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कड़वा सच : ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत और आज का भारत

कड़वा सच - ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत और आज का भारत

कड़वा सच : ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत और आज का भारत


यह एक कड़वा सच है कि इस देश में मुसलमानों को महत्वपुर्ण पदों पर नियुक्ति नहीं दी जाती। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर की पोस्ट पर सबसे वरिष्ठ और सबसे योग्य 1987 बैच के आईपीएस ताज हसन को नज़र अंदाज़ करके 1988 बैच के उनसे जूनियर IPS बालाजी श्रीवास्तव ने बुधवार को पुलिस कमिश्नर बना दिया गया। जबकि दो दिन पहले तक उनका नाम सबसे आगे था।

इस बात से आईपीएस ताज हसन नाराज दिखे और  बुधवार को आयोजित हुए कार्यक्रम में वह शामिल नहीं हुए तथा बालाजी श्रीवास्तव को सीपी का कार्यभार मिलने के बाद ही वह आठ दिन की छुट्टी पर चले गए हैं। बताया जा रहा है कि वो जूनियर को सीपी बनाए जाने से खुश नहीं हैं।

सेना हो या रक्षा या अन्य मंत्रालय के महत्वपुर्ण पदों पर भी मुसलमानों की नियुक्ति नहीं की जाती जबकि आईएसआई की जासूस माधुरी गुप्ता नियुक्ति पा जाती हैं।

इस देश में स्वतंत्रता के पहले या आजतक मुसलमानों की देश से गद्दारी का एक भी उदाहरण मौजूद नहीं बल्कि उसके सामने वीर अब्दुल हमीद , कैप्टन हनीफुद्दीन , एपीजे अब्दुल कलाम और ब्रिगेडियर उस्मान तक के उदाहरण सामने हैं।

कौन ब्रिगेडियर उस्मान ? वही जिन्होंने अपनी जान देकर काश्मीर को पाकिस्तान से बचाया था , और आज के ही दिन 3 जुलाई को वह शहीद हो गये थे।

भारत के पास काश्मीर का जो बचा खुचा तीसरा हिस्सा है वह ब्रिगेडियर उस्मान के कारण है।

ब्रिगेडियर उस्मान , जिनको जिन्ना और पाकिस्तान की सरकार ने बुलाया और अपने यहाँ सेनाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था । सावरकर नाम का वीर होता तो जिन्ना का दिया टुकड़ा खा लेता पर ब्रिगेडियर उस्मान ने ऐसे पद पर लात मार दिया। 

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भारत के पहले ऐसे अफसर हैं जिनके डर से पाकिस्तान ने उन पर तब ₹50 हजार रुपये का इनाम रखा था। आज उस मूल्य का आकलन कर लीजिए , माथा घूम जाएगा।

काश्मीर पर आक्रमण कर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने दिसंबर 1947 में झनगड़ नाम के इलाके पर कब्जा कर लिया था, लेकिन यह ब्रिगेडियर उस्मान की बहादुरी थी कि मार्च 1948 में पहले नौशेरा और फिर झनगड़ को भारत के कब्जे ले लिया।

ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा में इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी थी कि पाकिस्तान के एक हजार घुसपैठिए घायल हुए थे और एक हजार घुसपैठिए मारे गए थे। जबकि भारत की तरफ से 33 सैनिक शहीद और 102 सैनिक घायल हुए थे।

इसी काश्मीर को पाने के लिए ब्रिगेडियर उस्मान ने भारत की तरफ से पाकिस्तान सैनिकों के खिलाफ़ लड़ते हुए 3 जुलाई 1948 को काश्मीर के नौशेरा में मात्र 33 वर्ष की आयु में अपनी जान दे दी थी। लीडरशिप क्वालिटी की वजह से ही ब्रिगेडियर उस्मान को "नौशेरा का शेर" कहा जाता है।
 
नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर उस्मान ना होते तो "काश्मीर" आज भारत में ना होता , वीर अब्दुल हमीद ना होते तो "पंजाब" आज भारत में ना होता और भारतीय सेना की ग्रिनेडियर रेजीमेन्ट में "हिन्दुस्तान मुसलमान" कंपनी ना होती तो आज "कारगिल" भारत में ना होता।

मंदिर के नाम पर लाखों कुकर्म करने वालों को ब्रिगेडियर उस्मान से सीख लेनी चाहिए कि जब नौशेरा पर हमले के दौरान उन्हें बताया गया कि कुछ पाकिस्तानी क़बाइली एक मस्जिद के पीछे छिपे हुए हैं और भारतीय सैनिक पूजास्थल पर फ़ायरिंग करने से झिझक रहे हैं तब ब्रिगेडियर उस्मान ने कहा कि अगर मस्जिद का इस्तेमाल दुश्मन को शरण देने के लिए किया जाता है तो वो पवित्र नहीं है और उन्होंने उस मस्जिद को ध्वस्त करने के आदेश दे दिए।

आज के भारत में ऐसी मिसाल वाली कौम दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के पद की लायक नहीं समझी जातीं और जिन्दगी भर अंग्रेजों के लिए झूठी गवाही देने वाले इस देश में सर्वोच्च पद तक चले जाते हैं और और माफी माँगने वाले "वीर" कहलाते हैं।

ब्रिगेडियर उस्मान की शहादत दिवस पर "खिराज ए अकीदत"
Mohd Zahid

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