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बीमारी हो या माहवारी, एक औरत जब ......-Pratima Tripathi

बीमारी हो या माहवारी, एक औरत जब ......-Pratima Tripathi
माहवारी में खाना बनाने पर अगले जन्म में कुतिया लेकर गाय बकरी तक बनने की बात सब बचपन से सुन रहे हैं। मम्मी मोहल्ले की आंटियों समेत अपनी व्रत कथाओं में चोट्टे पंडितों से ऐसी ही कहानियां सुन रही हैं और ये आज तक जारी है। क्या अनपढ़, क्या गांव वाली, क्या पढ़ी लिखी! सुनने वालों में जज से लेकर क्लास वन अफसर तक हैं। सब श्रद्धाभाव लिए सुनती रही हैं। किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई है। और इस मुग्धता को समझना मुश्किल भी नहीं। लेकिन मेरी चिंता के बिंदु ये नहीं हैं।


बात ये है कि बीमारी हो या माहवारी, एक औरत जब घरेलू काम नहीं कर पाती तो उसकी जगह उसकी बेटी (जिसकी उम्र छोटी भी हो तो उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता), ननद, सास, पड़ोसी, मां या दूसरी कोई महिला रिश्तेदार लेती है। अगर पैसे वाला परिवार है तो कमजोर तबके की महिला या छोटे बच्चे को लोग नौकर रख लेते हैं। अपवादों को छोड़ दें तो मर्द कोई काम नहीं करते। अगर इनके चाय/मैगी/दाल चावल बनाने के प्रोपगंडा पर यकीन करना हो तो बेशक करें। लेकिन घर का काम महज किचन में एक टाइम का आलतू फालतू सा खाना बनाना नहीं होता। काम की लंबी फेहरिस्त होती है जिसका ये मामूली हिस्सा है। और खाना तो अव्वल दर्जे का होना ही चाहिए ढेर सारे पकवानों, बच्चों के टिफिन के साथ।


कहने का मतलब ये है कि न्यूज में डिस्प्ले हो गया तो हैरानी मत पालिए। BIMARU राज्यों में ये बहुत कॉमन है, उतना ही जितना लोगों का चाय पीना। और इससे पढ़ी लिखी महिलाओं को कभी फर्क नहीं पड़ा। मर्दों की तो क्या कहें? उन्हें क्या फर्क पड़ता है? उनकी बीवी खाना बनाने लायक नहीं रहेगी तो भी थाली में परसा हुआ खाना देने के लिए दूसरी रिश्तेदार होगी ही। किच किच या लड़ाई औरतों के बीच होगी, मनमुटाव और झगड़ा उनका।

ऐसे में पढ़ाई लड़की की छूटती है। तनाव भी औरत का। इस व्यवस्था को बनाए रखने में औरतें ही आपस में मर खप रहीं और इस व्यवस्था से आराम भी अगर मिलना है तो भी औरतों के जरिए ही मिल रहा है!


वरना कौन चिरकुट मर्द सेवा करने जैसा thankless काम करता है? आसान है कुतिया/बिलार कहने पर हंसना। या चुटकुले करते हुए कहना कि पति बनाए खाना! अरे तुमको भी पता है कि चंद्रमा पर मानव बस्ती भी बन जाएगी लेकिन ये चोट्टे काम नहीं करेंगे। अपना अंडरवियर तक तो ये धुलते नहीं। आप अपने व्यक्तिगत जीवन के कथित "अच्छे पुरुषों" के नाम पर धारणा न बनाएं। ये इतने निर्लज्ज और उदासीन हैं कि इनसे ये तक नहीं होता कि पत्नी बीमार हो तो सादे खाने पर संतोष कर लें। कमीने पूरे घर में हाहाकार मचा देते हैं अगर रोटी थोड़ी सी ठंडी क्या हो गई, सब्जी के साथ रायता न मिला तो।
-Pratima Tripathi



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