कई अधिकारियों तथा कर्मचारियों एवं सामजिक कार्यक्रताओ का कहना है की आरटीआई के तहत ली गयी जानकारी का अक्सर गलत इस्तेमाल किया गया है. बुद्धिजीवी वर्ग में भी ऐसी चर्चा शुरू है. इसलिए आरटीआई में ली गयी जानकारी का उपयोग किस तरह किया गया इसकी जांच होना जरुरी माना जारहा है. कई खबरों में भी यह बात सामने आई है की कुछ लोग सिर्फ ब्लैकमेल करने और पैसा कमाने के लिए ऐसे अधिकारों का इस्तेमाल करते है. और कई लोगो पर ऐसे मसले में मामले दर्ज होने की खबरे बिच-बिच में पढने एवं सुनाने को मिलती ही रहती है. सरकार ने जो कानून भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाया उस कानून का अगर सिर्फ पैसा कमाने के लिए होता है तो यह व्यवस्था के लिए ख़तरा है. और इस खतरे से निपटने के लिए कोई तो रास्ता निकालना होगा. ऐसा करने से ब्लैकमेलरो से छुटकारा और भ्रष्टाचार उजागर होने में आसानी हो सकती है. इसीलिए बुद्धिजीवी लोगो में आरटीआई चर्चा का विषय बना हुआ है. जब भी कोई सुचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करता है उस जानकारी का क्या उपयोग किया इसकी जानकारी हासिल करने के लिए भी कोई कानून की अवशाकता महसूस की जारही है. ताके इस कानून का सही तरीके से इस्तेमाल हो सके.
गौरतलब है के जो लोग सुचना के अधिकार का देश हित के लिए उपयोग करते है ऐसे लोगो की संख्या कम होने के कारण ऐसे लोगो की तरफ भी शक से देखा जाने लगा है. इस वजह से देश हित के लिए काम करने वाले लोगो में नाराजी का महल बना दिखाई देता है. एक कहावत है की, "गेहूं के साथ कीड़े भी रगड़े जाते है" ऐसे में सरकार को चाहिए की कीड़े और गेहूं को अलग करने का उपाय निकालना होगा और देश हित के कार्य करने वालो को प्रोत्साहन देना होगा. तब जाके कुछ हद तक भ्रष्टाचार ख़त्म होने की संभावना जताई जा सकती है. इसके लिए आरटीआई में मिली जानकारी का उपयोग क्या हुआ, सुचना के अधिकार तहत प्राप्त जानकारी का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा यह जानने के लिए एक कमिटी का गठन आवश्यक माना जा रहा है.
-अहेमद कुरेशी
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