भारतीय पत्रकारिता को एक साहसिक मुक़ाम पर ले जाने वाले दानिश सिद्दीक़ी आपको सलाम। अलविदा। आपने हमेशा मुश्किल मोर्चा चुना। मोर्चे पर आप शहीद हुए हैं।
पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी आपने मोर्चों का चुनाव नहीं छोड़ा। बंदूक़ से निकली उस गोली को हज़ार लानतें भेज रहा हूँ जिसने एक बहादुर की ज़िंदगी ले ली।जामिया से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई कर फ़ोटोग्राफ़ी को अपना करियर बनाया। भारत का मीडिया घर बैठ कर अफ़ग़ानिस्तान की रिपोर्टिंग कर रहा है। किसी को पता भी नहीं होगा कि भारत का एक दानिश दोनों तरफ़ से चल रही गोलियों के बीच खड़ा तस्वीरें ले रहा है।
पत्रकार दानिस सिद्दीकी की इंतकाल पे UN ने श्रद्धांजलि दी लेकिन अभी तक ना ही भारतीय पत्रकारों ने और ना ही भारत के किसी राजनीतिक दल की ओर से श्रद्धांजलि दी गई क्योंकि वो एक मुस्लिम पत्रकार थे और सच्चे पत्रकार थे । हमारे सड़ी हुई मानसिकता के लोग कीड़े पड़कर मारने वालों को श्रद्धांजलि देते है । बलात्कारियों को श्रद्धांजलि देते है । दोगलापण की हद है,