इस्लामोफोबिया और स्यूडो सेक्युलरिज्म, मुसलमानों को खलनायक बनाने का खेल
कोरोना के नाम पर एक बार फिर मुसलमानों को खलनायक बनाने का खेल शुरू है और इसमें ओपेनिंग बल्लेबाजी कर रहे हैं स्वघोषित सेक्युलर्स जिनका सेक्युलरिज़्म मुसलमानों को बराबरी करते देखना नहीं मुसलमानों को पैट्रोनॉइज़ करना है। हम ही हैं आपके तारणहार टाइप की इसलिए हम जो कह दें उसको पत्थर की लकीर मानिए।
कोरोना के नाम पर एक बार फिर मुसलमानों को खलनायक बनाने का खेल शुरू है और इसमें ओपेनिंग बल्लेबाजी कर रहे हैं स्वघोषित सेक्युलर्स जिनका सेक्युलरिज़्म मुसलमानों को बराबरी करते देखना नहीं मुसलमानों को पैट्रोनॉइज़ करना है। हम ही हैं आपके तारणहार टाइप की इसलिए हम जो कह दें उसको पत्थर की लकीर मानिए।
समस्या की जड़ है कि आपको हर मुसलमान में एपीजे अब्दुल कलाम चाहिए। अगर वह कलाम नहीं है तो कसाब के बराबर है यही सोच सारी समस्या है। एक मुसलमान, मुसलमान होने से पहले एक आम इंसान भी है। इसलिए अगर वह कोई गलती या अपराध करता है तो सामान्य इंसान के अपराध की तरह देखिए और कानून के मुताबिक जो सज़ा है उसे मिले। लेकिन एक मुसलमान की कुल आइडेंटिटी ही मुसलमान होने तक रह गई है। सड़क पर कोई पॉकेटमारी करे तो वह एक सामान्य पॉकेटमार है अगर वह मुसलमान नहीं है तभी। अगर वह मुसलमान है तो वह एक मुल्ला पॉकेटमार है और 20 करोड़ मुसलमानों के प्रतिनिधि के रूप में पॉकेटमारी करने आया है।
20 करोड़ कलाम बनना या बनाना संभव नहीं है। इसलिए इस यूटोपिया से बाहर निकल आइये। उसमें 2-4 कलाम भी होगा। और 2-4 हज़ार या लाख जेब कतरा, रेपिस्ट, मर्डरर और अन्य प्रकार का अपराधी भी होगा। और उसको बिना पूर्वाग्रह और धर्म के नाम पर प्रोपैगैंडा किये भी कानून सम्मत दण्ड दिया जा सकता है। बाकी 19 करोड़ 80 लाख साकिब जैसा आम इंसान भी होगा जिसको हफ्ते में 5-6 दिन रोजगार भी करना है, जीवन एक हिस्से में धर्म भी रखना है और समाज की गतिविधियों में भी शामिल होना है और उन सब के बीच कभी कभार जाने अनजाने छोटी मोटी गलतियां भी करनी है। और यह सिर्फ 20 करोड़ ही नहीं पूरे 130 करोड़ की थोड़ा कम या ज़्यादा के अनुपात में सच्चाई है।
बात अब मुद्दे की तब्लीगियों की गलती के नाम पर जो हर एक मुसलमान के खलनायकीकरण का खेल चालू है उसकी। तब्लीगियों ने गलती की है उसकी आड़ में आपको हर एक मुसलमानको कठघरे में खड़ा करना है और अपना तर्क मजबूत करने के लिए मलेशिया और पाकिस्तान की खबरें भी लेकर आना है और द डॉन और वॉल स्ट्रीट जर्नल की स्क्रीन शॉट से अपने दावे को और पुख्ता करना है।
यहां पर एक सवाल है। क्या भारत में तब्लीगियों की हैसियत और वर्चस्व मलेशिया और पाकिस्तान के बराबर का है? क्या यहां तब्लीगी सरकार के समानांतर शक्ति हैं? नहीं है। तो फिर भारत या दिल्ली सरकार चाहती तो रोक सकती थी या नहीं? बिल्कुल रोक सकती थी। महाराष्ट्र और इंडोनेशिया में सरकारों ने क्रमशः 12 और 18 मार्च को होने वाला इज्तेमा कोरोना के कारण ही रद्द किया है। तो 12 और 18 के बीच में दिल्ली में अगर इज्तेमा हुआ और भीड़ इकट्ठा हुई तो क्या यह सरकारकी ज़िम्मेदारी नहीं है?
