आदिवासी महिलाओं का दोहरा शोषण, अपने भी करते है पराये भी - Rajni Murmu
एक सवर्ण महिला का शोषण एक सवर्ण पुरुष ही करता है !
लेकिन एक दलित- आदिवासी महिला का शोषण ,दलित-आदिवासी पुरुष तो करते ही हैं ,साथ ही गैर आदिवासी भी करते हैं! दिक्कत यहाँ ये हो जाती है कि आदिवासी पुरुष इस बात को तो हाइलाइट करके दिखाता है कि आदिवासी लड़की का शोषण गैर आदिवासी कर रहे हैं लेकिन आदिवासी पुरुष उसका शोषण नहीं कर रहा है !
डबल दिक्कत तब हो जाती है कि आदिवासी पुरुष गैर आदिवासी से शोषित होने के लिए भी आदिवासी लड़की को ही जिम्मेदार ठहराता है ! जब भी ऐसी कोई न्युज आती है लोग उसके बारे में चर्चा करना शुरू कर देते हैं ये कह कर कि इसमें लड़की की गलती है ,अच्छा हुआ, अब मजा आयेगा, ज्यादा पर निकल आये थे ,आजादी का अंजाम लो भूगतो! एक तरह से इस हत्या को आदिवासी पुरुष सामुहिक रूप से #इंजॉय करते नजर आते हैं!
दूसरी तरफ आदिवासी पुरुष आदिवासी महिलाओं का शोषण कर रहे हैं इस बात को सिरे से खारिज कर देते हैं! इस पर कुछ लोग रोज लम्बे लम्बे लेख लिखेंगे,कुछ लोग आदिवासी समाज में लडकियों के बराबर और बेहतर स्थिति पर विडियो बनायेंगे! किसी तरह से कुछ लोग अगर शोषण को स्वीकार भी कर लें तो इसमें भी लड़की की ही गलती निकालेंगे !
इस लॉकडाउन में ही तीन अलग-अलग जगहों पर ही आदिवासी पुरूषों द्वारा आदिवासी लड़की के साथ गैंग रेप की घटना हुई (दुमका, देवघर और चाइबास) साथ में एक डायन हत्या! पाकुड़ और देवघर में गैर आदिवासी द्वारा दो आदिवासी लड़की की हत्या की खबरें आई ! इन खबरों के बारे में आदिवासी पुरूषों द्वारा खुब मजे ले ले कर चर्चा की गई !
लेकिन आदिवासी पुरूषों द्वारा की गई अपराध की जब बात आई तो ये कहने लगे कि अपराधी का कोई जात धर्म नहीं होता ! तो बात ये है कि आदिवासी स्त्री का घर या बाहर कहीं भी शोषण हो रहा हो इसके लिए लड़की को ही दोषी ठहराते हैं ! इस हालत में इनसे समाज सुधार की बात ही करना मुश्किल है !
एक सवर्ण महिला का शोषण एक सवर्ण पुरुष ही करता है !
लेकिन एक दलित- आदिवासी महिला का शोषण ,दलित-आदिवासी पुरुष तो करते ही हैं ,साथ ही गैर आदिवासी भी करते हैं! दिक्कत यहाँ ये हो जाती है कि आदिवासी पुरुष इस बात को तो हाइलाइट करके दिखाता है कि आदिवासी लड़की का शोषण गैर आदिवासी कर रहे हैं लेकिन आदिवासी पुरुष उसका शोषण नहीं कर रहा है !
दूसरी तरफ आदिवासी पुरुष आदिवासी महिलाओं का शोषण कर रहे हैं इस बात को सिरे से खारिज कर देते हैं! इस पर कुछ लोग रोज लम्बे लम्बे लेख लिखेंगे,कुछ लोग आदिवासी समाज में लडकियों के बराबर और बेहतर स्थिति पर विडियो बनायेंगे! किसी तरह से कुछ लोग अगर शोषण को स्वीकार भी कर लें तो इसमें भी लड़की की ही गलती निकालेंगे !
लेकिन आदिवासी पुरूषों द्वारा की गई अपराध की जब बात आई तो ये कहने लगे कि अपराधी का कोई जात धर्म नहीं होता ! तो बात ये है कि आदिवासी स्त्री का घर या बाहर कहीं भी शोषण हो रहा हो इसके लिए लड़की को ही दोषी ठहराते हैं ! इस हालत में इनसे समाज सुधार की बात ही करना मुश्किल है !
(लेखिका रजनी मुर्मू आदिवासी आन्दोलन की सामाजिक कार्यकर्ता है )