मुअम्मर गद्दाफी के ज़िन्दगी के संघर्ष –कर्नल मुअम्मर गद्दाफी HeroOfLibya
#HeroOfLibya #HeroOfWorld #GreenBookRevolution कर्नल मुअम्मर गद्दाफी
जन्म ( 7 जून 1942 ) मृत्यु ( 20 अक्टूबर 2011 )
#HeroOfLibya #HeroOfWorld #GreenBookRevolution कर्नल मुअम्मर गद्दाफी
जन्म ( 7 जून 1942 ) मृत्यु ( 20 अक्टूबर 2011 )
जन्म और परिवार –
मोहम्मद गद्दाफी 7 जून 1942 को पश्चिमी लीबिया के रेगिस्तानी इलाके शिरदे के एक टाम्ब में पैदा हुए, उनके वालिदेन बेहद गरीब थे, मुअम्मर गद्दाफी के वालिद मोहम्मद अब्दुस्सलाम बिन हामिद ऊँट और बकरियां चराते थे, उसनके वालिद का इन्तेकाल 1985ई में हुआ, मुअम्मर गद्दाफी के वालिदा का नाम आयशा था जो एक गरीब खातून थी, मुअम्मर गद्दाफी के वालिदा का इन्तेकाल 1978ई में हुआ,
बचपन से ही मुअम्मर गद्दाफी ने लीबिया पर युरेपियन कालोनी के तसद्दुत के देखा था, अपने लड़कपन में उन्होंने अपने मुल्क को इटली के हाथों गुलाम होते देखा था, साल 1945 ई में लीबिया फिर एक मर्तबा बर्तानिया और फ़्रांसीसी फौजियों के कब्ज़े में अगया,
इब्तेदाई तालीम –
मोहम्मद गदाफी की इब्तेदाई तालीम मजहबी माहोल में हुई, जिन्हें इलाके के ही एक इस्लामिक स्कूल ने तालीम दी, बदहाली के बावजूद मुअम्मर गद्दाफी के वालिद ने उन्हें तालीम दिलवाई, इब्तेदाई तालीम हासिल करने के लिए मुअम्मर गद्दाफी अपनी वालिदेन से दूर रहा करते थे, वो हफ्ते भर मस्जिद में रहते थे और वहीँ रातों में सो जाते थे, और हफ्ते के आखिर में 30 किलो मीटर का सफ़र कर के अपने वालिदेन से मिलने जाते थे, मुअम्मर गद्दाफी के तालीम की दिल चस्पी उनके इलाके के बच्चों के लिए मिसाल थीं, बाद में उनके वालिद को सेन्ट्रल लीबिया में एक नौकरी मिली और वहीँ मुअम्मर गद्दाफी को सेकेंडरी में एडमिशन मिला और उस स्कूल में मुअम्मर गद्दाफी की तालीम की काफी प्रसंशा हुई, यहाँ उनके कई दोस्त बने, बल्कि उनके साथ मुअम्मर गद्दाफी ने अरब दुनिया में होने वाले सियासी और जंगी उथल पुथल का जायजा लिया, साल 1948ई में अरब इसराइल की होने वाली जंग, 1951 में मिस्र का इन्कलाब, 1956 का सीज क्क्रेईसेज भी उन्होंने देखा,
मिलिट्री ट्रेनिंग –
मुअम्मर गदाफी ने ” benghazi university of libya ” में तारीख का अध्यन किया, मुअम्मर गद्दाफी के रिकॉर्ड के मुताबिक़ 1963 ई में उन्होंने benghazi university of libya के ही रॉयल मिलेट्री ट्रेनिंग में अपनी ट्रेनिंग स्टार्ट कर दी, लीबिया में उस वक़्त मिस्र अफ्वाज को बरतानवी मिलिट्री की तरफ से ट्रेनिंग दी जाती थी, जिस पर मुअम्मर गद्दाफी काफी नाराज रहा करते थे और इसी नाराजगी और गुस्से की वजह से उन्होंने अंग्रेजी जुबान का इस्तेमाल ही तर्क कर दिया था, साल 1965 में मुअम्मर गद्दाफी ने मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुएशन