बंद-ओ-बस्त
"मनीष , मनीष कहाँ हो जल्दी यहां आओ " सुबह सुबह भैया की जोर जोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी तो मैं फटाफट चप्पल पैर में डालते हुए कमरे से बाहर भागा। बाहर बैठक में आकर देखा तो दंग रह गया , रोज के दिनों में सूट बूट टाई में रहने वाले आधे से ज्यादा समय अँग्रेजी में ही बात करने वाले अजय भैया आज लम्बा सा कुरता पहने , माथे पर तिलक लगाए , बगल में ॐ लिखा थैला टांगे खड़े थे। मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया , "ये क्या हाल बना रखा है भैया ?" मेरी ओर देखते हुए गुस्से से बोले , "सुबह के आठ बज चुके हैं अभी तक कमरे में ही घुसा है ?
जा नहा धो कर तैयार हो जा और चल मेरे साथ। " मैं झुंझला कर बोला , "भैया सब कुछ बंद है , बाहर जाना मना है ऐसे में आप सुबह सुबह कहाँ जा रहे हो और मेरा क्या काम है?" भैया लगभग आर्डर देते हुए , " बहस मत कर चुपचाप तैयार होकर आजा। रास्ते में सब बता दूंगा।"
मैं भी बड़े भाई के आदेश के सामने मजबूर होकर नहा धोकर तैयार होकर बैठक में आ गया । सामने नाश्ता रखा था जल्दी जल्दी थोड़ा बहुत निगल कर बुझे मन से भइया के साथ खड़ा हो । भइया ने विजयी मुस्कान के साथ देखा और बोले, "चलो।" मैंने डरते डरते कहा, "भइया हम जा कहाँ रहे हैं और फिर आपको पता है न बाहर सब बंद है, एक बार फिर सोच लीजिये ।" मगर भइया गुस्से से आंखें दिखाते हुए बाहर निकल गये ।
मैं भी उनके पीछे भागा ।बाहर आया तो सामने वाले राजू भाई जो इलाके के दादा माने जाते हैं वो भी सफेद कुर्ते पर काले रंग का कपड़ा कंधे पर रखे घर से बाहर निकल रहे थे । मैं हैरान होकर बोला, "राजू भाई मैं तो भइया को रोक रहा था और यहाँ आप भी बाहर जा रहे हैं, बाहर लाकडाउन है सबको निकलने की मनाही है। सरकार यह सब हमारे भले के लिए कर रही है । आप दोनों से बिनती है कि कृपया बाहर न जाएँ ।"
राजू भाई मुस्कुरा कर बोले, "भाईजान आप घबराएं नहीं हम भी सबके भले का सोच कर ही बाहर निकले हैं " इतना कह कर उन्होंने अपना मास्क निकल कर अपना मुँह ढक लिया। भैया भी मुस्कुरा कर बोले , "बिलकुल सही भाई , सिर्फ अपने भले के बारे में नहीं बल्कि सबके भले के बारे में सोचने वाला ही सच में इंसान है।" और भैया ने भी मास्क लगा लिया। फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा कर बोले , "हम आस पास के गरीब लोगों को खाना और जरूरत का सामान पहुँचाने जा रहे हैं। ये बेचारे इस महामारी और बंदी के चक्कर में छोटी मोटी चीजों और खाने पीने के लिए तरस रहे हैं। तुम्हारी भाभी और पड़ोस की महिलाओं ने बहुत सा खाना बनाया है और कुछ गैर सरकारी संस्थानों ने जरूरत के सामान की व्यवस्था की है जिसे जरूरतमंद इंसानों तक पहुँचाने की हम मोहल्ले वालों ने जिम्मेदारी ली है। आज मैं और राजू भाई जा रहे हैं इसके बाद हर दिन बाकी लोग बारी बारी से जायेंगे। "
मैं हैरान होकर बोला , "आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया मैं भी आपकी मदद करता। "इसीलिए तो ले जा रहा हूँ तुझे, मगर ध्यान रहे दूसरों की तो मदद करनी है पर अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना है। कोशिश करना कि हर एक से कम से कम एक मीटर की दूरी रहे और ये मास्क लगाना। " भैया ने कहा और मुझे एक मास्क दिया।
फिर हमने सबका जमा किया हुआ सामान उठाया और चल दिए, सच में एक अद्भुत और दिल छू लेने वाला अनुभव था। हमें सामान के साथ आता देख उन गरीबों और उनके बच्चो के चेहरों पर ख़ुशी की लहर दिख रही थी। मैंने भैया और राजू भाई का धन्यवाद किया जिनकी वजह से मुझे भी एक पुण्य कार्य में भाग लेने का अवसर मिला। हम घर वापस आये और नहा धो कर टी वी के सामने बैठ गए , रामायण ख़त्म होने में अभी भी कुछ समय बाकी था।
यह कहानी मेरे पड़ोस में रहने वाले कुछ महानुभावों और उनके जैसे देश के बहुत से सज्जनों के प्रयासों से प्रेरित है , मैं उन सभी को पूरे समाज की ओर से धन्यवाद करता हूँ।
धन्यवाद,
नितिन श्रीवास्तव