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जेलों में रह रहे बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को तुरंत रिहा किया जाए -रिहाई मंच- Rihai Manch

Elderly and sick persons living in jails should be released immediately - Rihai Manch
लखनऊ 15 अप्रैल 2020। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की 71 जेलों से 11,000 कैदियों को छोड़ने का फैसला किया है। यह फ़ैसला माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 23 मार्च 2020 को ‘Suo Moto Writ Petition (C) 1/2020 In Re: Contagian of Covid19 Virus in Prisons’ शीर्षक से पारित आदेश के आलोक में किया गया। इस आदेश के माध्यम से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया है कि वे कोविद-19 से संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के मद्देनजर कैदियों की रिहाई के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करें। इसी के चलते उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 हफ़्ते के लिए पैरोल और अंतरिम बेल पर कुछ क़ैदियों को रिहा करने का फ़ैसला किया है। लेकिन सवाल है कि क्या इतने क़ैदियों को रिहा करने से सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का सही मायनों में अनुपालन हो पाएगा?

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में विशेष रूप से महत्वपूर्ण यह है कि अदालत ने देश भर की जेलों में विद्यमान विषम परिस्थितियों के कारण, कैदियों के जीवन के समक्ष उपस्थित गंभीर जोखिम का संज्ञान लिया है। अदालत ने यह भी कहा है कि कैदी संक्रामक वायरस से आसानी से प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए, यह अनिवार्य है कि जेलों में कैदियों की संख्या में कमी की जाये। और उन्हें सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचाया जाए।


कोरोना महामारी के मद्देनजर क़ैदियों की रिहाई के मामले को गम्भीरता से ले यूपी सरकार-रिहाई मंच
यूपी में जेलों की क्षमता 58,000 लेकिन कुल कैदी एक लाख से अधिक
केवल 11,000 की रिहाई नाकाफी, बाकी क़ैदियों के जीवन पर गंभीर ख़तरा बरकरार

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा की जेल सांख्यिकी (2018), राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्डब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की कुल जेलों की क्षमता 58,914 कैदियों की है। जबकि इन जेलों में रह रहे कैदियों की संख्या 1,04,011 है। जो कि जेलों की क्षमता के हिसाब से बहुत अधिक है। जेल सांख्यिकी (2018) के आंकड़ों के मुताबिक देश में कैदियों का सर्वाधिक औसत उत्तर प्रदेश की जेलों में है। 11,000 कैदियों को छोड़ने के बाद भी कैदियों की संख्या 93,011 के आस-पास दिखती है। उत्तर प्रदेश की जेलों में रह रहे कैदियों की यह संख्या चिंताजनक स्थितियों की ओर इशारा करती है। भीड़-भाड़ के ऐसे स्तर पर स्वच्छता बनाए रखने के लिए बुनियादी आवश्यकताओं को प्रदान नहीं किया जा सकता है और महामारी से निपटने के लिए अनिवार्य ‘सामाजिक दूरी’ को लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में संक्रमण अकल्पनीय गति से फैल सकता है।

विदित हो कि जेल परिसरों के भीतर तुरंत 3 अलग-अलग और एकांत क्षेत्रों में कैदियों को रखने के लिए जेलों को तैयार करने की आवश्यकता है:

(1) ऐसे क़ैदी जिनमें कोविद-19 के लक्षण हैं।
(2) अतिसंवेदनशील और अधिक जोखिम वाले क़ैदी।
(3) बाकी क़ैदियों के लिए एक तिहाई क्षेत्र।

यह तर्क दिया जाता है कि जेलों में अगर क्षमता के अनुसार 75% भी जनसंख्या हो, तब भी इस आवश्यक सामाजिक दूरी को लागू करने में असमर्थ होंगे।

राजीव यादव ने कहा कि इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च स्तरीय समिति के फ़ैसले को देखें तो उसमें जेलों में रह रहे बुजुर्ग व बीमार कैदियों की रिहाई की कोई बात नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 4 अप्रैल को की गई प्रेस वार्ता के अनुसार बुजुर्ग और बीमार क़ैदियों के संक्रामक होने की संभावना बेहद अधिक है। ऐसे में बिना उनकी उम्र या स्वास्थ्य का जायज़ा लिए, समिति का यह कहना की गम्भीर आरोपों के दोषियों को रिहा नहीं किया जाना चाहिए इस बात की ओर इशारा करता है कि उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया है।

रिहाई मंच महासचिव ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है की अनावश्यक किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार न किया जाए। लेकिन प्रदेश में बड़ी संख्या में लोग पुलिस थानों के लॉक-अप में आए दिन बंद किए जा रहे हैं, जिनमें से बहुतों का कहीं कोई रिकॉर्ड भी नहीं है। आज इसे रोकने के लिए सख्त दिशा निर्देशों की जरूरत है।

ऐसे में रिहाई मंच, क़ैदियों के लिए गठित उत्तर प्रदेश की उच्च स्तरीय समिति से माँग करता है कि, क़ैदियों के जीवन और सुरक्षा के मद्देनज़र, निम्नलिखित कदम उठाए जाएँ – 

1. जेलों में रह रहे बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को तुरंत रिहा किया जाए, चाहे वे गम्भीर अपराध में बंद हो या नहीं, चाहे वे विचाराधीन हों या दोषसिद्ध क़ैदी।
2. जेलों की जनसंख्या को उनकी क्षमता के मुताबिक़ कम से कम 70% तक लाया जाए, ताकि स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैय्या किया जा सके और आवश्यक सामाजिक दूरी बनाई जा सके।
3. क़ैदियों के लिए अपने परिजनों से बात करने के लिए टेलीफ़ोन लाइनें बढ़ाई जाएँ।
4.  रिहाई की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। 



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