किया और आर्मी सिग्नल कोर्ट्स में कोम्मुनिकाशन ऑफिसर की पोस्ट हासिल की , अप्रेल 1966 में मुअम्मर गद्दाफी को यूनाइटेड किंगडम में आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया, इस दौरान मुअम्मर गद्दाफी की अग्रेजी बर्तानिया और बर्तानिया मिलिट्री के अहेल्कारों के साथ नाराजगी और गुस्सा बढ़ता ही गया, बहरहाल वो किसी ना किसी तरह लन्दन में दिन गुज़ारने के बाद वो काफी खुश फक्र के साथ अपने मुल्क वापस लौटे,
लीबिया में सियासी उथल पुथल और मुअम्मर गद्दाफी के बढ़ते कदम –
1960 के बाद लीबिया के सदर इदरिस के हुकूमत की लोकप्रियता रोजाना कम होने लगी, करप्शन और कबाइलियों की बगावत बढ़ने लगी, कुछ वर्षों के बाद 1967 में होने वाली 6 दिन के जंग के दौरान मिस्र की इस्राइल के हाथ शिकस्त हुई, लीबिया में बहुत असर अंदाज हुई, लीबिया की अवाम ने इदरीश हुकूमत को इस्राइल का हिमायती पाया जिसके बाद लीबिया के बिल गाजी समेत कई इलाकों में मगरिब मुखालिफ एहतेजाज शुरू किये, लीबिया के वर्करों ने मिस्र आइल टर्मिनस बंद कर दिए, ऐसे में मुअम्मर गद्दाफी के फ्री ओफ्फिसर मूवमेंट भी काफी ताकतवर हो चुकी थी,
मुअम्मर गद्दाफी के ज़िन्दगी के संघर्ष –
लीबिया के साबिक सरबराह मुअम्मर गद्दाफी एक ऐसा लीडर जो ना सिर्फ अफ्रीका बल्कि अरब मुमालिक के इत्तिहाद का खवाब देखा था, तनाजात और ताजादाद से भरपूर ज़िन्दगी गुजारने वाले लीबिया के साबिक रहनुमा कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की ज़िन्दगी सराहनिय है, अफ़सोसनाक सवाल और दर्दनाक मौत अपने आप में एक इतिहास है, मुअम्मर गद्दाफी हक परस्ती के साथ काफी अरसे तक अरब रहनुमा रहे, 42 साल पहले एक नौजवान फौजी अफसर के हैसियत से हुकूमत पर कब्ज़ा कर के लीबिया के हुक्मरान बने, सबसे पहले नजर डालते हैं मुअम्मर गद्दाफी की शुरूआती ज़िन्दगी पे,
सियासी ज़िन्दगी –
तालीमी दौर के दौरान मुअम्मर गद्दाफी ने सियासत में दिलचस्पी दिखानी शुरु कर दी, इस सिलसिले में उनके सियासी हीरो मिस्र के सदर जमाल अब्दुल नासिर बने, मिस्र के साबिक सदर जमाल अब्दुल नासिर मगरीबी कलूनिज और यहूदियत के कट्टर विरोधी थे, मिस्र के सदर अब्दुल नासिर की किताब “philosophy of the revolution “ ने मुअम्मर गद्दाफी के ज़िन्दगी में इंक़लाब ला दिया, अक्तूबर 1961ई में मुल्क में हो रहे एहतेजाज में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, इस दौरान सीरिया से अरब जमुरिया का अलग होने के दौरान हुए एक एहतेजाज के मौके पर मुअम्मर गद्दाफी ने एल्कोहल फरोख्त करने वाली एक होटल के शीशे तोड़ दिए, जिसके बाद वो मुकामिया इंतेजामिया के तवज्जो का मरकज बने लेकिन उन्हें सभा से अपने परिवार समेत निकाल दिया गया, इसके बाद मुअम्मर गद्दाफी मिश्रातम दाखिल हुए और उन्होंने अपनी तालीम जारी रखी, और किसी भी सियासी पार्टी में शामिल होने से साफ़ इनकार कर दिए,
