भारत को अंग्रेजो से आजाद कराने में मुसलमानों का सबदे बड़ा योगदान रहा है. क्यूंकि मुसलमानों का मकसद आजाद भारत था. इसलिए भारत में सबसे पहले आजादी का नारा बुलंद करने वाले शेर-ए-मैसूर टीपू सुलतान (रह.) है जो मुसलमान थे. आजादी का सपना सबसे पहले मुसलमानों ने देखा और उसके लिए सबसे ज्यादा कुरबानिया भी दि. आज भारत को आजाद होकर 70 वर्ष होने आ रहे है, इन 70 वर्षो में भारत पर 55 वर्ष से ज्यादा हुकूमत कांग्रेस ने की, और मुसलमान कांग्रेस को वोट डालते आरहे है. मतलब मुस्लिम समाज कांग्रेस का सबसे पुराना पक्का वोट बैंक है, इतना साथ देने के बावजूद भी मुसलमानों की हालात बद-से बदतर हो चुकी है, जो हालात आजादी के पहले थी वह अब नहीं रही, कांग्रेस ने सिर्फ मुसलमानों के इमानदारी का भरपूर फायदा उठाया और इस्तेमाल किया. चुनाव जैसे ही करीब आते है कांग्रेस मुसलमानों की हमदर्दी में लग जाती है बड़े-बड़े झूठे वादे शुरू हो जाते है.
सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में मुसलमानो की हालात दलितों से ज्यादा खराब हुई है. जब बीजेपी का प्रचार प्रसार चरम पर था उस वक्त बीजेपी यह प्रचार कर रही थी के कांग्रेस मुसलमानों की हमदर्द है हिन्दुओ की नहीं. और कांग्रेस इस बात का जवाब खुलकर नहीं दे सकती थी इसलिए कांग्रेस ने सच्चर कमिटी का गठन किया और गैरमुस्लिम बुद्धिजीवी और हिन्दुत्ववादियो को यह बताया की हम मुसलमानों के हमदर्द नहीं यह देखो हमने मुसलमानों का क्या हाल किया सबूत के तौर पर सच्चर कमिटी की रिपोर्ट है. अगर कांग्रेस मुसलमानों की हमदर्द होती तो वह सच्चर की शिफारिशो को लागू करती लेकिन ऐसा नहीं किया. कांग्रेस और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू है.
कांग्रेस मुसलमानों को हमेशा बीजेपी-शिवसेना जैसे फिरकापरस्त पार्टियों से डराती है. 'अगर तुमने कांग्रेस को वोट नहीं दिया तो वह लोग सत्ता में आ जायेंगे और तुम्हे ज्यादा नुक्सान उठाना पडेगा' लेकिन हकीकत यह है की मुसलमानों के लिए कोई भगी हमदर्द नहीं. कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों के साथ नाइंसाफी की है, हमेशा सौतेला व्यवहार किया है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस को मुसलमानों ने 15 वर्षो तक सत्ता में बिठाया, इसके बावजूद मुसलमानों का विकास नहीं हुआ. यह दोनों पार्टिया अपने आप को सेक्युलर होने का दावा करती है इन्ही की हुकूमत के दौरान साम्प्रदायिक दंगो की घटनाएं ज्यादा घटी. मस्जिदों में बम धमाके कराये गए, हजारो बेगुनाह मुसलमानों को जेलों में ठुंसा गया, कई मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया इसपर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस खामोश रही. इनकी खामोशी से यही साबित होता है की, यह लोग सिर्फ मुसलमानों का वोट के लिए इस्तेमाल करते है.
