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काफिर शब्द नहीं है गाली - हुमा नक्वी

इस्लाम आलमी भाईचारे को मानता है. इस्लाम की धारणा है की सभी इंसान पैगम्बर आदम (अ.स.) की औलाद है. इसका मतलब यह हुआ की सारे इंसान भाईचारे के बंधन में बांध गए. और इंसानों ने अपनी पहचान बनाने के लिए छोटे छोटे काबिले बनाए. कबीलों ने अलग अलग रूप धारण किया. इस्लाम में अच्छे और बुरे इंसान सिर्फ अपने आमाल से जाने जाते है. फिर चाहे वह कोई भी काबिले (धर्म) से हो. कुरआन में साफ लिखा है के, कोई जाती या धर्म के नाम से उंचा या नीच नहीं माना जाएगा. और गाली देने के बारे में इस्लाम ने सख्त मना किया है. बस कुछ लोगो ने फैलाई गलत फहेमी के वजह से लोग काफिर शब्द को गाली समझ बैठे है. महेंद्र कपूर ने गाये एक गाने में काफिर शब्द का इस्तमाल किया गया है.
जब तलक कोई रंगीन सहारा ना हो. वक्त काफिर जवानी का कटता नहीं.
तुम अगर साथ देने का वादा करो, मैं यूँही मस्त नगमे लुटाता रहू.
इसपर एक सवाल यह उठाता है की, क्या हिन्दू लोगो को शायर ने काली दि है ? नहीं.
क्या काफिर एक गाली है? क्या आईये देखते है हुमा नक्वी ने क्या कहा
तोगड़िया और उस जैसी मानसिकता वाले लोग यह तय करेगा की काफिर गाली है? दोस्तों काफिर का मतलब पता करें. काफिर का मतलब बस इतना है जिनसे कलमा नहीं पढ़ा या जो मुसलमान नहीं.
आप किसी भी धर्म से सम्मान के साथ जुड़े हुए हैं तो आपको क्या आपत्ति है? हर धर्म का सम्मान हर धर्म ने करने को कहा है. हाँ किसी को गद्दार और आतंकवादी कहना जरूर गाली है.... इस्लाम को बदनाम करने वाले लोग इस्लाम पर इल्जाम लगाते है की इस्लाम में जो इस्लाम को न माने उसको काफिर कहा जाता है, और काफिर एक गाली है।
अब सवाल आता है, की काफिर का मतलब क्या है। काफिर का अर्थ क्या है, आइये समझते हैं काफिर इस्लाम में अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ - ‘अस्वीकार करने वाला’ या ‘ढ़कने वाला’ होता है किन्तु इस्लाम में ‘काफिर’ शब्द उस व्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है जो अल्लाह को नही मानता, या जो मोहम्मद साहब को अल्लाह का संदेशवाहक नही मानता (अर्थात सभी गैर-मुसलमान लोग)।
काफिर शब्द अरबी भाषा में गैर-मुस्लिम का अनुवाद है।
आम भाषा में हर धर्म में दो तरह के लोग होते है। जैसे - यहूदी - गैर यहूदी (रमू - दवद रमू), ईसाई - गैर ईसाई (बीतपेजपंद - दवद बीतपेजपंद), हिन्दू - गैर हिन्दू (ीपदकन - दवद ीपदकन), मुस्लिम - गैर मुस्लिम (उनेसपउ - दवद उनेसपउ)
लेकिन अब सवाल आता है, की इस्लाम के अलावा दुसरे धर्मो में उस धर्म को न मानने वालो को क्या कहा गया है।
यहूदी धर्म में गैर यहूदियों को कहा गया है। कमउवदए कमअपस (दानव, शैतान), हमदजपसम ( बुतपरस्त )
ईसाई धर्म में गैर ईसाई को कहा गया है।  कमउवदए कमअपस (दानव, शैतान), हमदजपसम ( बुतपरस्त )
हिन्दू धर्म में गैर हिन्दू को कहा गया है (यहाँ पर यह धयान रखें की उस समय भारत में मुसलमान नहीं आये थे, तो उनका इस बात से कोई लेना देना नहीं है)। झ राक्षस, असुर, मलेछ्य ( दुष्ट व्यक्ति )
अब आप स्वयं देखें कि सत्य क्या है। अब आप खुद तय करें की शब्द ‘काफिर’ क्या एक गाली है? या फिर तोगड़िया और उस जैसे मानसिकता वाले लोगों का मुसलमानों के खिलाफ हिन्दुओं को भड़काना खुद निर्णय लें.
इसी तरह से मैं एक और बात बताना चाहती हूँ, इस्लाम मिडिल ईस्ट में सबसे जियादा प्रैक्टिस में रहा और वहां की शब्दावली में शब्द ‘हरामी’ बहुत की कसरत से इस्तेमाल किया जाता है, अक्सर वहां के वतनी (दंजपवदंसे) एक दुसरे को अरबी में ‘इन्ते हरामी’ कहते सुने जाते हैं...और यह शब्द कभी कभी एक बाप अपने बेटे को भी कहता है, अब जब हम भारतीय इस तरह की बात सुनते हैं तो ‘हारामी’ शब्द का मतलब भारतीय भाषा में नाजायज’ है या एक गाली, जबकि अरबी भाषा में इसका मतलब बस ‘चोर’ है वो चोर चाहे एक चॉकलेट चुरा ले या सारा खजाना.... क्रप्या किसी की बात सुन कर नहीं समझ कर समझें

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