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ताली, थाली और दीया मोमबत्ती। हंसिये मत, हल्के में भी मत लीजिये

ताली, थाली और दीया मोमबत्ती। हंसिये मत, हल्के में भी मत लीजिये
ताली, थाली और दीया मोमबत्ती। हंसिये मत, हल्के में भी मत लीजिये
Dont trivialise by making Jokes Its not funny

पहले थाली अब दीया मोमबत्ती। हंसिये मत, हल्के में भी मत लीजिये। महामारी का इस्तेमाल कर भेड़ मानसिकता निर्माण की जा रही है। संकट के समय लोग तार्किक सोच की क्षमता खो बैठते है, खास कर वह समाज जिसमे तार्किक सोच मूलतः ही कम हो। ऐसा समाज संकट के समय एक गॉड फादर को तलाशता है जो संकट से उबार सके। एक के बाद एक प्रयोग कर जनता को भेड़ो में बदला जा रहा है। कल इन्ही भेड़ो को भेड़ियों में बदल उन लोगो पर छोड़ा जाएगा जो आज भेड़ बनने से इन्कार कर रहे है।
-Bhupinder Chaudhry

यह शक्तिप्रदर्शन है ! ज़्यादा निराश होने की ज़रूरत नहीं है। यह आगामी मुश्किल दिनों की आहट ज़रूर है लेकिन अभी सब ख़त्म नहीं हुआ है। जैसे शक्तिप्रदर्शन में साम-दाम दंड-भेद अपना कर, धोखे और दृष्टि- भ्रम से ज़्यादा से ज़्यादा संख्या अपने समर्थन में बताई जाती है। ये परेड भी बिलकुल वैसे ही चल रही है।

  •     - पूरा हिंदुस्तान एक साथ मूर्ख नहीं हुआ है।
  •     - ऐसा सम्भव ही नहीं हैं कि इस लॉकडाउन के बीच देश के हर कोने में आम जनता तक पटाखे पहुँच जायें।
  •     - ऐसा सम्भव ही नहीं है कि एक साथ सब को शंख बजाने का शौक़ चढ़ जाये
  •     - ऐसा सम्भव ही नहीं है कि लोगों को ढोल नगाड़े मिल जायें

यह लोग अपनी मर्ज़ी से नहीं कर रहे हैं। भले ही न लगे, पर यह एक सकारात्मक बात है। इतनी बड़ी परेड के लिए बहुत योजना, संसाधन, कार्यकर्ता और पैसे की ज़रूरत होती है। IT सेल, TV, अख़बार और सरकारी/निजी माध्यमों का युद्धस्तर पर प्रयोग किया जा रहा है। ऊपर से आदेश और हिदायतें आ रही हैं। पटाखें सप्लाई हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं को कहा जा रहा है कि शंख बजाओ, आरती करो, धार्मिक नारे लगाओ। संघी तो हमारे घरवाले हमेशा से थे ही, लेकिन पैसिव संघी थे।

एक माहौल बनाया जा रहा है कि सब ऐसा कर रहे हैं, तुम भी करो। भीड़ में शामिल हो जाओ। और हमको तो हमेशा से सिखाया गया है कि भीड़ से अलग नहीं जाना है। इस तरह धीरे-धीरे पैसिव संघियों को एक्टिव करने की साज़िश की जा रही है। लेकिन इनकी संख्या अभी इतनी हुई नहीं है। इनकी योजना शोरशराबे और लॉकडाउन का फ़ायदा उठाकर बुद्धिजीवियों की आवाज़ दबाने की है। उनमें संख्या का डर बैठाने की कोशिश है।

इसलिए यह न माने कि:
- नेता तो सही है और जनता ही मूर्खता में यह सब कर रही है।
(जनता 'ओके' है। बहुत संसाधन लगाकर उसको मूर्ख साबित करने की कोशिश हो रही है।)
- जनता इसी के लायक है।
( नहीं जनता इसके लायक नहीं है। कम से कम बड़ा तबका तो नहीं)

अपने आप को कमज़ोर और अकेला न समझे।
Never doubt that a small group of thoughtful, committed citizens can change the world; indeed, it's the only thing that ever has.

- Margaret Mead

हमारे घरवाले बड़े भोले लोग हैं।
हवा दूसरी तरफ़ बहेगी तो ये सब पलक झपकाये बिना दूसरी तरफ़ हो लेंगे।

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