लीबिया के इक्तेदार पर कब्ज़ा –
साल 1969 में लीबिया के सदर इदरीश तुर्की और यूनान के दौरे पे रवाना हुए, उस वक़्त मुअम्मर गद्दाफी ने इस मौके को गलीमत जाना और 1 सितम्बर 1969 को मुअम्मर गद्दाफी ने लीबिया के एयरपोर्ट, पोलिस डिपोट, रेडिओ स्टेशन और सरकारी दफ्तरों पे कब्ज़ा कर लिया , इसी तरह उन्हों अपने साथियों के साथ पुरे लीबिया के हुकूमत पे कब्ज़ा जमा लिया, जूनियर ओफ्फिसर के पोस्ट में ही मुअम्मर गद्दाफी ने अपने दीगर साथी फौजी अफसरों के साथ मिलकर फ्री ऑफिसर मूवमेंट को मजीद ताक
इब्तेदाई तालीम –
मोहम्मद गदाफी की इब्तेदाई तालीम मजहबी माहोल में हुई, जिन्हें इलाके के ही एक इस्लामिक स्कूल ने तालीम दी, बदहाली के बावजूद मुअम्मर गद्दाफी के वालिद ने उन्हें तालीम दिलवाई, इब्तेदाई तालीम हासिल करने के लिए मुअम्मर गद्दाफी अपनी वालिदेन से दूर रहा करते थे, वो हफ्ते भर मस्जिद में रहते थे और वहीँ रातों में सो जाते थे, और हफ्ते के आखिर में 30 किलो मीटर का सफ़र कर के अपने वालिदेन से मिलने जाते थे, मुअम्मर गद्दाफी के तालीम की दिल चस्पी उनके इलाके के बच्चों के लिए मिसाल थीं, बाद में उनके वालिद को सेन्ट्रल लीबिया में एक नौकरी मिली और वहीँ मुअम्मर गद्दाफी को सेकेंडरी में एडमिशन मिला और उस स्कूल में मुअम्मर गद्दाफी की तालीम की काफी प्रसंशा हुई, यहाँ उनके कई दोस्त बने, बल्कि उनके साथ मुअम्मर गद्दाफी ने अरब दुनिया में होने वाले सियासी और जंगी उथल पुथल का जायजा लिया, साल 1948ई में अरब इसराइल की होने वाली जंग, 1951 में मिस्र का इन्कलाब, 1956 का सीज क्क्रेईसेज भी उन्होंने देखा,
मुअम्मर गदाफी ने ” benghazi university of libya ” में तारीख का अध्यन किया, मुअम्मर गद्दाफी के रिकॉर्ड के मुताबिक़ 1963 ई में उन्होंने benghazi university of libya के ही रॉयल मिलेट्री ट्रेनिंग में अपनी ट्रेनिंग स्टार्ट कर दी, लीबिया में उस वक़्त मिस्र अफ्वाज को बरतानवी मिलिट्री की तरफ से ट्रेनिंग दी जाती थी, जिस पर मुअम्मर गद्दाफी काफी नाराज रहा करते थे और इसी नाराजगी और गुस्से की वजह से उन्होंने अंग्रेजी जुबान का इस्तेमाल ही तर्क कर दिया था, साल 1965 में मुअम्मर गद्दाफी ने मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुएशन किया और आर्मी सिग्नल कोर्ट्स में कोम्मुनिकाशन ऑफिसर की पोस्ट हासिल की , अप्रेल 1966 में मुअम्मर गद्दाफी को यूनाइटेड किंगडम में आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना गया, इस दौरान मुअम्मर गद्दाफी की अग्रेजी बर्तानिया और बर्तानिया मिलिट्री के अहेल्कारों के साथ नाराजगी और गुस्सा बढ़ता ही गया, बहरहाल वो किसी ना किसी तरह लन्दन में दिन गुज़ारने के बाद वो काफी खुश फक्र के साथ अपने मुल्क वापस लौटे,
