पुलिस, वक़ील, जज, मीडिया जेब में ।। झूठे इल्ज़ाम लगा जेल भेजना. लोकतंत्र के ख़स्ताहाल की निशानी
- वरिष्ठ पत्रकार अजित साही
शरजील इमाम इसलिए जेल में है क्योंकि उसने चिकन नेक काटने की बात की. मुनव्वर फ़ारूक़ी इसलिए जेल में था क्योंकि वो हिंदुओं की भावनाओं पर चोट करने जा रहा था. Prashant Kanojia इसलिए गिरफ़्तार हो गया क्योंकि उसने आदित्यनाथ और राष्ट्रपति पर ट्वीट कर दिया. आए दिन किसी न किसी को हिंदुओं की भावनाएँ आहत करने के आरोप में पुलिस उठा लेती है. भारतीय दंड संहिता (IPC) में बाक़ायदा ढेरों क़ानून हैं आहत भावनाओं पर मरहम लगाने के लिए.
भारत में भावनाएँ बड़ी जल्दी आहत होती हैं. और पढ़े से पढ़ा लिखा आदमी भी इस बात को सही मानता है कि भावनाएँ आहत होने पर भावना आहत करने वाले को जेल भेजना ठीक ही तो है.
मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से अति पिछड़े देश की यही पहचान होती है.
जो असली लोकतांत्रिक देश होते हैं वहाँ कुछ भी बोलना अपराध नहीं होता है. हिंसा करना या उसके लिए साज़िश करना या बोलने की वजह से ही हिंसा होना अपराध होता है. इस मामले में भारत बहुत पिछड़ा देश है. यहाँ महज़ बोलना ही अपराध है.
मैं अमेरिका में रहता हूँ और यहाँ का संविधान आपको कुछ भी बोलने की इजाज़त देता है. यहाँ तक कि आप खुलेआम जीसस से लेकर राष्ट्रपति तक को गंदी से गंदी गाली दे सकते हैं. आप यहाँ ये भी कह सकते हैं कि अमेरिका टूट जाए और देश बर्बाद हो जाए. ये सब आपका संवैधानिक अधिकार है. अमेरिका का झंडा जलाना भी संवैधानिक अधिकार है. अमेरिका का राष्ट्रगान गाने से मना कर देना भी आपका संवैधानिक अधिकार है.
जब डोनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति था तो White House के बाहर भोंपू लगा कर खुलेआम लोग उसको भद्दी से भद्दी गालियाँ देते थे. ऐसी गालियाँ कि सुनने वाले को शर्म आ जाए. White House के बाहर पाँच मीटर की दूरी पर पुलिस खड़ी रहती थी. मजाल है कि कभी गाली देने वाले को पुलिस ने डाँटा भी हो. एक भोंपू वाला तो वहाँ टेंट लगाकर दिनरात रहता था और सुबह उठते ही चालू हो जाता था.
ये पहचान होती है असली लोकतंत्र की. भारत की तरह नहीं कि पुलिस, वक़ील, जज और मीडिया अपनी जेब में है तो झूठे इल्ज़ामात लगाओ कि फ़लाना साज़िश कर रहा था और बग़ैर सबूत बीस साल जेल के अंदर कर दो. भारतीय लोकतंत्र के ख़स्ताहाल होने की वजह ही ये है कि भारत की जनता मूलत: लोकतांत्रिक नहीं सामंती है और इसकी नस-नस में धर्म, जाति, क्षेत्रवाद और पितृसत्ता का घोल घुसा हुआ है. भारत की जनता के लिए बेहतर देश और समाज बनाने का लक्ष्य है नहीं है. वो सिर्फ़ खोखले दंभ में जीती है.
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जज ने मुनव्वर की बेल की सुनवाई के दौरान पुलिस को कहा कि “इनका ठीक से ख़्याल रखना.” यानी जम के पिटाई करना. एकदम यही सोच भारत के संभ्रांत, पढ़ेलिखे हिंदू की है. कि जो बोले उसको कूट दो और जेल में डाल दो. ऐसे ही समाज को बिलकुल ठीक लगता है कि सत्तर साल उत्तर-पूर्व भारत में और तीस साल कश्मीर में लोकतंत्र पर ताला लगा रहे और मिलिटरी शासन चले. ऐसा ही समाज ताली पीटता है जब धरने पर बैठे मुसलमानों पर प्रशासन गोली चलाता है और सिर्फ़ एक दिन में यूपी पुलिस बीस मुसलमानों की हत्या कर देती है. ऐसा ही समाज छोटी बच्चियों का रेप करके हत्या करने वालों के समर्थन में रैली निकाल कर दंगा करता है.
ऐसा ही समाज तानाशाही के लिए बिलकुल तैयार खड़ा मिलता है.