्जा संयंत्रों से प्राप्त ऊर्जा के अलावा आज हम और जितने भी ऊर्जा स्रोत का इस्तेमाल करते हैं वो सब सूर्य अंकल की ही देन है जहां सूर्य अंकल के टॉर्च की रोशनी नही पहुंच पाती वहां तापमान माईनस में होता है और इक्वेटर पर उनके टॉर्च की रोशनी एकदम सीधी पड़ती है तो वहां तापमान कभी कभी 50 डिग्री के पार तक चला जाता है धरती पर कई ऐसे इलाके हैं जिनसे सूर्य अंकल हमेशा नाराज रहते हैं इसलिए वहां के लोगों की सबसे बड़ी प्राथमिकता सूर्य अंकल के प्रकोप से जूझने की होती है.
दुनिया के कई देश सीधे मध्यांतर रेखा पर पड़ते हैं जहां प्रचंड गर्मी पड़ती है करोड़ों लोग सूखे का शिकार होते हैं लाखों भूख से जूझते हैं और हजारों लू लगने से मरते हैं इसी तरह दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं जहां लोग भयंकर ठंड का सामना करते हैं रूस ग्रीस आइसलैंड साइबेरिया ग्रीन लैंड जहां तापमान माईनस 50 डिग्री तक पहुंच जाता है दिन रात भयंकर ठंड से या भयंकर गर्मी से जूझने वाले लोगों को धर्म के नाम पर लड़ने की फुर्सत नही मिलती.
सूर्यग्रहण के अवसर पर हमें सूर्य के इसी महत्व को समझने की जरूरत है हमारे यहां भी भयंकर सूखा पड़ता है हर साल करोड़ों लोग सूखे से लड़ते हैं देश के कई इलाके पीने के पानी को तरसते हैं लू लगने से लोग मरते हैं हर साल बाढ़ से लोग मरते हैं विस्थापित होते हैं सर्दी में लोग ठंड से मरते हैं लेकिन हम कभी भी इन बुनियादी समस्यायों पर ध्यान नही देते क्योंकि हम धार्मिक लोग हैं इसलिए प्रकृति की निष्ठुरता से जूझने के साथ हम धर्म के नाम पर भी दिन रात लड़ते हैं.
140 करोड़ की आबादी वाले देश की पहली प्राथमिकता मंदिर मस्जिद धर्म ईश्वर है प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल कैसे हो ? इस पर कोई बात नही करता.
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हम कैसे आत्मनिर्भर हो ?
बाढ़ और सूखा इन दोनों समस्यायों का समाधान दोनों के सही प्रबंधन से क्यों नही किया जा सकता ? दुनिया मे जहां भयंकर सूखा पड़ता है वहां बाढ़ नही आती और जहां बाढ़ आती है वहां सूखा नही पड़ता लेकिन हमारे यहां भयंकर सूखा पड़ता है तो भयंकर बाढ़ भी आती है अगर दोनों का आपस मे सामंजस्य बिठा दिया जाए तो दोनों समस्याएं एक दूसरे को खत्म कर सकती हैं.
याद रखिये की सूर्य अंकल की कृपा हमेशा के लिए नही है ग्लोबल वार्मिंग से नाराज सूर्य अंकल लगातार धरती का तापमान बढ़ा रहे हैं जिसकी वजह से प्रचंड गर्मी का दौर आने वाला है ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे नदियां सूखेंगी भूजल खत्म होगा फसलों की पैदावार में भारी गिरावट होगी जिससे भुखमरी के भयंकर हालात पैदा हो जाएंगे.
ऐसे में अमीर लोग अपने बड़े बैंक बैलेंस और छोटे से परिवार को साथ लेकर यहां से खिसक लेंगे और सूर्य अंकल की नाराजगी का सारा गुस्सा गरीबों को भुगतना पड़ेगा तब कोई अल्लाह ईश्वर गॉड या धर्म काम नही आएगा इसलिए आज हमें समझना होगा कि हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए ? ईश्वर अल्लाह गॉड या कुछ और.....
सूर्य ग्रहण के नाम पर ही सही भविष्य के बारे में थोड़ा सा तो सोच लीजिये....
-शकील प्रेमजी...
जब हम गर्मियों में धूप से बचने के लिए छाते का उपयोग करते हैं तब हमारे और सूर्य अंकल के बीच छाता होता है जो हम तक सूर्य अंकल के फोटोन को पहुंचने से रोक देता है यह भी एक तरह का ग्रहण ही होता है.
ग्रहों उपग्रहों और सितारों का यह सब खेल ग्रेविटी अंटी के चक्कर मे होता है जो दिखाई तो नही देती लेकिन यूनिवर्स के आंगन में फैले तमाम तत्वों को अपने इशारों पर नचाती है ग्रेविटी अंटी दिखती नही लेकिन जहां "तत्व" ताऊ होते हैं वहां ग्रेविटी अंटी भी होती हैं.
सूर्यग्रहण के अवसर पर हमें सूर्य के इसी महत्व को समझने की जरूरत है हमारे यहां भी भयंकर सूखा पड़ता है हर साल करोड़ों लोग सूखे से लड़ते हैं देश के कई इलाके पीने के पानी को तरसते हैं लू लगने से लोग मरते हैं हर साल बाढ़ से लोग मरते हैं विस्थापित होते हैं सर्दी में लोग ठंड से मरते हैं लेकिन हम कभी भी इन बुनियादी समस्यायों पर ध्यान नही देते क्योंकि हम धार्मिक लोग हैं इसलिए प्रकृति की निष्ठुरता से जूझने के साथ हम धर्म के नाम पर भी दिन रात लड़ते हैं.
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हम कैसे आत्मनिर्भर हो ?
बाढ़ और सूखा इन दोनों समस्यायों का समाधान दोनों के सही प्रबंधन से क्यों नही किया जा सकता ? दुनिया मे जहां भयंकर सूखा पड़ता है वहां बाढ़ नही आती और जहां बाढ़ आती है वहां सूखा नही पड़ता लेकिन हमारे यहां भयंकर सूखा पड़ता है तो भयंकर बाढ़ भी आती है अगर दोनों का आपस मे सामंजस्य बिठा दिया जाए तो दोनों समस्याएं एक दूसरे को खत्म कर सकती हैं.
ऐसे में अमीर लोग अपने बड़े बैंक बैलेंस और छोटे से परिवार को साथ लेकर यहां से खिसक लेंगे और सूर्य अंकल की नाराजगी का सारा गुस्सा गरीबों को भुगतना पड़ेगा तब कोई अल्लाह ईश्वर गॉड या धर्म काम नही आएगा इसलिए आज हमें समझना होगा कि हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए ? ईश्वर अल्लाह गॉड या कुछ और.....
-शकील प्रेमजी...