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सब्जी बेचने, मजदूरी करने को मजबूर पुलवामा शहीद जवानों की पत्नियां

सब्जी बेचने, मजदूरी करने को मजबूर पुलवामा शहीद जवानों की पत्नियां

पुलवामा के शहीद विजय सोरेंग की पत्नी विमला देवी झारखंड में सब्ज़ी बेचते हुए

सब्जी बेचने, मजदूरी करने को मजबूर पुलवामा शहीद जवानों की पत्नियां

ठीक दो साल पहले आज ही के दिन पुलवामा आतंकी हमला हुआ । लोकसभा चुनाव क़रीब थे इसलिए सरकारों और राजनेताओ ने घोषणाओं और शहीदों के परिवार की मदद के लिए वादों के अम्बार लगा दिए ।


पुलवामा हमले के बाद मारे गए जवानों के परिवारों की मदद पहुंचाने के लिए “वीर भारत कोष” फ़ंड बनाया गया। उस फंड में अब तक कितने पैसे जमा हुए और सरकार ने उन पैसों का क्या किया ?? इसकी जानकारी शायद ही देश में किसी के पास हो । मीडिया को भी इतनी फ़ुर्सत नहीं कि इस पर कोई रिपोर्टिंग कर सके कि 40 शहीदों के परिवार तक कितनी सरकारी मदद पहुँची । उनसे किए गए कितने वादे पूरे हुए ?? 


विजय सोरेंग की पत्नी विमला देवी से किया गया एक भी वादा रघुवर सरकार पूरा नहीं कर पायी । मजबूरन अपनी जीविका के लिए उन्हें सब्ज़ी बेचनी पड़ी । झारखंड में सरकार बदली , हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने , उनकी नज़र इस खबर पर पड़ी तो उन्होंने फ़ोरन ज़िला प्रशासन को आदेश दिया कि विमला देवी से किए गए वादे पूरे किए जाए और ज़िला प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से उनकी मदद की ।


रमेश यादव प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस से थे , पुलवामा में शहीद हुए , तीन साल का छोटा सा बेटा था । जवान बीवी विधवा हो गयी , घर पर अकेले कमाने वाले थे , पिताजी अब साइकल पर दूध बेचते हैं । पत्नी को सरकारी नौकरी मिली है लेकिन बाक़ी कोई भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पायी है । उनकी शहादत पर प्रदेश सरकार ने उनके गाँव की सड़क उनके नाम पर बनाने , गाँव में उनके नाम पर गेट बनाने जैसे कई वादे किए थे , लेकिन एक भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पायी । 

सब्जी बेचने, मजदूरी करने को मजबूर पुलवामा शहीद जवानों की पत्नियां

पुलवामा के शहीद रमेश यादव का परिवार बनारस में। 

बाक़ी 38 शहीदों के परिवार की भी कोई कहानी होगी । वो आज किस हालत में है , इसकी रिपोर्टिंग भी होनी चाहिए । मीडिया को कम से कम उनके परिवारों तक पहुँचकर उनकी आवाज़ को सरकार तक पहुँचाना चाहिए ।

तीन सवाल तो मेरे भी है
१) इन शहीदों के नाम पर बने “वीर भारत कोष “ में कितना धन इकट्ठा हुआ और वो इनके परिवारों को मिला या नहीं मिला ? 
२) शहीद परिवारों को सरकार पेंशन देती है या नहीं ? 
३) सरकार अगर अपने वादे भूल जाए तो मीडिया और विपक्ष की यह ज़िम्मेदारी है या नहीं कि इन परिवारों से मिलकर पूछे कि सरकार ने कौन कौन से वादे पूरे नहीं किए है और उसे सरकार के सामने उठाए । 
राष्ट्रवाद पर दिन रात लेक्चर देने वालों को भी इन परिवारों से मिलकर एक बार अपना राष्ट्रवाद चेक कर लेना चाहिए ।


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