हैदराबाद तक सिमित मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन एमआईएम महाराष्ट्र में मुसलमानों की हमदर्द बनकर उभरी और इसकी शुरुआत महाराष्ट्र नांदेड के मनपा चुनाव से हुई. चुनाव के समय एमआईएम नेता असदुद्दीन ओवेसी, अकबर ओवेसी इन्होने मुसलमानों से बड़े-बड़े वादे किये, कॉलेज, अस्पताल, मुस्लिम वार्ड का विकास, शहर का विकास जैसे सारे वादे चुनाव के समय किये. मुसलमानों ने एमआईएम का भरपूर साथ दिया यह सोचकर की मुसलमान वादाखिलाफी नहीं करते. और एमआईएम को 11 सीटो पर कामियाबी मिली. यह एमआईएम की सबसे बड़ी कामियाबी थी और इसकी चर्चा पुरे महाराष्ट्र में होने लगी थी मानो जैसे भूकंप आ गया हो. सारी पार्टिया एमआईएम से डरने लगी, यहांतक की एमआईएम पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग तक की गयी. महाराष्ट्र में एमआईएम की लोकप्रियता बढ़ने लगी, और विधानसभा चुनाव मैदान में एमआईएम पूरी ताकत से उतरी, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पर जमकर निशाना भी साधा, महाराष्ट्र में मुसलमानों के साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ भी आवाज बुलंद की, सरकार के खिलाफ महाज खोल दिया और जमकर आरोप लगाए, कांग्रेस और राष्ट्रवादी को मुसलमानों का दुश्मन बताया, मस्जिदों में हुए बम धमाके, मालेगाव मामले के बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारिया, धुलिया, सांगली, मिरज के दंगे इन सब कारनामो की जिम्मेदार कांग्रेस और राष्ट्रवादी को बताया जो की बिलकुल सही बात है. ओवेसी ने मुसलमानों से अपील की, वह अपना अनमोल वोट एमआईएम को देकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी को अपनी औकात दिखाए. मुसलमानों ने यहांपर भी एमआईएम का साथ दिया और 2 सीटो पर कामियाबी मिली और 8 सीटो पर एमआईएम दो नंबर पर रही. चार वर्ष हो गए लेकिन एमआईएम ने जो वादे किये थे एक भी पूरा नहीं हुआ.
मुस्लिम वार्डो की हालात पहले से ज्यादा बदतर हो गयी. ना कोई कॉलेज, अस्पताल ना कोई विकास. सब कांग्रेस की तरह चुनावी वादा साबित हुआ. आम मुसलमानों में एमआईएम के खिलाफ आक्रोश है, गुस्से की लहर है. कांग्रेस की तरह एमआईएम भी मुसलमानों का विकास करने और इन्साफ दिलाने में पूरी तरह से नाकाम रही. लोगो का कहना है की एमआईएम ने भी मुसलमानों का उसी तरह इस्तेमाल किया जिस तरह कांग्रेस, राष्ट्रवादी करती आई है. चाहे नांदेड मनपा हो या महाराष्ट्र विधानसभा मुसलमानों की समस्याए जैसे थे वैसे ही है. एमआईएम ने जिस तरह से मुसलमानों के मुद्दों को उठाना था उस तरह से नहीं उठाया. औरंगाबाद में हुई बगावत हो या भोकर नगर परिषद का चुनाव ना लड़ने पर हुआ हंगामा हो, इतनी बात तो साफ़ हो गयी है की, मुसलमान एमआईएम से काफी नाराज है. फिलहाल तो एमआईएम के नगर सेवको ने सय्यद मोईन का इनकार करते हुए कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अशोक चव्हान का नेतृत्व स्वीकारा, और कांग्रेस दरबार में पहुँच रहे है. ओवेसी बंधुओ को चाहिए की मुसलमानों के साथ इन्साफ करे, अपने वादों को पूरा करे, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले महानगरपालिका चुनावों में एमआईएम को काफी नुक्सान उठाना पडेगा. एमआईएम का भविष्य अँधेरे में रहेगा जैसे महाराष्ट्र में मनसे का हाल हुआ उसी तरह के हाल के लिए तैयार रहे एमआईएम. तो क्या मुसलमान फिरसे कांग्रेस की तरफ जायेंगे या फिर तीसरा विकल्प ढूंढेंगे यह वक्त ही बताएगा.
मौलाना अहेमद बेग इनामदार, बिलोली, जिला नांदेड