रिहाई मंच ने बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की आठवीं बरसी पर यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में आतंकवाद के नाम पर पीड़ित लोगों की जन सुनवाई की।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों के सवाल पर रैलियों में मुलायम बोला करते थे और अब मायावती भी बोलने लगी हैं। लेकिन इस सवाल पर इनका सदन में विपक्ष में रहकर बहस और सत्ता में रहते हुए गिरफ्तारियां साफ करती है कि ये मुसलमानों को इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं मानते। इस सवाल पर हमारे तथाकथित सेक्युलर दल भागते हैं कि इससे बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा। यह वहीं डर है जिसका खामियाजा मुसलमानों को भुगतना पड़ा और आजाद भारत में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए तो वहीं आज आतंकवाद के नाम पर जेलों में सड़ने को मजबूर है।
मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि शुरु से रिहाई मंच का आंदोलन सिर्फ गिरफ्तार लोगों का सवाल उठाने तक सीमित नहीं रहा बल्कि उसने अनेक फर्जी मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों से लोगों को बचाया हैं और हम इस लड़ाई को और तेज करेंगे। लखनऊ निवासी इजहार की जब वारगंल में 4 लोगों के साथ फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी जाती है या फिर बेगुनाह मुस्लिम युवकों के सवाल पर जब सुप्रीम कोर्ट जाना होता है तो नहीं जाते बल्कि यादव सिंह जैसे भ्रष्टाचारी के लिए जाते हैं। मायावती, अखिलेश दोनों ही सरकारों में न्यायालयों से रिहा हुए युवकों के खिलाफ दोनों सरकारें अदालत गई हैं जो साफ करता हैं कि यह इन गिरफ्तारियों के पक्ष में हैं।
रामपुर से आए जावेद ने कहा कि पाकिस्तानी लड़की से प्रेम करने की सजा में मुझे सालों जेल मे रहना पड़ा। उन्होंने कहा कि उनकी अम्मी पाकिस्तान अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए जाना चाहती थीं उसी दरम्यान फोन पर एक लड़की से उनकी बात हुई और प्रेम हो गया और वे भी अपनी अम्मी के साथ पाकिस्तान गए। वहां पर उससे मुलाकात हुई और बाद में भी एक बार वो वहां गए। उसी दरम्यान कारगिल वार चल रहा था और उनके प्रेम पत्रों में जो उन्होंने जावेद और मोबीना को जे एम लिखा था उसको कोड वर्ड बता दिया और जहां जावेद को उर्दू नहीं आती थी तो वहीं मोबीना को हिंदी नहीं ऐसे मे जिन दो दोस्तों सरताज और मकसूद ने उनकी मदद की उनकों भी जेल में आईएसआई एजेंट के नाम पर डाल दिया। मैं सरकार से मांग करता हूं कि वादे अनुसार मेरे पुनर्वास की गारंटी की जाए।
सीतापुर के सैय्यद मुबारक हुसैन ने कहा कि वह बरेली में फेरी लगाकर शाल बेचते थे। उनको सिर्फ गोरे रंग और कद-काठी के वजह से कश्मीरी जैसे दिखने के कारण आतंकवाद के झूठे मामले में चार साल जेल में बिताने पड़े। जब उनकी मां उनसे मिलने जाती थी तो पुलिस उनसे कहती थी कि आप कश्मीर का प्रमाण पत्र लाओ वो कहती थीं कि वो सीतापुर के हैं तो कहां से लाएं। मुबारक अपने बच्चों को लेकर भी काफी डरे-सहमे महसूस करते हैं क्यों कि उनका रंग भी मुबारक की तरह ही गोरा है। उन्होंने बताया कि वो 15 अगस्त के आस-पास बाहर नहीं निकलते क्यों कि उसी दरम्यान उनकी गिरफ्तारी हुई थी। बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ में मारे गए साजिद और आतिफ के गांव के व आजमगढ़ रिहाई मंच प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि बाटला हाउस के बाद से आज तक आजमगढ़ के 9 युवक गायब हैं और हमारा मानना है कि यह खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के पास हैं जिन्हें अपनी जरुरतों के मुताबिक समय-समय पर गिरफ्तार करने का दावा किया जाता है।
