डेविड सेलबॉर्न पश्चिमी दुनिया का मशहूर लेखक है, उसने एक किताब लिखी थी 'The losing battle with islam'
इस किताब में उसने लिखा के पश्चिमी दुनिया इस्लाम से हार रही है, उसने हार के कई कारण गिनाए हैं, जिसमे इस्लाम के मज़बूत फैमिली सिस्टम को भी एक कारण बताया है ।
पश्चिमी दुनिया मे फैमिली सिस्टम तबाह हो चुका है, लोग शादी करना पसंद नहीं करते, समलैंगिकता, अवैध संबंध, लिव इन जैसी कुरीतियों के आम होने से फैमिली सिस्टम टूटता जा रहा है । दिन ब दिन ऐसे बच्चों की तादाद बढ़ती जा रही है जिन्हें मालूम नही होता के उनके पिता कौन हैं । बूढ़े मां बाप को घर मे रखने को कोई तय्यार नही होता, ओल्ड ऐज होम में उनका बुढापा गुज़रता है । पश्चिमी समाज मे ये कुछ ऐसे समाजिक परिवर्तन आ चुके हैं जिसके नतीजे में पूरा पश्चिमी समाज तबाह होने के कगार पर पहुंच चुका है । पश्चिमी दुनिया मे फैमिली सिस्टम इस बुरी तरह से तबाह हो चुका है के वहां की पोलिटिकल पार्टियां फैमिली सिस्टम को बचाने का वादा अपने इलेक्शन में करती है । ऑस्ट्रेलिया में तो 'फैमिली फर्स्ट' नाम से एक पोलिटिकल पार्टी तक बना ली गयी थी । फैमिली सिस्टम को बचाना वेस्टर्न वर्ल्ड का सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि अगर फैमिली नही बचेगी तो समाज भी देर सवेर ध्वस्त हो जाएगा ।
अमेरिकी इस्लामोफोबिक लेखक बिल वार्नर जो ख़ुद को पॉलिटिकल इस्लाम का क्रिटिक कहता है । उसने अपने एक हालिया प्रोग्राम में सवाल का जवाब देंते हुए कहा के अमेरिकी औरतें मुसलमानो से शादी करना पसंद करती हैं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें एक शौहर मिलता है उनके बच्चों को बाप मिलता है । ये कारण अमेरिकी औरतों को मुसलमानो से शादी करने की ओर आकर्षित करते है ।
एक दूसरे सवाल का जवाब देते हुए उसने कहा के इस्लाम फैमिली को सभ्यता की बुनियाद मानता है । और मैं इस बात से सहमत हूँ, अमेरिका में बूढ़े और उम्र दराज़ लोगों के साथ बुरा व्यवहार आम बात है, लेकिन मुसलमान बूढ़े और उम्र दराज़ लोगों से अच्छा व्यवहार करते हैं । चाहे वो बूढ़े और उम्र दराज़ लोग गैरमुस्लिम ही क्यों न हों ।
पश्चिमी विचारक ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते है के पूरी दुनिया मे सिर्फ इस्लाम और मुस्लिम सोसाइटी ही ऐसी बची है, जहां फैमिली सिस्टम बचा हुआ है । और इस्लाम एक ऐसा इको सिस्टम डेवलप करता है जहां फैमिली सिस्टम फलता फूलता है, जहां बच्चों की अच्छी परवरिश होती है । बूढ़ों के साथ अच्छा बर्ताव होता है,
क़ुरआन मुसलमानो को अपने मां बाप से अच्छा व्यवहार करने को कहता है -
"तुम्हारे रब ने फै़सला कर दिया है कि तुम लोग किसी की बन्दगी न करो मगर सिर्फ़ उस (यानी अल्लाह) की, और माता-पिता के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उन्हें (गु़स्सा या झुंझलाहट से) ‘ऊंह’ तक भी न कहो, न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो। और उनके आगे दयालुता व नम्रता की भुजाएं बिछाए रखो, और दुआ किया करो कि ‘‘मेरे रब जिस तरह से उन्होंने मुझे बचपने में (दयालुता व ममता के साथ) पाला-पोसा है, तू भी उन पर दया कर।” – (क़ुरआन, 17- 23,24)
इस्लाम पति-पत्नी के बीच पारिवारिक सम्बन्ध को सन्तुष्टि, प्रेम, सहानुभूति दोनों के अधिकार एवं दायित्व और परंपरा के अनुसार मिल-जुलकर साथ रहने के नियम पर बल देता है।
“उनके संग भले ढंग से रहो-सहो। अगर वे तुम्हें पसन्द न हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो मगर अल्लाह ने उसी में बहुत कुछ भलाई रख दी हो।” (क़ुरआन, 4:19)
क़ुरआन और हदीस में इस्लाम की विस्तृत और स्पष्ट शिक्षाएं मुसलमानो को इस बात का आदेश देती हैं के वो अपने बच्चों, बीवी, मां बाप और रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक करे । उनका ख्याल रखे और इसके बदले में वो आख़िरत में बेहतर इनाम के हक़दार बनेंगे ।
आख़िरत की कामयाबी को हासिल करने की प्रेरणा मुसलमानो को अच्छा बर्ताव करने के लिए प्रेरित करती है । जिसके फलस्वरूप अच्छी फैमिली और अच्छे समाज का निर्माण होता है, जिसमे सुकून, राहत और ख़ुशी होती है, जो फैमिली और सोसाइटी को स्थायित्व देता है ।
यही वजह है के डेविड सेलबॉर्न और बिल वार्नर जैसे लेखक भी ये कहने पर मजबूर हो जाते हैं, के इस्लाम के मज़बूत फैमिली सिस्टम की वजह से पश्चिम देर सवेर इस्लाम से हार जाएगा । हालिया दिनों में मलाला यूसुफजई का बयान काफी चर्चा में रह जिसमे उसने कहा के शादी करना ज़रूरी नही है । ये बयान दरअसल समाज की बुनियादों पर प्रहार है । क्योंकि अगर इंसान शादी नही करेगा तो फैमिली नही बनेगी और न ही समाज का निर्माण हो पाएगा ।
मलाला यूसुफजई को वेस्ट ने खड़ा किया है । तो अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल भी करेगा, और करता रहता है । मलाला हों या उसके समर्थक हों, उन सबका टारगेट इस्लाम और मुस्लिम समाज मे मौजूद मज़बूत फैमिली सिस्टम को तोड़ना और खत्म करना है, शादी बियाह पर दिया गया मलाला का हालिया बयान उसी सिलसिले की कड़ी है ।
मलाला और उनके समर्थक दरअसल सभ्यताओं की जंग में पश्चिम के प्यादे हैं, उनके एजेंट हैं, जो सभ्यताओं की जंग में पश्चिम की हारती हुई बाज़ी को जीत में बदलने के लिए फड़फड़ा रहे है
- मोहम्मद इक़बाल