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मेडिकल साइंस की दृष्टि मे रोज़े का महत्व

रजा न केवल मानव जीवन के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभदायक है बलकि इस प्रकार का रोजा समाज की शांति और समृद्धि का कारण है। हालाकि यह बात अलग है कि बंग्लादेश की लेखक तसलीमा नसरीन जैसे बेवाक़ूफ रोज़ा नही रखते और उसकी मुखालिफत मे कहते है कि मै कोई बेवाख़ूफ नही हूँ जो रोज़ा रखू रोज़ा तो बेवाक़ूफ लोग रखते है। अब इन्हो कौन बताए कि पिछले युगों में रोज़े को खास महत्व प्राप्त था और पाइथागोरस, सुकरात और इब्ने सीना जैसे हकीम रोजा द्वारा बहुत से रोगों का इलाज किया करते थे। और आज की मेडिकल साइंस मे भी रोज़े को एक खास महत्व प्राप्त है। 

इसके लिए हम इस लेख मे तीन डाक्टरो और एक नर्विज की कमेटी के दृष्टिकोण बयान करेंगे कि रोज़े के संबंध मे उनके विचार क्या है और वह इस्लाम की इस इबादत को कैसे देखते है? 
मनुष्य के शरीर में मेदा एक ऐसा कोमल अंग है जिसकी सुरक्षा न की जाए तो उस से विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार रोज़ा मेदा के लिए उत्तम औषधि है क्योंकि एक मशीन यदि सदैव चलती रहे और कभी उसे बंद न किया जाए तो स्वभावतः किसी समय वह खराब हो जाएगी। उसी प्रकार मेदे को यदि खान-पान से विश्राम न दिया जाए तो उसका कार्यक्रम बिगड़ जाएगा।
डाक्टरों का मत है कि रोज़ा रखने से आंतें दुरुस्त एंव मेदा साफ और शुद्ध हो जाता है। पेट जब खाली होता है तो उसमें पाए जाने वाले ज़हरीले कीटाणु स्वंय मर जाते हैं और पेट कीड़े तथा बेकार पदार्थ से शुद्ध हो जाता है। उसी प्रकार रोज़ा वज़न की अधिकता, पेट में चर्बी की ज्यादती, हाज़मे की खराबी(अपच), चीनी का रोग (DIABATES) बलड प्रेशर, गुर्दे का दर्द, जोड़ों का दर्द, बाझपन, हृदय रोग, स्मरण-शक्ति की कमी आदि के लिए अचूक वीण है।
डा0 एयह सेन का कहना हैः “फाक़ा का उत्तम रूप रोज़ा है जो इस्लामी ढ़ंग से मुसलमानों में रखा जाता है। मैं सुझाव दूंगा कि जब खाना छोड़ना हो तो लोग रोज़ा रख लिया करें।”
इसी प्रकार एक इसाई चिकित्सक रिचार्ड कहता हैः “जिस व्यक्ति को फाक़ा करने की आवश्यकता हो वह अधिक से अधिक रोज़ा रखे। मैं अपने इसाई भाइयों से कहूंगा कि इस सम्बन्ध में वह मुसलमानों का अनुसरण करें। उनके रोज़ा रखने का नियम अति उत्तम है।” (इस्लाम और मेडिकल साइंस 7)
नर्विज की एक कमेटी ने एक खोज द्वारा स्पष्ट किया कि रोज़ा जोड़ों के दर्द और सूजन के लिए सब से उत्तम औषधि है शर्त यह है कि निरंतर चार सप्ताह ( और यही इस्लामी रोज़े की अवधि है) तक रखा जाए।
आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध प्रोफ़ेसर डा. मोर पाल्ड कहते हैंः ”मैंने इस्लामी शिक्षाओं का अध्ययन किया और जब रोज़े के विषय पर पहुंचा तो चौंक पड़ा कि इस्लाम ने अपने अनुयाइयों को इतना महान फारमूला दिया है, यदि इस्लाम अपने अनुयाइयों को और कुछ न देता तो केवल यही रोज़ा का फारमूला उसके लिए काफ़ी था।” ( सुन्नते नबवी और आधुनिक विज्ञान 1/165)
तात्पर्य यह कि रोज़ा (उपवास) एक महत्वपूर्ण इबादत होने के साथ साथ शारीरिक व्यायाम भी है। (हिन्द खबर से साभार)

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