इंडियन मुजाहिदीन जिस संगठन के नाम पर यह कहा गया कि हाईटेक मुस्लिम युवक इसे संचालित कर रहें हैं और इसी के नाम पर हमारे गांव और आजमगढ़ समेत कर्नाटक के भटकल, केरल के कन्नूर, बिहार के दरभंगा जैसे क्षेत्रों से भारी पैमाने पर गिरफ्तारियां हई। शुरु से ही इस संगठन पर यह आरोप लगता रहा है कि यह खुफिया एजेंसियों का संगठन हैं तो उन्होंने इसको हमारे यहां से उठाए गए लड़कों को आईएसआईएस से जुड़ा बता दिया। उन्होंने सवाल किया कि एक साजिद को कभी अफगानिस्तान, सीरिया तो कभी ईराक में मारे जाने का दावा एजेंसियां करती हैं तो वहीं डा0 शहनवाज, अबू राशिद, खालिद, आरिज, मिर्जा शादाब बेग के बारे में भी आईएसआईएस से जुड़ा बताया जाता है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर जो खेल खेला जा रहा है उसने मुस्लिम समुदाय को मानसिक रुप से काफी प्रताड़ित किया हैं। आप ही सोचे जब यह झूठी खबरें इन लड़कों की मां-बहनें सुनती हैं तो उन पर क्या गुजरती होगी।
इसका असर यह है कि छोटा साजिद के पिता, अबू राशिद के माता-पिता, आरिज के पिता, आरिफ बदर के पिता इस घुटन को बर्दाश्त नहीं कर सके और अब दुनिया में नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि आतंकी षडयंत्रों में लोग बेगुनाह छूट रहे हैं ऐसे में उन घटनाओं में मारे गए लोगों के साथ भी इंसाफ नहीं हो रहा है कयोंकि असली गुनहगारों को आईबी और सुरक्षा एजेंसियां बचाती हैं क्यों कि वे खुद इस खेल में शामिल हैं। जून 2007 में हूजी के नाम पर गिरफ्तार लोगों की रिहाई इसका एक बड़ा उदाहरण है।अहमदाबाद और लखनऊ धमाकों के आरोपी संजरपुर निवासी आरिफ के परिजन व रिहाई मंच नेता तारिक शफीक ने कहा कि जब कचहरी धमाकों के बाद हूजी के नाम पर तारिक, खालिद, सज्जादुर्रहमान, अख्तर वानी को गिरफ्तार कर चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी तो फिर 19 सितंबर के बाटला हाउस के बाद कैसे इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर लखनऊ कोर्ट ब्लास्ट में आरिफ, गोरखपुर में सलमान, सैफ, मिर्जा शादाब बेग का नाम कहां से आ गया। यहां तो पुलिस की पूरी कार्रवाई में वो अपने ही दावे के खिलाफ खड़ी हो गई है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि 20-22 साल के लड़कों को अधिक से अधिक केसों में फंसाकर दशकों तक जेलों में रखकर उनक जीवन के कीमती साल छीन लिए जाएं और उनके परिवार और समुदाय को सवालों के घेरे में रखा जा सके। इसीलिए एक-एक पर अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और देश के तमाम धमाकों का आरोप लगाया गया है।
आजमगढ़ से आए विनोद यादव ने कहा कि बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद सवाल उठाने के वजह से उन्हें लखनऊ में अक्टूबर 2008 में यूपी एसटीएफ ने अवैध तरीके से चारबाग रेलवे स्टेशन के पास से उठाया था। एक हफ्ते की गैर कानूनी हिरासत में उन लोगों ने आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की लड़ाई लड़ने वालों के बारे में पूछ-ताछ की और उनके पास मेरे और हमारे साथियों के बीच जो बातचीत हुई उसके काल रिकार्ड थे जो उन्होंने सुना-सुनाकर पूछताछ की और प्रताड़ित करते रहे। दो दिनों तक लगातार लखनऊ की सड़कों पर गाड़ी में बैठाकर घुमाते और डरवाते रहे। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि सिमी के नाम पर भाजपा ने जो गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरु किया था वह मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में भी जारी रहा। मुलायम के समय में हुजी के नाम पर इलाहाबाद से वलीउल्लाह समेत 12 से अधिक, तो मायावती की सरकार में आजमगढ़ के तारिक-खालिद समेत 43 से अधिक गिरफ्तारियां की गयीं जबकि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवनों को छोड़ने का वादा करके सत्ता में आई अखिलेश सरकार में मौलाना खालिद की हिरासत में हत्या से लेकर 16 युवकों की गिरफ्तारियां हुई हैं। उन्होंने कहा कि आर्थिक मामलों का जब सवाल आता है तब राज्य के संघीय ढांचे को लेकर सभी सरकारें इसे राज्य के अधिकारों का दमन कहने लगती हैं पर जब कभी पढ़ने-लिखने, फेरी लगाने वाले मुस्लिम युवकों को दिल्ली स्पेशल सेल, एनआईए व अन्य एजेंसियां कहीं से उठाकर कहीं गिरफ्तार दिखा देती हैं तो राज्य के अधिकारों की दुहाई देने वाले यही राजनेता चुप्पी साध लेते हैं।
मंच महासचिव ने कहा कि 16 दिसंबर को संभल से आसिफ, जफर मसूद को अलकायदा के नाम पर तो जिस दिन मोदी लखनऊ आते हैं उसी दिन लखनऊ से अलीम और कुशीनगर से रिजवान को आईएसआईएस के नाम पर उठा लिया जाता है। उन्होंने कहा कि सिमी, हूजी के नाम पर जो गिरफ्तारियां हुई उनमें से अधिकतर लोग अदालतों से रिहा हुए हैं और जहां तक आईएम का सवाल है तो उसको आज सब मानते हैं कि यह आईबी का कागजी संगठन है। अलकायदा और आईएसआईएस के नाम पर जो गिरफ्तारियों का सिलसिला चलाकर मुस्लिम समाज के युवकों को भयभीत किया जा रहा है और जिस तरह से आने वाले समय में इसको विस्तार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं उसके खिलाफ मजबूत लड़ाई लड़ी जाएगी।
रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमले के आरोप में गिरफ्तार प्रतापगढ़ के कौसर फारूकी के भाई अनवर फारूकी, जो अपनी बुआ की मृत्यु की वजह से नहीं आ सके, ने कहा कि उनकी बातों को जनसुनवाई में रखा जाए। उन्होंने कहा कि रामपुर सीआरपीएफ कैंप हमले की घटना पर ही सवाल था और खुद मायावती ने कानपुर में बजरंग दल के कार्यकताओं द्वारा बम बनाते समय हुए धमाके के बाद जब श्री प्रकाश जायसवााल ने सीबीआई जांच की मांग की तो मायावती ने जवाब में कहा कि पहले रामपुर मामले की जांच करा लें। मायावती के इस जवाब में छुपे संदेश को समझा जा सकता है। सरकारों की नूरा कुश्ती में 8 साल से मेरे भाई और जंग बहादुर, शरीफ, गुलाब व अन्य जेल में हैं। हाई कोर्ट ने भी कहा है कि मामले की तेज सुनवाई की जाए पर उसका भी कोई असर नहीं हो रहा है।
अहमदबाद बम धमाकों के आरोपी आजमगढ़ के हबीब फलाही के भााई मोहम्मद आमिर ने कहा कि 26 जुलाई 2008 में अहमदाबाद और सूरत में धमाकों की जो घटनाएं हुई उसके बाद थोक के हिसाब से इस केस में 90 से अधिक आरोपी बनाए गए हैं और 2600 से अधिक गवाह हैं। जो साफ करता है कि यह सिर्फ मुकदमे को सालों-साल खींच कर इन 20-22 साल के लड़कों को जेल में बूढ़ा करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 2012 के चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव से भी मिला था उन्होंने वादा किया था कि वो इन केसों में मदद करेंगे। उन्होंने बताया कि अहमदाबाद की जेल में बंद आजमगढ़ के लड़कों पर जेल में सुरंग खोदकर भागने का आरोप भी लगाया गया है । आप ही बताएं चम्मच, थाली, दातून, ब्रश आदि से 120 फिट की सुरंग क्या खोदी जा सकती है और अगर खोदी भी गई तो उसका मलबा कहां जाएगा।
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