1960 के बाद लीबिया के सदर इदरिस के हुकूमत की लोकप्रियता रोजाना कम होने लगी, करप्शन और कबाइलियों की बगावत बढ़ने लगी, कुछ वर्षों के बाद 1967 में होने वाली 6 दिन के जंग के दौरान मिस्र की इस्राइल के हाथ शिकस्त हुई, लीबिया में बहुत असर अंदाज हुई, लीबिया की अवाम ने इदरीश हुकूमत को इस्राइल का हिमायती पाया जिसके बाद लीबिया के बिल गाजी समेत कई इलाकों में मगरिब मुखालिफ एहतेजाज शुरू किये, लीबिया के वर्करों ने मिस्र आइल टर्मिनस बंद कर दिए, ऐसे में मुअम्मर गद्दाफी के फ्री ओफ्फिसर मूवमेंट भी काफी ताकतवर हो चुकी थी,
लीबिया के साबिक सरबराह मुअम्मर गद्दाफी एक ऐसा लीडर जो ना सिर्फ अफ्रीका बल्कि अरब मुमालिक के इत्तिहाद का खवाब देखा था, तनाजात और ताजादाद से भरपूर ज़िन्दगी गुजारने वाले लीबिया के साबिक रहनुमा कर्नल मुअम्मर गद्दाफी की ज़िन्दगी सराहनिय है, अफ़सोसनाक सवाल और दर्दनाक मौत अपने आप में एक इतिहास है, मुअम्मर गद्दाफी हक परस्ती के साथ काफी अरसे तक अरब रहनुमा रहे, 42 साल पहले एक नौजवान फौजी अफसर के हैसियत से हुकूमत पर कब्ज़ा कर के लीबिया के हुक्मरान बने, सबसे पहले नजर डालते हैं मुअम्मर गद्दाफी की शुरूआती ज़िन्दगी पे,
तालीमी दौर के दौरान मुअम्मर गद्दाफी ने सियासत में दिलचस्पी दिखानी शुरु कर दी, इस सिलसिले में उनके सियासी हीरो मिस्र के सदर जमाल अब्दुल नासिर बने, मिस्र के साबिक सदर जमाल अब्दुल नासिर मगरीबी कलूनिज और यहूदियत के कट्टर विरोधी थे, मिस्र के सदर अब्दुल नासिर की किताब “philosophy of the revolution “ ने मुअम्मर गद्दाफी के ज़िन्दगी में इंक़लाब ला दिया, अक्तूबर 1961ई में मुल्क में हो रहे एहतेजाज में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, इस दौरान सीरिया से अरब जमुरिया का अलग होने के दौरान हुए एक एहतेजाज के मौके पर मुअम्मर गद्दाफी ने एल्कोहल फरोख्त करने वाली एक होटल के शीशे तोड़ दिए, जिसके बाद वो मुकामिया इंतेजामिया के तवज्जो का मरकज बने लेकिन उन्हें सभा से अपने परिवार समेत निकाल दिया गया, इसके बाद मुअम्मर गद्दाफी मिश्रातम दाखिल हुए और उन्होंने अपनी तालीम जारी रखी, और किसी भी सियासी पार्टी में शामिल होने से साफ़ इनकार कर दिए,
साल 1969 में लीबिया के सदर इदरीश तुर्की और यूनान के दौरे पे रवाना हुए, उस वक़्त मुअम्मर गद्दाफी ने इस मौके को गलीमत जाना और 1 सितम्बर 1969 को मुअम्मर गद्दाफी ने लीबिया के एयरपोर्ट, पोलिस डिपोट, रेडिओ स्टेशन और सरकारी दफ्तरों पे कब्ज़ा कर लिया , इसी तरह उन्हों अपने साथियों के साथ पुरे लीबिया के हुकूमत पे कब्ज़ा जमा लिया, जूनियर ओफ्फिसर के पोस्ट में ही मुअम्मर गद्दाफी ने अपने दीगर साथी फौजी अफसरों के साथ मिलकर फ्री ऑफिसर मूवमेंट को मजीद ताक