Type Here to Get Search Results !

Click

फासिस्ट ताक़ते डरती हैं तो हमला करती है...! - उबेद बाहुसेन

फासिस्ट ताक़ते डरती हैं तो हमला करती है

कांग्रेस की सरकार में मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के झुटे केस में जेलों में डाला करती थी और कोई वकील उनका केस लड़ने को तय्यार नहीं होता, जब कोई मुस्लिम वकील उनका केस लड़ने को तय्यार होता तो उसे परेशान किया जाता, कोर्ट परिसर में उन वकीलों की पिटाई होती, चेहरे पर कालिख मल दी जाती, उन्हें धमकाया जाता, यहाँ तक के उन्हें गोली मार दी जाती ।

शहीद एडवोकेट शाहिद आज़मी को निर्दोष मुस्लिम नौजवानों का केस लड़ने के वजह से तरह तरह से प्रताड़ित किया गया, कोर्ट परिसर में चेहरे पर कालिख मल दी जाती थी, फ़ोन करके धमकी दी जाती थी, और जब हर तरह की प्रताड़ना और धमकियो के बावजूद शाहिद आज़मी नहीं झुके निर्दोषो का केस लड़ते रहे तो उनको गोली मार कर शहीद कर दिया गया। जब शाहिद आज़मी को शहीद किया गया तब केंद्र और राज्य दोनों जगह में कांग्रेस की सरकार थी ।
- संपादक


फासिस्ट ताक़ते डरती हैं तो हमला करती है...!  - उबेद बाहुसेन

आज़ाद भारत के इतिहास को खुली आँखों से पढ़ा जाये तो ये बात का बहोत ताज्जुब होता है के इतिहास में हमेशा ही से विचारों की लड़ाई लड़ रही महान व्यक्तयों पर हिंसावादी शक्तियों ने अपने खोकले विचारो की बुलंद इमारतों को गिरता देख सत्य और अहिंसा की लड़ाई लड़ रहे लोगों पर गोलियां चलाई, उनको जान से मारने की कोशिश की. महाराष्ट्र को देश के अग्रसर राज्यों =की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन आज महाराष्ट्र में होरही इन घटनाओं से लगता है के महाराष्ट्र में कुछ छुपी शक्तियों को विवेकवाद का सहारा ले रहे लोगों से डर लगने लगा है, आज इनके डर की ये इन्तहा है के हडबडाहट में आज ये इन पर बन्दुक का सहारा लेकर हमले कर रहे हैं ।


अंग्रेजो से आज़ादी की लड़ाई की शुरुआत बहोत पहले हो चुकी थी, सब अपनी अपनी जगह से लड़ाई कर रहे थे, देश को पहली बार १९३० के आस पास महात्मा गाँधी का नेतृत्व मिला. महात्मा गाँधी को देश के सभी समुदाय, धर्म और पंथ अपना नेता मानते थे. सभी धर्म, जात, पंथ के समूहों को साथ लेकर गाँधी जी ने देश की आज़ादी की लड़ाई लढी आगे बढे और अहिंसा के साथ देश की आज़ादी का नेतृत्व कर देश को आज़ाद कराया. गाँधी का अल्पसंख्यांक और पिछड़े समाज के प्रति समान भाव कुछ सांप्रदायिक ताक़तों को तब भी देखा नहीं गया. ये सांप्रदायिक ताक़त भी कहीं ना कहीं महाराष्ट्र के पुणे से ही थी. नथुराम गोडसे ने दिल्ली में जाकर महात्मा गाँधी पर गोलियां चलाइ और  मार डाला. महात्मा गाँधी तो हमें छोड़ कर चले गए लेकिन उस वक़्त से आज तक भी देश ने बापू को और उनके विचारों को नहीं भुलाया. बापू के विचार आज भी जिंदा हैं।


मुंबई शहर के वकील शाहिद आज़मी के साथ भी ऐसा ही हुआ. शाहिद आज़मी मुस्लिम समाज के ऐसे नौजवानों की लड़ाई लड़ रहे थे जिन्हें पोलिस ने आतंकवादी कहकर ग़लत तरह से सालो से जेल में बंद कर दिया था. आज़मी अपनी लड़ाई में बहोत कामयाब रहे, कम वक़्त में शाहिद आज़मी ने कई मुस्लिम नौजवानों को बेकसूर साबित किया. बस यही इन के हत्यारों को देखा नहीं गया. कथाकथित खुद को देशभक्त कहने वालों ने शाहिद आज़मी को फ़ोन पर धमकियां दी, मुंह काला किया गया के ये आतंकवादियों के केसेस लढता है. ११ फरवरी २०१० को शाहिद आज़मी अपने ऑफिस में काम कर कर रहे थे, अचानक हमलावर आये गोलियां चलायी और शाहिद आज़मी को मार दिया. शाहिद आज़मी से प्रेरणा लेकर आज भी कुछ वकील मासूम नौजवानों के लिए केस लढ रहे हैं, लेकिन शाहिद आज़मी का क़त्ल कर ये लोगों ने बता दिया के देश के अल्प संख्यांक समाज को न्याय दिलाना उनके हक की बात करना ये देश के कथाकथित राष्ट्रवादियो को मान्य नहीं होगा।


