मथुरा में आजाद भारत विधिक वैचारिक सत्याग्रही संगठन ने 15 मार्च 2014 को जिला प्रशासन से दो दिन की अनुमति लेकर जवाहर बाग़ में अपना डेरा जमाया था. जवाहर बाग़ में स्तिथ जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय, पौध शाला, कर्मचारियों से सम्बंधित आवास थे. इस संगठन के लोगों ने जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय से लेकर पूरे जवाहर बाग़ पर कब्ज़ा कर लिया था जो 270 एकड़ में फैला हुआ था जिले के कप्तान, जिला मजिस्ट्रेट ने कभी कार्यवाई नहीं की और एक तरह से जिला प्रशासन व सत्याग्रहियों के नेता राम वृक्ष यादव से अघोषित सांठ-गाँठ थी. दो पुलिस अधिकारी शहीद हो गए, 22 लोग सरकार की निगाह में मारे गए. मुख्य सवाल यह है कि इस तरह की कब्जेदारी कराने वाले अधिकारीयों, कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाई संभव नहीं है न जिला प्रशासन या सरकार ऐसी कोई कार्यवाई करने की मंशा रखती है.
अब हाय-हाय करने से कोई फायदा नहीं. आने वाले कल में फिर इसी तरह से राजनीतिक संरक्षण के आधार पर काम करते रहेंगे. कानून, न्याय, लोकतंत्र व सुरक्षा जैसे शब्द कागजी बने रहेंगे और जब फिर कभी जरूरत होगी तो सारे शब्दों को अलग रखकर नरसंहार की मुद्रा में आ जायेंगे. जितनी भी इस तरह की बड़ी घटनाएं होती हैं उसमें अपने बचाव में सरकार यह कहकर फुर्सत पाने की कोशिश करती है कि खुफिया एजेंसियां फेल हो गयी हैं जबकि वास्तविकता यह है कि अवैध कब्जा पिछले दो वर्षों से चल रहा था। बावजूद इसके संबंधित विभाग ने इन कब्जेधारियों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की। स्थानीय लोगों की मानें तो इस कब्जे के पीछे समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता का है। स्थानीय सपा नेता ने इस जवाहर बाग में कब्जेधारियों को अपनी मदद दे रखी थी।
अगर माननीय उच्च न्यायलय का कब्ज़ा हटाने का आदेश न होता तो मथुरा जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के बगल में स्तिथ जवाहर बाग़ से कब्ज़ा हटाने का कोई मामला मुद्दा ही नहीं था.
प्रदेश में सशक्त लोगों ने अपनी-अपनी पार्टी की सरकारों में गैंग बनाकर जल, जंगल, जमीन की लूट का काम करते हैं. सरकारी जमीनों को कब्ज़ा करते हैं और सरकार उनकी मदद करती है. राजनीतिक दलों के संगठन पर बालू, मौरंग ठेकेदार, माफिया, स्मगलर्स, नकली खादों के व्यापारी, मिलावटी सामानों के विक्रेता आदि का अब कब्ज़ा होता है. जिला प्रशासन उन्ही की इच्छा और आकांक्षा के अनुसार कार्य करता है. जिला प्रशसन अगर कानून के हिसाब से कार्य कर रहा होता तो इन सत्याग्रही संगठन की हिम्मत ही नहीं पड़ती जवाहर बाग़ में जाने की.
रणधीरसिंह सुमन