क्या आपने अब से 7 साल पहले ये सुना था ??? अब तो सब कुछ खत्म हो गया।
social diaryJune 12, 2021
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क्या आपने अब से 7 साल पहले ये सुना था ??? अब तो सब कुछ खत्म हो गया।
-Saleem Akhter Siddiqui
क्या आपने अब से 7 साल पहले ये सुना था कि किसी पत्रकार पर इसलिए राजद्रोह का मुकदमा कर दिया गया कि उसने सरकार की आलोचना की थी? क्या कभी यह सुना था कि सरकार की आलोचना करने पर पत्रकारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा हो? पिछले सात में ऐेसे पत्रकारों की सूची लंबी है, जिन्हें सरकार या उनके समर्थकों से सवाल पूछना भारी पड़ गया हो।
वे पत्रकार कौन से हैं, ये लिखने की जरूरत नहीं है। सब जानते हैं। छोटे-मोटे पत्रकारों की तो शायद गिनती भी न हो। ताजा शिकार कार्टूनिस्ट मंजुल बने हैं। मोदी पर बनाए गए उनके एक कार्टून की सजा संस्थान से बर्खास्तगी के रूप में मिली। मेरे एक पत्रकार मित्र हैं। आजकल भाजपा समर्थक मालिक के अखबार में नौकरी करते हैं। भाजपा के आलोचक हैं। नौकरी करने से पहले सोशल मीडिया पर सरकार की खूब आलोचना करते थे।
एक दिन मैंने पूछा-क्या बात आजकल सोशल मीडिया में नहीं दिख रहे हैं? जवाब आया-संस्थान की तरफ से ताकीद की गई है कि सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना नहीं करनी है। तारीफ कर सकते हैं। तारीफ मुझ से होती नहीं। इसलिए सोशल मीडिया से दूरी बना ली है।
कहीं पढ़ रहा था कि एक बार कार्टूनिस्ट शंकर ने नेहरू को गधे के रूप में चित्रित कर दिया था। आज का दौर होता तो शंकर मुकदमा झेल रहे होते या नौकरी से हाथ धो दिए होते। नेहरू ने उन्हें फोन किया और कहा-क्या आप आज शाम की चाय गधे के साथ पीना पसंद करेंगे? शंकर गए। नेहरू के साथ चाय पी और बतिया कर चले आए।
1987 में वीपी सिंह कांग्रेस से बगावत करके जगह-जगह बोफोर्स तोप का मुद्दा उछाल रहे थे। तब ‘रविवार’ में उसके संपादक उदयन शर्मा ने वीपी सिंह पर कवर स्टोरी की ‘ब्रूटस’ शीर्षक से। उस समय ‘रविवार’ की तूती बोलती थी। कुछ दिनों बाद उदयन शर्मा वीपी सिंह का इंटरव्यू करने गए।
उदयन को लगा कि वीपी सिंह ब्रूटस वाली स्टोरी से नाराज होंगे। लेकिन वीपी सिंह ने उस स्टोरी का जिक्र तक नहीं किया। उदयन शर्मा ने इंटरव्यू लिया और शीर्षक दिया-‘सादगी की मिसाल’।