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"कोरोना जिहाद" या "कोरोना संग्राम" वे भ्रष्टाचारी थे, राजनैतिक थे हिन्दू नही थे ? -Jashwant

"कोरोना जिहाद" या "कोरोना संग्राम" वे भ्रष्टाचारी थे, राजनैतिक थे हिन्दू नही थे ?
भक्तों ने सरकार के बचाव को सारी ग़लती मज़दूरों की बता दी। "हराम@#$%ख़ोर", "मूर्ख", "फ़्री की खाने वाले", "पूरे भारत में फैला देंगे"। यह तक कहा गया कि इनको गोली मार देना चाहिए। लेकिन एक भी भक्त ने नहीं कहा कि मज़दूर हिंदू हैं। किसी वामपंथी या मुस्लिम ने नहीं कहा कि वो मज़दूर हिंदू हैं। मज़दूरों पर आरोप भले ही कई तरह के लोगों ने लगाये पर किसी ने हिंदू आयडेंटिटी याद नहीं दिलाई।


विगत कुछ दिनों की घटना याद करें:-
  •     - विस्थापन को मजबूर मज़दूर या तो पीड़ित थे या हरामख़ोर थे, लेकिन हिंदू नहीं थे।
  •     - सड़क पर पार्टी करते हुए थाली बजाने वाले या तो धन्यवाद दे रहे थे या मूर्ख थे, लेकिन हिंदू नहीं थे।
  •     - गोमूत्र पार्टी करने वाले या तो राष्ट्रवादी थे या मूर्ख थे, लेकिन हिंदू नहीं थे।
  •     - कोरोनो के बीच विधायक ख़रीदकर सरकार गिराने वाले या तो भृष्टाचारी, सत्ता के भूखे थे या  राजनीतिज्ञ थे, लेकिन हिंदू नहीं थे।
  •     - ग़ैरज़िम्मेदार कनिका कपूर बेवक़ूफ़ थी, अमीर थी, लेकिन हिंदू नहीं थी।
  •     - नक्सली हिंसा की ख़बर आई, तो वो वामपंथी थे या क्रांतिकारी थे, लेकिन हिंदू नहीं थे।
  •     - एक नेता शादी अटेंड कर रहा था, एक मूर्ति शिफ़्ट कर रहा था। वो मूर्ख, धार्मिक या राजनीतिज्ञ थे, लेकिन वो हिंदू नहीं थे।

 
और भी कई उदाहरण हैं। बहुत से मंदिर, गुरुद्वारे के उदाहरण हैं ही। इन सब घटनाओं पर कोई 'हिंदू संग्राम' जैसा TV प्रोग्राम नहीं आया। कोई यह न बोला कि 'ये लोग जाहिल हैं'। सड़क पर उत्सव मनाते लोगों या कनिका कपूर की वजह से कोई मुझसे नहीं कह रहा कि तुम लोगों की वजह से फैल रहा है कोरोना। सरकार की असफलता और ग़ैरज़िम्मेदार रवैये को ढकने का कारण यह सब घटनाएँ नहीं बन पायी। मुझपर कोई दवाब नहीं बना कि मैं 'इन हिंदुओं' को जाहिल बोल दूँ।

किसी एक या एक से अधिक मुसलमान की ग़लती का ख़ामियाज़ा अन्य मुसलमान को भुगतना पड़े तो उसे Islamophobia कहते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि मुसलमान देवता होते हैं या गुनाह या अपराध नहीं करते। इसका मतलब बस इतना है कि सारे मुसलमानों को एक यूनिट नहीं माना जाये, ख़ासतौर पर तब जब आप मुसलमान अपनी मर्ज़ी से नहीं बनते।


जहाँ तक सरकारी कर्मचारियों को पत्थर मारकर भगाने की बात हैं वो ग़लत है ही। उसे कहने की ज़रूरत ही नहीं है। मीडिया और IT सेल काफ़ी है। लेकिन ऐसा क्यों हुआ होगा अगर आप यह नहीं समझ सकते तो आपका इतनी किताबें पढ़ना और विमर्श करना बेकार है। आप अपनी न्यायप्रिय बने रहने की ईगो को सहलाना बंद करिए। आप इस घटना पर टिप्पणी न देकर अगर सरकार से सवाल करते रहेंगे तो भी न्यायप्रिय ही रहेंगे। कोई भक्त आपको ब्राउनी पॉइंट्स नहीं देने वाला।

लोग मर रहे हैं। प्लीज़ सरकार को घेरिये !
प्लीज़ मुसलमानों को हिदायत देना बंद कीजिए। उनको 'जाहिल मुसलमानों' के लिए विडीओ बनाने को न कहिए। उनपर टिप्पणी देने का दवाब मत बनाइए। कोई मुझे दिल्ली जनसंहार करने वालों को समझाने के लिए विडीओ बनाने को न बोला। किसी ने मुझसे आकर सवाल न किया कि इन लोगों पर बोलो। कोई क्यों सवाल करेगा? क्या रिश्ता है मेरा उन लोगों से? अपने शब्दों को भी पकड़िए। 'छुपे' और 'फँसे' के अलावा भी शब्द हैं।

मेरे आपके घरवाले जो "कोरोना से कुछ न होगा",  "हम गाँव के मज़बूत लोग हैं", "मंदिर जाते हैं", "चीन का प्रॉपगैंडा है" आदि कह रहे हैं  वो अंधविश्वासी हैं, भोले हैं, मूर्ख भी हैं लेकिन 'ज़ाहिल' नहीं है।  हैं न ?
 
(लेखक Jashwant ग्वालियर निवासी दिल्ली में सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतन्त्र पत्रकार है, यह उनके निजी विचार है)


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