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हिन्दुओ को बचाने दीवार बने मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम फसाद तो सिर्फ राजनीति है वास्तव नहीं

ढाका:  रविवार सुबह नसीरनगर में सैकड़ों लोगों की भीड़ ने हिंदू घरों और उनके मंदिरों पर हमला बोल दिया. हमले से नसीरनगर के हिंदू समुदाय के बीच दहशत का माहौल बन गया और लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे थे. लेकिन हमलावरों से हिंदुओं को बचाने के लिए कुछ मुसलमान नौजवान दीवार बनकर सामने खड़े हो गए. उन्होंने हिंदुओं के घर और उनके मंदिर को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी. जमालुद्दीन उन्हीं में से एक हैं. वह नसीरनगर के सदर अस्पताल में स्टोरकीपर का काम करते हैं. हिंदुओं के घर पर जब हमला शुरू हुआ तो वह अस्पताल में ही थे. ख़बर मिलते ही वह दत्तोबाड़ी की तरफ निकल पड़े.



जमालुद्दीन और कुछ दूसरे मुसलमान नौजवान दत्ता परिवार के घरों के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने दीवार बनकर खड़े हो गए. जमालुद्दीन के साथ 8 से 10 और लोग थे जो हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए आए थे. लेकिन सैकड़ों की तादाद में आए हमलावरों के सामने जमालुद्दीन और उनके साथियों की संख्या बहुत कम थी. हमलावरों के हाथ में तेज़ हथियार, लोहे की रॉड और लाठियां थीं. हमलावरों ने जमालुद्दीन पर रॉड से हमला किया. जमाल ज़मीन पर गिर पड़े. आख़िरकार जमालुद्दीन और उनके साथी हिंदुओं की पूजा की बेदी को नहीं बचा पाए. उन्होंने बताया, "मैंने अपनी जान के बारे में नहीं सोचा. वे मेरे भाई हैं, यह मेरा गांव है. वे निर्दोष थे. उन पर ऐसा बर्बर हमला क्यों हो?" उन्होंने कहा कि हमले का विरोध करने के लिए वह गांव के हिंदुओं के लिए मरने को तैयार थे. रविवार सुबह के इस हमले को बयान करते हुए वह अभी भी सदमे की स्थिति में हैं. जमालुद्दीन ने बताया कि यह घिनौना सांप्रदायिक हमला है और इस तरह की बर्बरता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. नसीरनगर के दत्तोबाड़ी, नमोशुद्र मोहल्ला, काशीपाड़ा और घोषपाड़ा में कट्टरपंथियों के एक समूह ने रविवार को हमला कर दिया था. जमालुद्दीन बताते हैं, "मुझे जान की परवाह नहीं. हमारे भाइयों, हमारी मां, हमारी बहनों की इज्ज़त पर हमला होगा तो हमारे होने का क्या मतलब रह जाएगा."



हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए आने वाले मुसलमानों में जमालुद्दीन के अलावा अब्दुल मजीद भी थे. वह पास के एक स्कूल में लाइब्रेरियन हैं. मजीद ने बताया कि हमलावरों की उम्र 20 से 25 साल के बीच रही होगी. उनका कहना है कि जिन लोगों ने अपने फेसबुक पोस्ट में काबा का अपमान किया है, उनके ख़िलाफ मुक़दमा चलाया जाना चाहिए लेकिन इस बिना पर हिंदुओं के घर और उनके मंदिरों पर अंधाधुंध हमले को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने कहा, "जो लोग इस्लाम के नाम पर हमला कर रहे थे, उनका मकसद दरअसल कुछ और है. हम ऐसा नहीं होने देंगे." मजीद बताते हैं कि नसीरनगर में हिंदू और मुसलमान कई सालों से साथ रह रहे हैं. दोनों अपने धार्मिक उत्सव मिलजुलकर मनाते हैं. दत्तोबाड़ी के लोग उन्हें बचाने आए मुसलमानों के शुक्रगुजार हैं. यहां की एक स्थानीय महिला नीलिमा दत्ता बताती हैं, "एक मुसलमान हमला करने आया था और एक दूसरा मुसलमान हमें बचाने के लिए. वे हमारी हिफ़ाज़त नहीं करते तो यहां सबकुछ लुट जाता."



नीलिमा ने अपने जीवन में इस तरह का हमला नहीं देखा था. जमालुद्दीन और मजीद जैसे रक्षकों की वजह से हमलावर भीड़ दत्ता परिवार के घरों में दाख़िल नहीं हो सकी. हालांकि उनके मंदिर को जरूर नुकसान पहुंचा है. नीलिमा ने बताया कि भीड़ ने उनके घरों पर पत्थर फेंकें. नीलिमा ने बताया कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दिनों में भी दत्तोबाड़ी ने ऐसा दिन नहीं देखा था. बीते दुर्गापूजा में यहां के मुसलमानों की मदद से ही उन्होंने अपना पर्व मनाया था. उन्होंने कहा, "जिन हिंदुओं ने फ़ेसबुक पर काबा का मज़ाक उड़ाया है, उन्हें गंभीर रूप से दंडित किया जाना चाहिए." (एचन्यूज रूम से साभार)

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