महाराष्ट्र के मशहूर समाज सुधारक और अंधश्रधा के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नरेन्द्र दाभोलकर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. नरेन्द्र दाभोलकर दलित हित की बात करते थे, छूतछात के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की. नरेन्द्र दाभोलकर ने अपनी पूरी ज़िन्दगी समाज के उन बोंधू बाबाओ के खिलाफ लगादी जो समाज के साथ धोका कर उस की मजबूरियों के साथ खेल कर समाज का शोषण करते थे. नरेन्द्र दाभोलकर की इस विवेकवादी सोच और विचार ने पुरे महाराष्ट्र में जन जाग्रति की थी, लोग बोंधू बाबाओं का शिकार नहीं बनते थे. इनकी लड़ाई किसी धर्म के खिलाफ नहीं थी फिर भी इन बाबाओं ने और उनके कुछ भक्तो ने इससे धार्मिक रंग दिया. नरेन्द्र दाभोलकर को भी धमकिया मिलने लगी, महाराष्ट्र की विधान सभा में जादू टोना विरोधी विधयेक चर्चा के लिए लाया गया था, लेकिन इसी बिच एक दिन सुबह २० अगस्त २०१३ को दाभोलकर को दो हत्यारों ने गोलियों से मार दिया. आज एक साल के बीत जाने पर भी इन हत्यारों का कोई पता नहीं चल सका. सरकार तो बदल गयी पर आज भी इस का कुछ असर नहीं दिखाई देता।


पुणे शहर में जैसे ही नयी मोदी सरकार बनी नयी  सरकार के समर्थक रहे संगठन के कुछ कार्यकर्ताओ  ने पुणे शहर के एक नौजवान मोहसिन शेख की भी कुछ इसी तरह निशाना बनाकर हत्या कर दी. पुणे शहर का माहोल तनाव पूर्ण था, किसी ने शिवाजी महाराज और बाल ठाकरे की आपति जनक फोटो फेसबुक पर अपलोड की थी. इस तनाव पूर्ण माहोल का गलत फायदा उठाते हुए फिर से कुछ कथाकथित राष्ट्रवादियों ने २४ वर्ष के आईटी इंजिनियर मोहसिन शेख को २ जून २०१४ को मार दिया, ये कहा गया के इस लड़के ने आपतिजनक फोटो को फेसबुक पर अपलोड किया था, लेकिन महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल ने मीडिया के सामने आकर कह दिया के ये लड़के का आपतिजनक फोटो से कुछ लेना देना नहीं. लेकिन यहाँ ये बात पर जोर देना ज़रूरी है के एक बेगुनाह को किस तरह से एक फ़ासिस्ट संघटन के लोग निशाना बनाते हैं. और निशाना भी इस लिए बनाया गया के इस के चेहरे पर दाढ़ी थी याने ये एक धर्म विशेष का चेहरा था।


और अब कोल्हापुर में गोविन्द पानसरे पर भी कुछ इसी तरह का हमला किया गया. गोविन्द पानसरे ने दलित, मुस्लिम समाज के हित की बात की, टोल टैक्स के खिलाफ लड़ाई लड़ी. हमला होने से एक दिन पहले पहले उन्होंने चिंता जताई थी के गाँधी के हत्यारे नथुराम गोडसे की मूर्ति को स्ताफित कर कुछ फ़ासिस्ट लोग समाज को गलत दिशा देने जारहे हैं. दुसरे ही दिन पानसरे को सुबह के वक़्त १६ फरवरी २०१५ के दिन उन पर गोलियों से हमला किया जब वो मॉर्निंग वाल्क से घर वापस लौट रहे थे. इनके साथ ही उनकी पत्नी भी इस में घायेल हुयी हैं. पानसरे आज हमारे बिच नहीं रहे. ब्रिज कैंडी हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उनका निधन होगया है।


इन सभी घटनाओं से एक बात साफ़ हो चुकी है के देश में पिछले कुछ सालो में वही स्तिथीयां उत्पन होरही हैं जो गाँधी की हत्या के माहोल में बनी थी. गाँधी के कातिलो को गाँधी की हत्या कर कुछ पश्ताप नहीं हुआ. अब गाँधी की हत्या के सालो बाद भी महाराष्ट्र में होरही इन घटनाओ में बहोत समानता हैं. एक तो हमलावरो के हमला करने का  तरीका समान है. जिन पर हमले हुए उनकी भी विचारधारा या काम करने के तरीके में भी समानता  हैं।


ये दर्शाता है के गाँधी से लेकर तो पानसरे पर हुए इन हमलो में शामिल लोग कहीं न कहीं उस मानसिकता से ग्रसित हैं जो समाज में न्याय और सदभाव की निर्मिती के खिलाफ हैं. ये खिलाफ हैं उनलोगों के जो समाज में वैचारिक बदलाव लाना चाहते हैं के समाज में मौजूद किसी भी  धर्म और जात के प्रति द्वेष को ख़त्म करें. ये न्याय को स्ताफित करना चाहते हैं ताके समाज के किसी भी वर्ग का उत्पीडन और शोषण न हो पाए. लेकिन समाज के दुश्मन हत्यारे इन आवाजों को दबाना चाहते हैं. हमले कर वो संकेत देते हैं के उनके विचारों की खोकली ईमारत सुधारवादी विचारों की ललकारो से इस तरह काँप रही है के बौक्लाहट में आकर ये ऐसे हमले कर रहे हैं. गोडसे की परम्परा पर चल ये विचार को बन्दुक से ख़त्म करना चाहते हैं पर ये इतने अज्ञानी हैं के नहीं जानते के विचार पर हमला होने पर विचार मरता नहीं और  पुनर्जीवित होकर नवचैतन्य के साथ संगठित होकर फिर इनसे लोहा लेने खड़ा होजाता है.
(लेखक उबैद बहुसैन, उच्चशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता है । नांदेड़, महाराष्ट्र)


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

Hollywood Movies