जब चाहे मुझ पे वार करो सीरिया हूँ मैं .
किलकारियां थी बच्चों की इस घर मैं भी कभी .
खुशहालियाँ थी मेरे मुक़द्दर मैं भी कभी .
आगे थे सबसे दौर-औ-ज़मन मैं भी दोस्तों
खिलते थे फूल मेरे चमन मैं भी दोस्तों .
फिर ये हुआ के सारे मनाज़िर बदल गए .
इंसां बदल गए ये अनासिर बदल गए .
दे कर के गोरे फौजियों को जंग की कमान .
एक बादशा ने मुझको किया हे लहूलुहान .
मारी गयी हैं गोलियां मुझको हज़ार बार .
मय्यत उठा रहे हैं मेरे अज़्म की कहार .
इज़्ज़त को तार तार मेरे सामने किया .
बहनों को मेरी ख्वार मेरे सामने किया .
ममता की डबडबाती निगाहों के सामने .
बच्चों को भून डाला हे माओं के सामने .
आये फ़रिश्ते अपने परों से जो ढांपने .
बच्चों को बेकफन ही किया दफ्न बाप ने .
बम की वजह से अपना पराया चला गया .
बच्चों के सर से बाप का साया चला गया .
सीने को अपने आब से पत्थर किये हुए .
माँ के कटे सरों को हैं बच्चे लिए हुए .
बम गोलियां रटार मुमासिल भी दाग कर .
वो खुश नहीं हुए हैं मिसाइल भी दाग कर .
कोई रिदा ही डाल दे के मर्द-औ-जन हैं हम .
मुद्दत से अपने शहर मैं बे पैरहन हैं हम .
करता हूँ रोज़ उठ के मैं सेहरी बराएनाम .
इफ्तार के लिए भी मयस्सर नहीं तआम .
वो मुफलिसों के हक़ की हिमायत कहाँ गयी .
मुंसिफ कहाँ गए वो अदालत कहाँ गयी .
आमिर सरीखी फ़िल्मी सितारे कहाँ पे हैं .
लोगों की वो मदद के इदारे कहाँ पे हैं .
दीन-ए-इलाही की कोई पहचान हम भी हैं .
मोमिन हो तुम अगर तो मुसलमान हम भी हैं .
कपडे से रख्त से या ग़िज़ा से नवाज़ दो .
गर कुछ नहीं तो अपनी दुआ से नवाज़ दो .
तफकीर-औ-फ़िक़्र का ना कलेजा उबल पड़े
यारों मेरी क़लम से लहू ना निकल पड़े .
अब इख्तिताम करते हैं लिल्लाह बात को .
अल्लाह तुझ पे छोड़ते हैं अपनी ज़ात को .
माहौल सौ ग्वार करो सीरिया हूँ मैं .
जब चाहे मुझ पे वार करो सीरिया हूँ मैं .
लकी फारुकी