द डॉन और wsj के साथ टाइम्स और DW की भी कवरेज है जो इस पूरे घटनाक्रम को इस्लामोफोबिया के प्रसार का टूल बता रहा है। धर्म के साथ ऑब्सेशन सिर्फ मुसलमानों की समस्या नहीं है दुनिया के 90% लोग धर्म को लेकर ऑब्सेस्ड हैं और कोरोना के प्रसार में धार्मिक कार्यक्रमों का अहम रोल रहा है।
दक्षिण कोरिया, फ्रांस और अफ्रीका के कई देशों में संक्रमण की शुरुआत ही चर्चों से हुई है। ब्राज़ील में कल (3 अप्रैल को) भी साउ पाउलो के सबसे बड़े चर्च में कई सौ लोग इकट्ठा हुए थे और एक कोई धार्मिक प्रतीक रखा है जिसको बारी बारी सबने चुम्बन किया। 2-3 दिन पहले ब्राज़ील की किसी अदालत ने कोरोना से निजात पाने तक चर्च में लोगों के जमा होने पर प्रतिबंध लगाया था जिसका मज़ाक बनाते हुए राष्ट्रपति बोलसोनारो ने छूट दे दी। अमेरिका के लुसियाना में पिछले हफ्ते सभी रिस्ट्रिक्शन्स को ठेंगा दिखाते हुए 1200 लोग एक चर्च में जमा हो गए थे और अब उनमें से कई लोग संक्रमित हैं। कैलिफोर्निया में संक्रमण की शुरुआत एक चर्च से हुई है। चर्च के कुल 3500 सदस्य हैं जिनमें से 70 लोग अभी संक्रमित हैं।
पंजाब में जितने संक्रमण हुए हैं उनमें अधिकतर दो सिख गुरुओं बलदेव सिंह और निर्मल सिंह जो क्रमशः जर्मनी और इंग्लैंड से लौटे थे की धार्मिक सभाओं से फैला है और अब दोनों ही गुरुओं की मौत हो चुकी है। एक की सभा में 12 हज़ार लोग जमा हुए थे दूसरे की सभा में 40 हज़ार। अधिकतर को सरकारी महकमा अबतक ढूंढ ही रहा है कोई खुद से सामने नहीं आरहा। लेकिन फिर सवाल यहां पर सरकार से मत कीजियेगा कि जब दावा जनवरी से एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग का है तो फिर दोनों गुरु विदेश से संक्रमित होकर यहां सभा कर ने कैसे पहुंच गए। क्योंकि उसमें आपके "इंटेलेक्चुअलिज़्म" की चमक कम हो जाएगी और हमाम में सब नंगे ही हो जाएंगे तो आप पैट्रोनाइज़ किसको करेंगे!
कोलकाता में कल प्रशासन और यहां तक कि हिन्दुओं के धार्मिक संगठनों के मना करने के बावजूद कई जगह रामनवमी के पूजा के लिए भीड़ इकट्ठा हुई थी। ऐसी ही घटना मध्यप्रदेश के भिंड के किसी जैन मंदिर की भी है जहां 14 लोगों पर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है। लेकिन वह सब सत्ताधारी दल के प्रोपैगैंडा के पैमाने पर खड़ी नहीं उतरती इसलिए सामान्य घटनाएं मात्र है जिसमें प्रशासन ने कार्रवाई करने के बाद बड़े पुलिस अफसर द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करवाना ज़रूरी नहीं समझा क्योंकि वह प्रेस कॉन्फ्रेंस आईटी सेल के योद्धाओं के किसी काम की नहीं होगी।
इसलिए सिर्फ मुसलमानों के नाम पर सारा बिल फाड़ना बन्द कीजिए। सामुहिक समस्या है मिलकर निबटने का वक़्त है मिलजुलकर लड़िए बजाय किसी को डेमोनाइज़ कर के सरकारों की नाकामी का कवच बनाने के।
-Jaswant
बात अब मुद्दे की तब्लीगियों की गलती के नाम पर जो हर एक मुसलमान के खलनायकीकरण का खेल चालू है उसकी। तब्लीगियों ने गलती की है उसकी आड़ में आपको हर एक मुसलमानको कठघरे में खड़ा करना है और अपना तर्क मजबूत करने के लिए मलेशिया और पाकिस्तान की खबरें भी लेकर आना है और द डॉन और वॉल स्ट्रीट जर्नल की स्क्रीन शॉट से अपने दावे को और पुख्ता करना है।
द डॉन और wsj के साथ टाइम्स और DW की भी कवरेज है जो इस पूरे घटनाक्रम को इस्लामोफोबिया के प्रसार का टूल बता रहा है। धर्म के साथ ऑब्सेशन सिर्फ मुसलमानों की समस्या नहीं है दुनिया के 90% लोग धर्म को लेकर ऑब्सेस्ड हैं और कोरोना के प्रसार में धार्मिक कार्यक्रमों का अहम रोल रहा है।
पंजाब में जितने संक्रमण हुए हैं उनमें अधिकतर दो सिख गुरुओं बलदेव सिंह और निर्मल सिंह जो क्रमशः जर्मनी और इंग्लैंड से लौटे थे की धार्मिक सभाओं से फैला है और अब दोनों ही गुरुओं की मौत हो चुकी है। एक की सभा में 12 हज़ार लोग जमा हुए थे दूसरे की सभा में 40 हज़ार। अधिकतर को सरकारी महकमा अबतक ढूंढ ही रहा है कोई खुद से सामने नहीं आरहा। लेकिन फिर सवाल यहां पर सरकार से मत कीजियेगा कि जब दावा जनवरी से एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग का है तो फिर दोनों गुरु विदेश से संक्रमित होकर यहां सभा कर ने कैसे पहुंच गए। क्योंकि उसमें आपके "इंटेलेक्चुअलिज़्म" की चमक कम हो जाएगी और हमाम में सब नंगे ही हो जाएंगे तो आप पैट्रोनाइज़ किसको करेंगे!
इसलिए सिर्फ मुसलमानों के नाम पर सारा बिल फाड़ना बन्द कीजिए। सामुहिक समस्या है मिलकर निबटने का वक़्त है मिलजुलकर लड़िए बजाय किसी को डेमोनाइज़ कर के सरकारों की नाकामी का कवच बनाने के।
-Jaswant