मुम्बई : हम हमेशा से सुनते आए है कि, सवर्ण लोग दलितों पर 5 हजार साल से अमानवीय अत्याचार करते आये है । आज भी कभी कभी ऐसी खबर देखने या सुनने को मिलती है । दलित को घोड़ी चढ़ने से रोका, मंदिर में प्रवेश से रोका वगैरह .....
लेकिन एक बात समझ मे नही आई मुसलमान छत्रपति शिवाजी महाराज को भी साथ दिए, राष्ट्रपिता जोतीराव फुले, माँ सावित्री फुले सारे महापुरुषों को साथ सहयोग दिया और बाबासाहब को उनके अपनो ने यानी दलितों ने धोका दिया तब उन्हें मुसलमानो से साथ दिया बावजूद इसके अक्सर मोब लीनचिंग में दलितों का ही हात क्यों रहा ? है ही में है असम मामले में लाशों पर कूदने वाला भी दलित ही निकला ।
सामाजिक कार्यकर्ता शादान अहमद लिखते है कि,
लाश पर कूदने वाला पत्रकार दलित निकला । जहां अत्यधिक क्रूरता होती है वहां दलित ही निकलता है यह चाहे शंभू रैगर हो या अन्य ।
लिंच करती पुलिस भी मुख्यत ओबीसी दलित ही रहती हैं।
ऐसा इसलिए है के यह वोह लोग हैं जिन्होंने हजार साल के मुस्लिम हुकूमत के बाद भी हिन्दू धर्म को संजोए रखा , सीने से लगाए रखा यह कट्टर हिन्दू हैं ।
सऊदी में बैठे स्कॉलर कहते हैं के वहां आए लोगों में अन्य के अपेक्षा हिन्दुओं पर तबलीग सबसे मुश्किल होती है, अन्य के मुकाबले इस्लाम को यह ज़्यादा रेजिस्ट करते हैं ।
कारण वही है के इन्होंने हज़ार साल की तबलीग देखी है इस्लाम की दावत झेली है और उससे अपने आप को बचा के हिन्दू धर्म में बनाए रखा है। जो अत्यधिक कट्टर थे वहीं हिन्दू धर्म में बचे रह गए हैं।
और अब जो लाशों पर कूदने की घटना है वोह इसी का बदला है ,अंदर का गुस्सा है जो हजारों साल के बाद निकलने का मौका पाया है।
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- Shadan Ahmed