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उच्च जातियों का वर्ग 'करुणा' शब्द और उसके अर्थ अभिप्राय का शोषण करने में माहिर है -Monika Kumar

The upper castes specialize in exploiting the word 'compassion' and its meaning.
भारत का मध्य और उच्च वर्ग ख़ास तौर पर उच्च जातियों का वर्ग 'करुणा' शब्द और उसके अर्थ अभिप्राय का शोषण करने में माहिर है । इस वर्ग की मन -वचन- और कर्म की संगति पूरी तरह नष्ट हो चुकी है । यह भयावह असंगति और फिर विसंगति मन से शुरू होती है । यानी इसकी विचारधारा के ढुलमुलपन से पैदा होकर उसके कर्म को निर्धारित करती है ।

इस वर्ग ने सोचना कुछ, करना कुछ और बोलना कुछ के तोगलेपन को इतनी गहराई से आत्मसात कर लिया है कि इस वर्ग में जी रहे लोगों का लगभग हर पल झूठ का जीवन है । करुणा और चिंता के दिखावे से वह इस झूठ को थोड़ा सहनीय बनाने की कोशिश करता है । वह एक ही साथ उत्तर प्रदेश के बॉर्डर से बेज़ार बेहाल मज़दूरों के पलायन को देखकर मोदी सरकार को पूछता है कि सरकार क्या कर रही हैं । फिर वह घर में ( लॉकडाउन की वजह से अल्प साधनों से ) अपने जन्मदिन सालगिरह मनाता है, इस संकट के प्रति आशंकित है, मनुष्य के खत्म हो जाने से भयभीत और आशंकित है, उम्मीद विषयक शेर, कविता, ग़ज़ल चेपता है और ये सब करते हुए इस वर्ग को कोई उलझन नहीं है । सभी सभी को हौसला दे रहे हैं. अपने टॉक्सिक आशावाद से इस माहौल को और भ्रमित कर रहे हैं । नक़ली भय का निर्माण करके इसने इन आठ दस दिनों में ही साहित्य की नयी अभिव्यक्तिओं का ऊबाऊ पहाड़ खड़ा कर लिया है ।

यह वर्ग इस विषाक्त समाज में अपनी विषाक्त भूमिका पर कभी सवाल खड़ा नहीं करता कि बॉर्डर से पलायन कर रहे मजदूरों और संकट में पड़े दिहाड़ीदारों की इस ज़र्जर हालत में उनका क्या हाथ है । जबकि अकाट्य सच यह है कि इस देश में जो भी बुरा है उसमें इस वर्ग का सबसे बड़ा हाथ है । जिन्हें लगता है सारी गलती मोदी की है, उनकी अज्ञानता को यह बात समझायी जा सकती है कि पलायन कर रहे मजदूरों का जो दारुण दृश्य दिख रहा है । या जो भी अन्य दृश्य मन में करुणा उपजाता है, उस दारुण दृश्य को पैदा करने में हमने रोज़ सहयोग दिया है । इस सब में अगर सरकार की गलती है तो भाजपा सरकार बहुमत पाकर शान से जहाँ खड़ी है, खड़ी है, मध्य वर्ग के सहयोग के बिना ऐसा बहुमत ऐसी निरंकुश निर्विपक्षिय सरकार नहीं बन सकती । अनपढ़ कम शिक्षित लोग तो अपनी राजनीतिक अज्ञानता में भी वोट देते हैं 
पर शिक्षित वर्ग क्या सोच कर ऐसी सरकारों को चुनता है । जिसके नेता कभी स्पष्ट रूप से देश में जाति उत्पीड़न को खत्म करने की बात नहीं करते, सभी धर्मों के सामान अधिकार की बात नहीं करते और स्त्री के प्रति हिंसा को खत्म करने के ठोस निर्णय नहीं लेती, equal work equal pay की स्पष्ट बात नहीं करते, दिहाड़ीदार मजदूरों को मिलने वाली दिहाड़ी का मूल्य और मेडिकल आदि की सुविधा को फिक्स नहीं करती, गृह सेविकाओं के वेतन और अन्य सुविधाएँ फिक्स नहीं करते बल्कि आए दिन अपनी अवैज्ञानिक सोच, जुमलेबाजी और धार्मिक संकीर्णता से असली मुद्दों को दूर धकेलती रहती है. अब यह प्रश्न और डेडलॉक ज़रूर है । कि पहले लोगों को बदलना चाहिए या सरकार को. मुझे तो सरकार से कोई उम्मीद नहीं, लोगों में वैचारिक क्रान्ति और बराबरी और न्याय के सिद्धांत से ही इस देश की कालिख में कमी आ सकती है ।

जिन लोगों को इस्लामोफोबिया है, उन्हें पलायन करते हुए मजदूरों का दृश्य देखकर सरकार की निंदा करने का या बेवजह प्रलाप नहीं करना चाहिए क्योंकि उन कतारों में कुछ मुसलमान भी होंगे सो मुस्लिमों के प्रति घृणा और पलायन करते हुए मजदूरों के प्रति करुणा एक साथ नहीं हो सकती ।

जो लोग आरक्षण विरोधी हैं और उच्च जाति का फुल गर्व भी महसूस करते हैं उन्हें भी इस दृश्य से कोई दुःख नहीं होना चाहिए क्योंकि जो पलायन कर रहे, वे ग़रीब हैं और ज़्यादातर दलित लोग ही आज भी ग़रीब हैं सो सवर्ण अभिमान और गरीब दलित के प्रति करुणा प्रदर्शन एक साथ नहीं हो सकता ।

मुझे लगता है हम सभी को एक बात में साफ़ होना चाहिए ।
Either we should love our privilege and enjoy it fully and not crib for the underprivileged. No noise pollution, internet wastage on crying falsely for them.
Or
We should hate our privilege and should start making it less by admitting our complicity in every act of social injustice in the society. We should reflect and mourn in silence so that an action plan can be made on an individual basis to check sand control social injustice unless we get a good government who can ensure individual and community justice for all of us.

लेखिका Monika Kumar


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