नई दिल्ली। असम में इतिहास के भयानक बोडो दंगे में अत्याचार के खिलाफ अठारह हजार एफआईआर दर्ज कराकर मुकदमा लड़ने वाली जमीअत की कानूनी टीम को बड़ी सफलता मिली है। जमीअत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के निर्देश पर स्थापित जमीअत लीगल सेल के प्रयासों से गुवाहाटी हाई कोर्ट में अंततः सभी ४३ अभियुक्त को जमानत मिल गई है।
वर्ष 2012 में कुल 44 मसलम युवाओं के खिलाफ सीबीआई केस नंबर 6 (B) 12 के तहत हत्या, लूट,आगजनी और देश के खिलाफ युद्ध लड़ने का मुकदमा दर्ज हुआ था, उनमें से एक व्यक्ति ओसामा अली का अदालती हिरासत में निधन हो चुका है। शेष को अदालत ने जमानत देते हुए अपनी टिप्पणी में कहा कि आरोपियों को अधिक कैद रखने का पर्याप्त कारण मौजूद नहीं है, इसलिए उन्हें बीस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत दी जाती है।
उल्लेखनीय है कि 2012 में बोडो दंगों की वजह से पांच लाख से अधिक मुसलमान पलायन पर मजबूर हुए थे, बोडो के कम्युनल गिरोह ने मुसलमानों के खिलाफ खुलेआम हथियार का इस्तेमाल किया, जान व माल के नुकसान के अलावा उनके घरों को जला दिया गया और उन्हें अपना वतन व स्थान छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, जिसके मद्देनजर दंगाइयों के खिलाफ तीन तरह के मुकदमात हुए जबकि कथित तौर पर संतुलन बनाए रखने के लिए पुलिस ने गलत तरीके से मुस्लिम युवकों के खिलाफ भी तीन मामले दर्ज किए और शिविरों में जीवन जीने पर मजबूर उक्त लोगों को गिरफ्तार किया गया।
जमीअत उलेमा ए हिंद के प्रयासों से उन्हें जमानत मिली है, हालांकि उनका मुकदमा अदालत में जारी है . जमीअत उलेमा ए हिंद की ओर से कानूनी सेल के जिम्मेदार एडवोकेट मसूद आलम ने बताया कि जमीअत लीगल सेल पूरे ध्यान से मुकदमा लड़ रही है। उन्होंने कहा कि इन लोगों की रिहाई विभिन्न चरणों में हुई है और अब कुछ दिन पहले शेष छह लोगों की रिहाई हुई है।
इन युवकों की रिहाई पर जमीअत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि जमीअत उलेमा ए हिंद मज़लूम दंगा पीड़ितों के लिये कानूनी संघर्ष जारी रखेगी। मौलाना मदनी ने इसके लिए पूरी टीम को बधाई दी और कहा कि मूल समस्या न्याय की आपूर्ति है, हम असम में दो आयामों पर मुकदमा लड़ रहे हैं, एक ओर जहां पीड़ितों को इंसाफ दिलाना है, जिन्हें सख्त जानी व माल नुकसान का सामना कड़ना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर जिन लोगों को गलत तरीके से फंसाया गया उन्हें भी रिहा कराना है। जमीअत उलेमाए हिंद ने दंगों के बाद असम में बड़े पैमाने पर राहत, पुनर्वास और सामूहिक विवाह आदि की व्यवस्था की थी, तब उस बात की जरूरत महसूस की गई कि पीड़ितों का मुकदमा एक संगठित प्रणाली के तहत लड़ा जाए, मौलाना हकीमुद्दीन कासमी सचिव जमीअत उलेमा ए हिंद और एडवोकेट नियाज़ अहमद फारुकी कार्यकारिणी सदस्य जमीअत उलेमा ए हिंद को मौलाना मदनी ने यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे ऐसी प्रणाली स्थापित करके सक्रिय करें तथा मौलाना मदनी ने खुद भी असम के दौरे में इस की समीक्षा की और वकीलों की टीम से बैठकें की। इन लोगों ने लीगल सेल को 4 भाग में विभाजित करके काम शुरू करवाया, इस में जमीअत उलेमा ए असम यूनिट के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल की सरपरस्ती हासिल रही हे.जमीअत उलेमा असम के महासचिव हाफिज बशीर ने कहा कि यहां एक समस्या दंगों के बाद गायब और लापता लोगों का भी है, उनके बारे में आज तक पता नहीं चला है, हम उनके लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।