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कैसा है ये फेमिनिज्म जो मंगलसूत्र, ब्रा की स्ट्रिप, और पीरियड के धब्बों तक सिमट कर रह गया है ?

कैसा है ये फेमिनिज्म जो मंगलसूत्र, ब्रा की स्ट्रिप, और पीरियड के धब्बों तक सिमट कर रह गया है  ?

कैसा है ये फेमिनिज्म जो मंगलसूत्र, ब्रा की स्ट्रिप, और पीरियड के धब्बों तक सिमट कर रह गया है  ?

फेमिनिज्म अब टॉप लेवल पर पहुँच गया है । आज एक प्रगतिशील महिला लिख रहीं थीं कि सिन्दूर लगाना, साड़ी बांधना, और गले मे गुलामी का पट्टा यानी मंगलसूत्र आदि सिर्फ एक गंवार और जाहिल औरतें करती है ।

तो मुझे कानपुर की एक महिला आईएएस याद आ गई । सिन्दूर लगाती है । अब उन प्रगतिशील महिला के हिसाब से देखें तो यूपीएससी कैसी कैसी जाहिल गंवार महिलाओ को आईएएस बना देता है ।

साड़ी का सोचा तो मन मे इन्दिरा गांधी की तस्वीर उभर आयी । अरे काहे की आइरन लेडी साड़ी पहनती थीं मतलब गंवार थीं ?

और आखिर मे मंगलसूत्र का सोचा तो अपनी मां पर ही ध्यान चला गया । वेल एजुकेटेड, गवर्नमेंट एम्प्लाई, तेज तर्रार मेरी मां जिनके मुंह से निकले शब्द मेरे पापा के लिये पत्थर की लकीर होते थे । जिनके फैसलों को कभी मेरे दादा जी ने भी नही काटा । वो भी पापा के जीवित रहने पर एक पतला सा मंगलसूत्र पहनती थीं । अब हैवी चेन पहनती हैं । अगर आज जाकर मैं उनसे कहूँ कि मां मंगलसूत्र कुत्ते का पट्टा होता है तो शायद वो मुझे 4 झापड़ लगायेंगी ।

कैसा है ये फेमिनिज्म जो मंगलसूत्र, ब्रा की स्ट्रिप, और पीरियड के धब्बों तक सिमट कर रह गया है । इससे आगे दुनिया है कि नही... उफ्फ.....  दम नही घुटता आपका....?
-Abha Shukla

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